भगवान श्री कृष्ण से जुड़ी न जाने कितनी ही अनोखी कहानियां आपने सुनी होंगी। असल में यहां तो हर कोई श्री कृष्ण की लीलाओं का दीवाना है। अपनी मुरली की धुन पर सबको नचाने वाले श्याम जब भी मोर मुकुट धारण कर गोकुल की गलियों में निकला करते थे तो उनके देखने वाला हर एक और प्रत्येक व्यक्ति उनकी छवि पर मोहित हो जाता था। वास्तव में, उनके माथे पर लगा मोरपंख उनकी नटखट छवि को और नटखट बना देता है। लेकिन क्या आप जानते है कि उनके इस मोरपंख का गहरा सम्बंध उत्तराखंड के हरिद्वार से रहा है। बता दें, की धर्म की रक्षा के लिए मानव रूप में अवतरित हुए नारायण की सुरक्षा हेतु कात्यायन ऋषि ने उनके लिए मोरपंख आवश्यक बताया था। जरूरी इसलिए क्योंकि - किंदवंतियों के अनुसार, जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ तो उनकी कुंडली में सर्प दोश योग था। यानी जीवन में कभी उनको नाग से खतरा हो सकता था। इसी के चलते उनका नामकरण कराने आए कात्यायन ऋषि ने इस दोष को दूर करने के लिए मोरपंख लाने के लिए कहा था। उन्होंने कहा कि मनसादेवी पर्वत से ही मोर का पंख लाना होगा। इस जगह का एक खास महत्व है। ऐसा इसलिए क्योंकि कहा जाता है कि, इस पर्वत पर नाग पुत्री मनसादेवी विराजमान हैं। मोर नाग का दुश्मन होता है। इसलिए यह पंख अगर वहां से लाया जाएगा तो कान्हा के दोष खत्म हो जाएगा। वही हरिद्वार के बिल्व पर्वत पर सबसे ज्यादा मोर पाए जाते थे। तब उन्होंने हरिद्वार के इसी पर्वत से पंख लाकर दिया। तभी से श्री कृष्ण के मुकुट में मोरपंख विराजमान है।