दुनिया में सब कुछ बदल रहा है। परिवारों का दायरा भी। न चाहते हुए भी हम अपनों से दूर हो रहे हैं। अच्छे रहन-सहन और सुनहरे भविष्य की तलाश में लोग आगे तो बढ़ रहे हैं लेकिन इस क्रम में बूढ़े मां-बाप उनसे छूटते जा रहे हैं। पिछले दिनों असम कैबिनेट ने इस लिहाज से एक अनूठी पहल की है। सरकार ने नए साल के मौके पर दो अतिरिक्त छुट्टियों का ऐलान किया है।
आने वाले नए साल के मौके पर जनवरी के महीने में असम के सरकारी कर्मचारियों को दो अतिरिक्त छुट्टियां मिलेंगी। ये छुट्टियां घूमने फिरने या मौज मस्ती के लिए नहीं बल्कि अपनों के साथ वक्त गुजारने के लिए होंगी। मां-बाप या सास-ससुर के साथ वक्त बिताने या उन्हें कहीं घूमने ले जाने के लिए यह छुट्टी असम सरकार ने दी है। दो अतिरिक्त छुट्टियां 6 और 7 जनवरी को मिलेंगी, जबकि अगले दो दिन वीकेंड हैं। कुल मिलाकर चार छुट्टियां हुईं। मां-बाप, सास-ससुर के ध्यान रखने के इतर, किसी और कारण के लिए यह छुट्टियां नहीं दी जाएंगी। इस स्पेशल छुट्टी का लाभ आईएएस, आईपीएस ऑफिसरों और ग्रेड 4 के स्टाफ से लेकर राज्य के मंत्रियों तक सभी उठा सकेंगे।
इस फैसले पर मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा कहते हैं कि उनको खुशी होगी अगर ये सभी कर्मचारी नए साल की शुरुआत में अपने माता-पिता के साथ अच्छा वक्त गुजारते हैं। इससे वे राज्य के लिए और अच्छा काम कर सकेंगे। सीएम बिस्वा ने बीते साल 15 अगस्त को कहा था कि उनकी सरकार कर्मचारियों को अपने बुजुर्गों की देखभाल के लिए हर साल, अतिरिक्त वीकली ऑफ देगी। असम एम्प्लाइज पैरेंट रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड नॉर्म्स फॉर एकाउंटेबिलिटी एंड मॉनिटरिंग एक्ट, 2017 के अनुसार सरकारी कर्मचारियों के लिए अपने बूढ़े माता-पिता के साथ दिव्यांग भाई-बहन की देखभाल करना अनिवार्य है।
इससे पहले साल 2018 में सर्बानंद सोनोवाल की सरकार में राज्य के वित्त मंत्री के तौर पर बिस्वा ने कहा था, सरकारी कर्मचारी उन पर निर्भर अपने माता-पिता की देखभाल करने में फेल हो रहे हैं। ऐसे में उनकी सैलरी से 10 फीसदी हिस्सा डायरेक्ट उनके माता-पिता के अकाउंट में दिया जाएगा।
असम की यह पहल अच्छी है, लेकिन देश के अन्य राज्यों का हाल अलग है। छोटा परिवार और पति-पत्नी दोनों के कमाऊ होने का चलन जोर पकड़ रहा है। परिवार नियोजन के तौर पर एक ही बच्चे को जन्म देने का भी ट्रेंड है। फिर वह चाहे लड़का हो या लड़की। अब अगर ऐसे में वह घर से दूर नौकरी कर रहा है तो माता-पिता खुद को अनदेखा और अकेला महसूस करते हैं। बुढ़ापे में खराब स्वास्थ्य के दौरान उनकी स्थायी देखरेख के लिए कोई नहीं होता और उनमें अकेलापन और बढ़ने लगता है। देश में मैटरनिटी लीव और पैटरनिटी लीव का प्रावधान तो है, लेकिन बुजुर्गों की देखभाल के लिए छुट्टियों की कोई व्यवस्था नहीं है।
साल 2019 में पीएम मोदी को एम्स में असिस्टेंट प्रफेसर डॉ. विजय गुर्जर ने पत्र लिखा। उन्होंने कहा कि बुजुर्ग मरीजों और उनके परिवारों के साथ बातचीत के दौरान उन्हें उन मरीजों के दर्द को महसूस करने का मौका मिला। जिन लोगों को अपने गंभीर रूप से बीमार माता-पिता की देखभाल के लिए छुट्टी लेनी पड़ती है, वे सैलरी में कटौती होने या नौकरी गंवाने की स्थिति में वित्तीय संकट से गुजरते हैं। उन्होंने अपील की कि जो लोग अपने माता-पिता या दादा-दादी की सेवा करते हैं, उनका सम्मान किया जाना चाहिए। साथ ही ऐसे बुजुर्गों की देखरेख के लिए अवकाश का प्रावधान भी बनाया जाना चाहिए। हालांकि अभी तक केंद्र सरकार की तरफ से ऐसे किसी प्रावधान के बारे में बात नहीं की गई है।
विदेशों में कई जगहों पर ओल्डएज होम का कल्चर है। वहां का समाज इसे स्वीकार भी करता है। लेकिन भारत में माता-पिता को वृद्धाश्रम भेजना प्रतिष्ठा पर प्रश्नचिह्न लगा देता है। यहां का समाज इसे आसानी से स्वीकार नहीं कर पाता। भारत में कम ही वृद्धाश्रमों में केयर क्वॉलिटी का स्टैंडर्ड अच्छा है। ऐसे में बुजुर्गों की देखभाल के लिए अवकाश का प्रावधान जरूरी लगता है। तो क्यों न मैटरनिटी और पैटरनिटी लीव की तर्ज पर बुजुर्गों की देखभाल के लिए भी छुट्टियों का प्रावधान जल्द से जल्द कर दिया जाए।
सौजन्य से - नवभारत टाइम्स