संतुलित आहार स्वस्थ जीवन का आधार है, लेकिन मौजूदा समय में भारत एक ऐसे संकट से जूझ रहा है, जिसे चिकित्सा विशेषज्ञों ने हिडन हंगर बताया है।
एक अध्ययन में सामने आया है कि, देश के अधिकांश परिवारों की थाली में पोषक तत्वों की कमी है। गर्भवती महिलाओं के शरीर में तत्वों की कमी से नवजात शिशु विकृति पैदा होता है। मेडिकल जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन में विशेषज्ञों ने साफ किया कि, भारत हिडन हंगर के साथ दुनिया में सबसे आगे रहने की अविश्वसनीय स्थिति में है।
विशेषज्ञ कहते हैं कि, ‘भूख’ को कुछ मुट्ठी भर पारंपरिक पोषक तत्वों से आसानी से हल किया जाता है लेकिन ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में ज्यादातर परिवार भोजन में इन पोषक तत्वों की कमी को दूर नहीं कर पा रहे हैं। अध्ययन में एक डॉक्टर ने बताया कि, लोहा, आयोडीन या जस्ता जैसे खनिजों के अलावा विटामिन ए, विटामिन-डी, फोलेट, और विटामिन बी12 की कमी लोगों में काफी तेजी से देखने को मिल रही है।
इन तत्वों की कमी से एनीमिया, गर्भावस्था और गर्भाशय में भ्रूण के मस्तिष्क विकास पर गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जिससे भारत में विकृत संतान पैदा हो रही है। भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि, सभी किशोरी और प्रसव उम्र की महिलाओं को पर्याप्त आयरन, विटामिन-बी 12 और फोलेट मिलने चाहिए। ताकि उनमें सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को जल्द दूर किया जा सके।
डॉक्टर कहते हैं कि, देश के हर एक परिवार को विटामिन-फोर्टिफाइड भोजन के लिए शिक्षित करना जरूरी है। आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के बाद भी पोषक तत्वों की कमी आबादी से दूर नहीं हो पा रही है। हर साल 2.60 करोड़ गर्भवती महिलाओं को प्रसव के दौरान रक्त की आवश्यकता पड़ती है, क्योंकि पोषक तत्वों की कमी से इन्हें एनीमिया की शिकायत रहती है। साल 2018 में, एनीमिया की वजह से भारत में 25 हजार से ज्यादा मातृ मृत्यु दर्ज की गईं। वहीं आयरन की कमी से लाल रक्त कोशिका यानि आरबीसी पर असर पड़ता है।
जिसकी वजह से मांसपेशी, हृदय और मस्तिष्क में आयरन की कमी होती है। थकान, हृदय की विफलता इत्यादि इसके प्रमुख असर भी हैं।