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• Fri, 29 Dec 2023 11:02 am IST


तोताराम चंपत हो गया


कल शाम को तोताराम का पोता बंटी कह गया था कि बड़े बाबा, कल सुबह का चाय-नाश्ता हमारे यहां है। जैसे ही हम नाश्ते के समय तोताराम के यहाँ पहुंचे तो देखा बैठक में कोई नहीं। हमें बड़ी खीज हुई। एक तो ले देकर इतने बरसों में पहली बार नाश्ते के लिए बुलाया और अब खुद ही गायब। हमने कुढ़ते हुए ऊंचे स्वर में हांक लगाई- हमें नाश्ते पर बुलाकर कहाँ चंपत हो गया, जुमलेबाज! पीछे से तोताराम की आवाज आई, बोला- मेरा निमंत्रण राम मंदिर वाले चंपत राय का राम मंदिर आंदोलन के आदिपुरुष आडवाणी जी और मुरली मनोहर जोशी को न आने का कपड़े फाड़ू और सिर फोड़ू, अपमानजनक निमंत्रण जैसा नहीं है। यह वास्तविक निमंत्रण है । मैं तो बाजार से गरमागरम पकौड़े लेने गया था।

हमने कहा- लेकिन तू चंपत राय जी की बात को सही ढंग से नहीं समझ रहा है। उनका फर्ज बनता है बुजुर्गों के कष्ट का खयाल करने का। बिना बात बुजुर्गों को मात्र शोभा बढ़ाने के लिए इतना कष्ट देना ठीक नहीं लगता। ऐसे कठिन कामों के लिए मोदी जी हैं ना। जब देश के हर क्षेत्र में ‘ सबका साथ : सबका विकास : सबका विश्वास’ कार्यक्रम चल रहा है तो फिर क्या बुलाना और क्या न बुलाना। यहां तो रोम रोम में राम हैं। सियाराममय सब जग जानी है। क्या गुरुद्वारे में लंगर के लिए कोई किसी को निमंत्रण देता है? क्या केदारनाथ, बद्रीनाथ किसी को निमंत्रण भिजवाते हैं? वैष्णो देवी के भक्तों की और मोदी जी की बात और है। जब भक्तों को माता का बुलावा आता है तो वे चल पड़ते हैं या फिर जब गंगा मैया बुलाती है तब मोदी जी बनारस चले जाते हैं। आडवाणी जी और जोशी जी भी राम के बुलावे का इंतजार कर सकते हैं।

बोला- तुझे पता है ‘राम का बुलावा’ क्या होता है? फ़ोटो में जोशी जी की हालत तो जरूर दयनीय लगती है लेकिन आडवाणी जी अभी भी फिटफाट हैं। कहीं से नहीं लगता कि ‘राम’ के बुलावे का इंतजार कर रहे हैं। जब 4000 संत और 2200 विशिष्ट जन बुलाए गए हैं तो इन्हें भी साधारण डाक से उलटे मन से भिजवा देते एक निमंत्रण पत्र। लेकिन भिजवाया तो क्या संदेश! आप मत आना। इतना अपमान तो चंपत राय जी ने हमारा भी नहीं किया। हमें विधिवत निमंत्रण नहीं भेजा तो कोई बात नहीं लेकिन यह तो नहीं कहा कि मत आना।

हमने कहा- एक तरह से तो चंपत राय जी ने ठीक ही किया। मान ले बुला लेते और त्रिपुरा में विप्लव देव के शपथ ग्रहण समारोह जैसी अनदेखी होती तो सोच कितनी निंदा होती संस्कारी लोगों की। और फिर इस उम्र में दुख सहने की तो आदत हो जाती है लेकिन खुशी बर्दाश्त नहीं होती। कल को खुशी के अतिरेक में कुछ हो जाए तो ! बिना बात रंग में भंग पड़ जाएगा ।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स