Read in App


• Fri, 26 Apr 2024 1:03 pm IST


बोलती बंद पान


नब्बे के दशक की शुरुआत में देहरादून पहुंचा तो पता चला कि यहां बोलती बंद पान मिलता है। पहले तो मुझे लगा कि इसमें शायद कत्थे में ऐसा किवाम डाला जाता होगा, जिससे जीभ लड़खड़ा जाती होगी। या फिर लौंग का कोई सत डाला जाता होगा। ज्यादा लौंग खाने वाले कभी-कभी तुतलाने लगते हैं। पान का पत्ता एनेस्थीसिया का काम करता है, तो लौंग भी पीछे नहीं। किसी का दांत दर्द करता है तो लौंग का तेल लगाने की सलाह मिलती है, क्योंकि लौंग में भी एनेस्थीसिया वाले गुण होते हैं। कई लोगों को मैंने दांत दर्द में उसी दांत की ओर पान का बीड़ा दबाते भी देखा है। आयुर्वेद में भी दोनों को दर्द-निवारक बताया गया है, लेकिन दोनों दर्द भुलावक हैं, निवारक नहीं। निवारक तो उसे कहेंगे, जिससे परमानेंट निवारण मिल जाए। पान और लौंग, दोनों का असर जाते ही दर्द वापस आ जाता है।

बोलती बंद पान के बड़े बखान के बाद आखिरकार एक रात उससे मुलाकात हो ही गई। पता चला कि उसमें ढेर सारा मेवा भरकर उसकी साइज काफी बड़ी कर दी गई थी। इसके चलते पान मुंह में जाते ही न सांस भरने की जगह रह जाए, ना आवाज निकालने की। दुनिया भर के पान रसियाओं के मुंह से गूं-गूं की आवाज तब निकलनी शुरू होती है, जब गाल में गिलौरी सेट हो जाती है, और मुंह रस से सराबोर हो जाता है। मगर यहां तो गिलौरी सेट होने की कौन कहे, गिलौरी मुंह में जाते ही इंसान गूंगा बन जाए। इसे गिलौरी कहना स्वयं गिलौरी का अपमान होगा। यह गिलौरा था बल्कि गिलौरा से भी बड़ा अगर कुछ होता हो, तो वो था। वहां सब इसकी बड़ी तारीफ करते तो जल-भुनकर मैं कहता कि यह पान नहीं, पान का अपमान है। अब देहरादून जैसे शहर में तो वैसे ही पान खाने वाले कम हैं, और जो हैं, उन्होंने भी कभी गिलौरी का मान रखने के लिए पत्ता तक नहीं टरकाया। हमारे फैजाबाद में क्या मजाल कि कोई ऐसा पान लगा दे। लगा दे तो उसे चूना मिलाकर वो-वो बातें सुनने को मिलेंगी पान और कान, दोनों में खून उतर आए।

गिलौरी तो वो होती है, जो गाल में जाकर यूं सेट हो जाए, जैसे स्त्री के कान में बाली और पैर में पायल। धीमे-धीमे छनछनाती है, हौले-हौले रस बाहर आता है। रस पहले गाल, फिर गला और फिर आत्मा तर कर देता है। जिस तरह से कान में टायर और पैर में घंटाघर नहीं पहना जा सकता, उसी तरह से वह पान भी शास्त्रहीन समझा जाता है, जो मुंह को इतना भर दे कि रस तो दूर, हवा की ही जगह न रहे। जो कहते हैं कि पान खाया करो गुलफाम, जुबान काबू में रहा करेगी, वो ऐसे बोलती बंद अपमान के लिए नहीं कहते। वो उसी गिलौरी के लिए कहते हैं, जो दाहिने से बाएं गाल तक कथक करके इंसान की जुबान को सम्मोहित कर दे। एक दिन मैंने उस बोलती बंद पनवाड़ी से पूछा कि पान का ऐसा अपमान करने की हिम्मत तुममें आती कहां से है? वह बोला, हम क्या करें? यहां के पान रसिया इसी को पान समझते हैं!

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स