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DevBhoomi Insider Desk
• Tue, 2 May 2023 8:00 am IST


त्रिपुष्कर योग में आज मनाई जाएगी परशुराम द्वादशी, ऐसे लोगों के लिए बहुत ही फलदाई होती है यह तिथि, जानिए महत्व और पूजा विधि


हिंदू धर्म में कई ऐसे व्रत-त्योहार हैं जो संतान प्राप्ति की कामना से किए जाते हैं। इन्हीं में से एक है परशुराम द्वादशी व्रत। ये व्रत वैशाख शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को रखा जाता है। शास्त्रों में  इस व्रत को बहुत ही शुभ फलदायी माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन जो नि:संतान दंपत्ति पूरे विधि विधान से पूजा और व्रत करते हैं उनकी सूनी गोद जल्द भर जाती है। परशुराम जी भगवान विष्णु के दस अवतारों में से छठे अवतार हैं, इन्हें अजर-अमर माना गया है। परशुराम द्वादशी 2 मई, मंगलवार यानी आज है। मोहिनी एकादशी के अगले दिन परशुराम व्रत मनाया जाता है। कभी-कभी दोनों व्रत एक ही दिन पड़ सकते हैं। पुराणों के अनुसार शास्त्र और शस्त्र विद्या में पारंगत भगवान परशुराम का एक मात्र उद्देश्य था प्राणियों का कल्याण करना है। भगवान् परशुराम ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् शिव ने उन्हें दर्शन दिए और परशु प्रदान किया। भगवान् शिव ने परशुराम को कलारीपयट्टु नामक कला का भी प्रशिक्षण दिया। परशुराम एक महान योद्धा थे। वो हमेशा भगवा वस्त्र धारण करते थे। उन्होंने भगवान शिव से भार्गवस्त्र अर्जित किया था। परशुराम ने भगवान शिव से युद्ध के गुर भी सीखे थे।  परशुराम जी की को लेकर पुराणों में कहा गया है कि यह चिरंजीवी हैं और जब तक सृष्टि रहेगी तब तक इस धरती पर रहेंगे। इनकी उपासना से दुखियों, शोषितों और पीड़ितों को हर दुख से मुक्ति मिलती है। आइए जानते हैं परशुराम द्वादशी का शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजन विधि। 

परशुराम द्वादशी का शुभ मुहूर्त 
पंचांग के अनुसार वैशाख शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि की शुरुआत 01 मई, सोमवार की रात 10 बजकर 09 मिनट पर हो चुकी है। अगले दिन 2 मई, मंगलवार की रात 11 बजकर 17 मिनट पर इस तिथि का समापन होगा। 
पूजा मुहूर्त - सुबह 08.59 - दोपहर 12.18 बजे तक। 
त्रिपुष्कर योग - सुबह 05.40 - रात 07.41 बजे तक।  

परशुराम द्वादशी महत्व 
धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को करने से धार्मिक और बुद्धिजीवी संतान की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथा के अनुसार परशुराम द्वादशी का व्रत निःसंतान दंपत्ति के लिए उत्तम है। प्राचीन काल में ऋषि याज्ञवल्क्य ने एक राजा को संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को करने की सलाह दी थी। कहते हैं कि इस व्रत के पुण्य से उसे पराक्रमी पुत्र की प्राप्ति हुई थी जो इतिहास में नल नामक राजा के नाम से जाना गया। 

परशुराम द्वादशी पूजा विधि 
परशुराम द्वादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान कर निराहार व्रत का संकल्प लें। इसके बाद चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की तस्वीर स्थापित करें। परशुराम जी का स्मरण करते हुए श्रीहरि को पीले फूल, पीले वस्त्र, मिठाई, भोग में तुलसी डालकर अर्पित करें। परशुराम जी की कथा का श्रवण करें। ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात्।। इस मंत्र का 108 बार जाप करें। आरती कर दान दें। संतान प्राप्ति की कामना करें। शाम को फिर से फूल अर्पित कर आरती करने के बाद फलाहार ग्रहण करें।