बिजनौर में सरेंडर करने वाला शख्स करोड़ों की संपत्ति का मालिक है। मगर, हैरान करने वाली बात है कि उसे मारपीट, गाली-गलौज और जान से मारने की धमकी के मामले में जमानती नहीं मिली। बताया जा रहा है कि उसने कुछ अधिकारियों के साथ सेटिंग कर ही सरेंडर किया है ताकि जिस पेपर लीक मामले में उस पर शक जताया जा रहा है, उसमें वह एसटीएफ उत्तराखंड के हाथों न चढ़े।
यह नया मामला नहीं है जब कोई संदिग्ध या वांटेड जमानत तुड़वाकर पुलिस से बचने के लिए जेलों में गए हैं। बड़े कुख्यातों और अपराधी अक्सर इस तरह का खेल रचते हैं। अपने मुंहलगे अधिकारियों की शह पर वह जेलों में सुरक्षित समय बिताते हैं। बीते सालों में उत्तर प्रदेश में यह खेल सबसे ज्यादा देखने को मिला है। लगातार एनकाउंटर की खबरें सामने आई तो बड़े-बड़े अपराधी चाकू रखने तक के आरोप में जेल चले गए ताकि पुलिस के हत्थे चढ़कर उनका खेल भी खत्म न हो जाए। बिजनौर के इस शख्स की कहानी भी इसी ओर इशारा कर रही है। मारपीट और गाली-गलौज जैसे अपराधों में न्यायालय तभी जेल जाने के आदेश देता है जब वह जमानती प्रस्तुत न कर सके। यह सब जमानती धाराएं हैं और सात साल से कम सजा वाली हैं।