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DevBhoomi Insider Desk
• Thu, 7 Apr 2022 8:12 pm IST


क्षैतिज आरक्षण : सरकार का प्रार्थनापत्र निरस्त


 हाईकोर्ट ने उत्तराखंड के राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी सेवाओं में दस फीसदी क्षैतिज आरक्षण दिए जाने के मामले पर सुनवाई के बाद सरकार के प्रार्थनापत्र को यह कहकर खारिज कर दिया कि आदेश को हुए 1403 दिन हो गए हैं। इतने दिन बाद सरकार संशोधित प्रार्थनापत्र पेश कर रही है, अब इसका कोई आधार नहीं रह गया है। सरकार की ओर से देर से प्रार्थनापत्र दाखिल करने का कोई स्पष्ट कारण भी नहीं दिया गया। यह प्रार्थनापत्र लिमिटेशन एक्ट की परिधि से बाहर जाकर पेश किया गया था, जबकि इसे आदेश होने के 30 दिन के भीतर पेश किया जाना था।कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। मामले के अनुसार राज्य आंदोलनकारियों को 2004 में तत्कालीन एनडी तिवारी सरकार दस फीसदी आरक्षण दिए जाने के लिए दो शासनादेश लाई थी। पहला शासनादेश लोक सेवा आयोग से भरे जाने वाले पदों के लिए, जबकि दूसरा लोक सेवा आयोग की परिधि से बाहर के पदों के लिए था। शासनादेश जारी होने के बाद राज्य आंदोलनकारियों को दस फीसदी क्षैतिज आरक्षण दिया गया। 2011 में हाईकोर्ट ने इस शासनादेश पर रोक लगा दी थी। बाद में हाईकोर्ट ने इस मामले को जनहित याचिका में तब्दील करके 2015 में इस पर सुनवाई की। खंडपीठ में शामिल दो न्यायाधीशों ने आरक्षण दिए जाने व नहीं दिए जाने को लेकर अलग-अलग निर्णय दिए। इसके बाद मामले को अन्य न्यायाधीश को भेज दिया गया। जब यह मामला सुनवाई के लिए दूसरी कोर्ट को भेजा गया तो वहां आरक्षण को असांविधानिक करार दिया गया।