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• Sat, 8 Jun 2024 4:47 pm IST


ईरान के लिए क्या है सबसे बड़ा सवाल


ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की पिछले दिनों हेलिकॉप्टर दुर्घटना में हुई अकाल मौत ने ईरान और पश्चिम एशिया क्षेत्र की राजनीतिक स्थिति को लेकर अहम सवाल खड़े किए हैं। यह घटना इस्राइल-हमास संघर्ष की पृष्ठभूमि में ईरान और इस्राइल के बीच बढ़ते तनाव के बीच हुई है। ध्यान रहे, इस संघर्ष में 35,000 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें अधिकांश महिलाएं और बच्चे हैं।

खास बात यह कि ईरान इस संघर्ष का एक पक्ष है। यह इराक, सीरिया, लेबनान और यमन में अपने प्रॉक्सी के जरिए इस्राइली राज्य के खिलाफ प्रतिरोध में शामिल है और इसे ‘प्रतिरोध की धुरी’ बताता है। वैसे, शुरुआती जांच के मुताबिक, यह मौत एक दुर्घटना थी। इसके पीछे किसी तरह की अंतरराष्ट्रीय या घरेलू साजिश की संभावना को अधिकारियों ने खारिज कर दिया है।

उत्तराधिकारी कौन
इब्राहिम रईसी की इस अचानक और दुखद मृत्यु का पहला प्रभाव ईरानी राजनीति पर पड़ने वाला है। सबसे बड़ा सवाल जिस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है, यह है कि रईसी का उत्तराधिकारी कौन होगा। ईरान के लोगों के मन में दूसरा सबसे बड़ा सवाल यह है कि ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई का उत्तराधिकारी कौन बनेगा?

रखी मजबूत नींव
इब्राहिम रईसी एक कट्टर धार्मिक प्रचारक थे, जिन्हें अयातुल्लाह अली खामेनेई की अगुआई वाली ईरान की सर्वोच्च परिषद के सदस्यों का वरदहस्त हासिल था। 1980 के दशक में केवल 25 वर्ष की उम्र में वह ईरान के स्टेट प्रॉसीक्यूटर बन गए थे। उन्हें ईरान में इस्लामी शासन की मजबूत नींव रखने का श्रेय दिया जाता है। हालांकि इस क्रम में वह इस्लामी गणराज्य का विरोध करने वाले बहुत से लोगों की फांसी के लिए भी जिम्मेदार ठहराए जाते हैं। इस्लामी गणराज्य ईरान में उनके लंबे अनुभव को देखते हुए, उन्हें अक्सर सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता था।

बड़े बदलाव के आसार नहीं

बहरहाल, रईसी की मौत किसी भी तरह से ईरानी राजनीति में कोई बड़ा बदलाव लाएगी, इसके कोई आसार नहीं दिखते। हालांकि ईरान में नियमित शासन संचालन में उनकी अहम भूमिका रहती थी और वह कट्टरपंथियों की पसंद माने जाते थे। उनके नेतृत्व में, ईरान ने इस्राइल पर हमला करके अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया और चीन, भारत और रूस जैसी बड़ी शक्तियों के साथ दोस्ती की। हालांकि उन्होंने या धार्मिक नेतृत्व ने इस्राइल या अमेरिका के साथ सीधे टकराव मोल नहीं लिया, लेकिन इस क्षेत्र में अपनी सैन्य शक्ति का एहसास कराने में पीछे नहीं रहे।

विदेश नीति की कामयाबी

रईसी की विदेश नीति की प्राथमिकताएं कई लिहाज से सराहनीय मानी जाती हैं। उन्होंने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में रूस का समर्थन किया। उसे ड्रोन की सप्लाई की। रूस भी चीन को पीछे छोड़ते हुए ईरान में सबसे बड़ा निवेशक बन गया। चीन के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखने में भी वह उतने ही कामयाब रहे। वह 20 वर्षों में चीन का दौरा करने वाले पहले ईरानी राष्ट्रपति बने और अरबों डॉलर के 20 समझौतों पर हस्ताक्षर किए। 2023 में चीन को ईरान का तेल निर्यात 50% बढ़ गया।

परमाणु संवर्धन कार्यक्रम
उन्होंने 2023 में ईरान को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की सदस्यता दिलाई और 2024 में भारत के आमंत्रण पर वृहद-ब्रिक्स के सदस्य बने। उनके शासन के दौरान ईरान और सऊदी अरब के बीच कूटनीतिक संबंध स्थापित होना भी एक बड़ी घटना रही। यही नहीं अमेरिका, इस्राइल और अन्य शक्तियों की आपत्तियों के बावजूद उन्होंने परमाणु संवर्धन कार्यक्रम की योजना जारी रखी।

नाजुक हालात
यह त्रासदी ऐसे समय हुई है, जब इस्राइल और ईरान के बीच सैन्य तनाव चरम पर है। 1979 में एक इस्लामी राष्ट्र बनने के बाद से पहली बार ईरान ने सीधे इस्राइल पर हमला किया और जवाब में इस्राइल ने भी इस्फहान में हवाई हमले किए। इस्राइल-हमास संघर्ष के निकट भविष्य में अंत का कोई संकेत नहीं दिख रहा है। ऐसे में ईरान की विदेश नीति में बड़े बदलाव की कोई संभावना नहीं मानी जा सकती। पूर मामले का केंद्रबिंदु यह है कि ईरान में दो उत्तराधिकार कैसे तय होते हैं: एक नए राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है और ईरान के सर्वोच्च नेता का दीर्घकालिक उत्तराधिकारी कौन होता है।

बढ़ेगा दबाव
अमेरिका और इस्राइल मौजूदा हालात का फायदा उठाते हुए ईरान को राजनीतिक और आर्थिक तौर पर दबाव में लाने का प्रयास करेंगे। ईरान का परमाणु कार्यक्रम पहले से विवाद का विषय रहा है। इसी के चलते पश्चिम और व्यापक विश्व के साथ उसके संबंध सामान्य नहीं हो पाए।

गंभीर चुनौती
अगर ज्यादा दबाव डाला गया तो संभव है कि ईरान, चीन और रूस के ज्यादा करीब चला जाए। ऐसा हुआ तो क्षेत्र और विश्व में गंभीर चुनौती की स्थिति पैदा हो सकती है। कुल मिलाकर, ईरान के भविष्य के लिहाज से यह देखना दिलचस्प होगा कि वह इस्राइल-हमास संघर्ष पर कैसे प्रतिक्रिया करता है और अपने परमाणु मुद्दे को कैसे संभालता है।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स