एक समय था जब हम सिर्फ अपनी ही भाषाओं में फिल्में देख सकते थे क्योंकि हमें कोई और भाषा समझ में ही नहीं आती थी लेकिन आज समय बदल चुका है और टेक्नोलॉजी ने काफी कुछ आसान कर दिया है। अब डबिंग और सब टाइटल के जरिये किसी भी भाषा की फिल्म को किसी भाषा में देखने में आसानी हो गई है। इसकी वजह फिल्मों की दुनिया काफी छोटी हो गयी है। अब लोग सात समंदर पार बैठकर भी अपनी मनपंसद कोई भी फिल्म अपनी भाषा में देख सकते हैं।
चाहे सिनेमाहॉल में हों या फिर OTT प्लेटफार्म, हर जगह, अब ऐसा नहीं हैं कि हम सिर्फ उसी भाषा में फिल्म देख सकते हैं जो हमें आती है। बल्कि डबिंग के सहारे हम किसी भी देश की फिल्म अपनी भाषा में देख सकते हैं। दुनिया भर में बड़े पैमाने पर डबिंग या सबटाइटलिंग के लिए लैंग्वेज ट्रांसलेशन का काम होता है।
दुनिया भर की फिल्म इंडस्ट्री में बहुत से लोग ऐसे हैं जो सिर्फ ट्रांसलेशन के जरिए ही अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं। वहीं ये काम आउटसोर्स कर दूसरों को भी फ्री लांसिंग करने का अच्छा मौका देता है। भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में भी कोविड से पहले तक अधिकांश काम मुंबई बेस्ड ही था। इसके अलावा उन राज्यों में जहां फिल्म सिटी बनी हैं काम शिफ्ट हो जाया करता था, लेकिन कोरोना काल के दौरान और कोविड के बाद से बाद से शहरों की बाउंडेशन दूर होने लगी। बीते दो वर्षों से फ़िल्मी दुनिया में ट्रांसलेशन का काम कर रहे युवा ट्रांसलेटर चंदन कुमार दास कहते हैं कि उन्होंने कोविड के दरमियान इंटरनेट पर जॉब वर्क ढूंढ़ने से इस काम की शुरुआत की थी। आज काम पर पकड़ और मैन-टू-मैन रिकमंडेशन की वजह से वो करीब बीस लोगों की टीम के साथ फिल्मी दुनिया में ट्रांसलेशन का जॉब वर्क पूरा कर रहे हैं। उन्हें सबसे पहले रशिया के एक इंजीनियर ने ये काम दिया था। इसके बाद से ये सिलसिला चल निकला। दिल्ली की जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी से केमेस्ट्री में स्नातक कर चुके चंदन को आज 8 भाषाओं में महारत हासिल है। चंदन को बंगाली, हिन्दी, इंग्लिश, उर्दू, अरेबिक, मेंडिरिन, सिलेटी और स्पैनिश भाषा भाषा आती है।
वे बताते हैं कि डबिंग और सबटाइटिलिंग वर्क के लिहाज से बल्क में काम मिलता है। इसमें सॉफ्टवेयर पर एक तरफ फिल्म चल रही होती है और दूसरी तरफ डायलॉग की इंग्लिश ट्रांसक्रिप्ट लिखी आती हैं, फिर चंदन और उनकी टीम हिन्दी तर्जुमा लिखते हैं। इसके बाद इसी हिन्दी स्क्रिप्ट पर वॉइस ओवर आर्टिस्ट डबिंग करता है। इतना सब कुछ होने के बाद कोई भी फिल्म नए ऑडियो के साथ सिंक होकर लोगों तक पहुंचती है। ऐसा ही सबटाइटल्स के मामले में भी होता है। बताया जाता है कि कई बार ऐसा होता है कि कुछ प्रोजेक्ट्स में हिन्दी सबटाइटल्स की डिमांड रहती है। दरअसल, कई बार दूसरी भाषाओं में संवाद का अर्थ अलग जा रहा होता है, ऐसे में सिर्फ भाषाई ट्रांसलेशन नहीं किया जाता बल्कि फिल्म को जिस देश की भाषा में ट्रांसलेट किया जा रहा होता है, वहां के लोगों की पसंद के हिसाब से संवाद में थोड़ा बहुत बदलाव भी कर लिया जाता है। आपने देखा होगा कि हॉलीवुड फिल्मों की डबिंग में 'चलती है क्या नौ से ग्यारह' या 'अपुन को मामू बना गई' टाइप के टिपिकल इंडियन बॉलीवुड संवाद भी सुनने को मिलते हैं।
by-Nisha Shukla
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