टैलेंट या कालकृति किसे कहते हैं इसका जीता-जागता प्रमाण नजर आता है ओडिशा के पुरी में, जहां हर साल शिल्पकार बिना किसी मशीन या तकनीक का सहारा लिए एक जैसा रथ तैयार करते हैं। तकनीक के इस दौर में शायद यह सुनकर थोड़ा अजीब लगे लेकिन सच है।
हर साल पारंपरिक तरीके से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के लिए एक जैसे विशाल रथ तैयार करते हैं और यह तीन रथ अपनी शाही संरचना और शानदार शिल्पकला के चलते चर्चा में रहते हैं। 12वीं सदी के जगन्नाथ मंदिर से लेकर गुंडिचा मंदिर तक निकाले जाने वाली यात्रा इस साल एक जुलाई को होगी। सदियों से एक ही ऊंचाई, चौड़ाई के रथ बनते आ रहे हैं।
बतादें कि, इन शिल्पकारों को कोई प्रशिक्षण हासिल नहीं है। इनके पास केवल पारंपरिक तकनीक है, जो उन्हें उनके पूर्वजों से मिली है। और इनके पास इसे बनाने का वंशानुगत अधिकार भी है। रथ बनाने वाले कलाकार कहते हैं कि, भाग्यशाली हैं कि हमें भगवान की सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ है। रथों के निर्माण में केवल पारंपरिक उपकरण जैसे छेनी आदि का इस्तेमाल करते हैं। बताते चलें कि, ओडिशा में कोविड-19 के बढ़ते मामलों के बीच एक जुलाई से शुरू होने वाली भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल होने वालों के लिए मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया गया है।