देहरादून। शीतलहर के दौरान फल, सब्जी और अनाज वाली फसलों को पाले से बचाना किसानों के लिए बड़ी चुनौती होती है। फल पाले के प्रभाव से मर जाते हैं, फूल झड़ने लगते हैं। इसी तरह अन्य फसलों पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। प्रभावित फसल का हरा रंग समाप्त हो जाता है व पत्तियों का रंग मिट्टी के रंग जैसा दिखता है। ऐसे में प्रभावित पौधों के पत्ते सड़ने से बैक्टीरिया जनित बीमारियों का प्रकोप अधिक बढ़ जाता है।
पाले से प्रभावित फल व सब्जियों में कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है। फलदार पौधे पपीता, आम आदि में पाले का प्रभाव अधिक पाया जाता है। कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि पाले से फसलों को बचाने के लिए ठंडी हवा की दिशा में खेतों के किनारे पर कूड़ा-कचरा जलाकर धुआ करना चाहिए। ताकि वातावरण में गर्मी आ जाए। इस तरह से 4 डिग्री सेल्सियस तापमान आसानी से बढ़ाया जा सकता है। इस समय किसानों को पाले से होने वाले नुकसानों के विषय में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा बताया जा रहा है। इंटरनेट मीडिया और गोष्ठियों के सहारे इस दिशा में कार्य किया जा रहा है।