आज 6 जनवरी, शुक्रवार को पौष पूर्णिमा व्रत के साथ माता शाकंभरी की जयंती भी मनाई जाएगी। मां शाकंभरी को वनस्पति की देवी के रूप में जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार मां शाकंभरी, मां दुर्गा के अनन्य रूपों में एक सौम्य रूप हैं, जिन्होंने पानी और खाद्य की गंभीर समस्याओं को दूर करने के लिए पृथ्वी लोक पर अवतरण लिया था। माना यह भी जाता है कि शाकंभरी जयंती के दिन मां शाकंभरी की पूजा करने से व्यक्ति को कभी भी अन्न या धन की कमी नहीं होती है और वह सदैव अपना जीवन सुख में बिताता है। आइए जानते हैं माता शाकंभरी जयंती का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।
शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार माता शाकंभरी जी का जयंती पर्व पौष मास की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष पौष पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 6 जनवरी प्रातः 02:14 पर हो रहा है और इसका समापन अगले दिन 7 जनवरी सुबह 4:37 पर होगा। इस दिन को शाकंभरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
पूजा विधि
शाकंभरी जयंती के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें व नए अथवा साफ वस्त्र पहने। इसके बाद शुभ दिशा में चौकी स्थापित करें और उस पर लाल कपड़ा बिछाएं। इसके बाद चौकी पर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें और मां शाकंभरी को स्मरण करते हुए हल्दी, कुमकुम, अक्षत व श्रृंगार का सामान अर्पित करें। साथ ही माता को ताजे फल एवं सब्जियों का भोग अवश्य लगाएं और शाकंभरी नीलवर्णानीलोत्पलविलोचना।मुष्टिंशिलीमुखापूर्णकमलंकमलालया।। इस मंत्र का जाप करें। अंत में देवी शाकंभरी की कथा सुनें और आरती करना ना भूलें।
शाकंभरी पूर्णिमा के उपाय
मां दुर्गा के इस सौम्य स्वरूप को शताक्षी के नाम से भी जाना जाता है। किवदंतियों में बताया गया है कि जब सृष्टि पर भीषण अकाल पड़ा था। तब अपने भक्तों को इस विकराल समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए शाकंभरी देवी ने अवतार लिया था। वैदिक कथाओं में बताया गया है कि मां शाकंभरी के हजारों की संख्या में आंखें हैं। जिनसे 9 दिनों तक अश्रु के रूप में पानी की धाराएं बहने लगी थी। उसी पानी से सृष्टि में चारों ओर पुनः हरियाली आ गई थी। इसलिए पौष पूर्णिमा के दिन माता शाकंभरी को प्रसन्न करने के लिए जरूरतमंदों में अनाज, सब्जी व फल और अन्न का दान अवश्य करना चाहिए। अगर ऐसा न कर पाएं तो किसी देवालय में भंडारा इत्यादि के लिए पैसों का दान कर दें।