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• Sat, 26 Jun 2021 8:15 am IST


जंगलों में गाजर घास की फांस, यह मनुष्य और वन्यजीवों के लिए भी है नुकसानकारी


र्षाकाल शुरू होते ही उत्तराखंड के जंगलों की आभा भी निखर आई है। करीब आठ महीने तक आग से झुलसते रहे जंगलों में मानसून के सक्रिय होते ही हरियाली लौट आई है। आज की स्थिति देखकर लगता ही नहीं कि कल तक जंगल आग से झुलस रहे थे। यही तो कुदरत का करिश्मा है। हरे-भरे जंगल हर किसी का ध्यान खींच रहे हैं, लेकिन इसमें भी चिंता के बादल मंडरा रहे हैं। वजह है जंगलों में घुसपैठिये पौधों की बढ़ती पैठ। लैंटाना कमारा (कुर्री) ने पहले ही नाक में दम किया हुआ है। अब बरसात शुरू होते ही जंगलों में गाजरघास (पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस) के बड़े-बड़े पैच साफ दिखने लगे हैं। कांग्रेस घास समेत अन्य नामों से पहचानी जाने वाली यह खरपतवार पर्यावरण के साथ-साथ मनुष्य और वन्यजीवों के लिए भी नुकसानकारी है। हालांकि, गाजरघास की फांस से निजात पाने को कसरत तो हो रही, मगर ठोस उपायों की दरकार है।