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DevBhoomi Insider Desk
• Mon, 22 May 2023 6:04 pm IST


कैसे कम हो सकती है लिंग आधारित हिंसा


कोविड-19 महामारी के दौरान लिंग आधारित हिंसा और मानसिक तनाव के मामलों में व्यापक वृद्धि देखी गई, जो बदस्तूर है। WHO के मुताबिक, अपने जीवनकाल में हर तीन में से लगभग एक महिला कम से कम एक बार यौन हिंसा का शिकार होती है। अब तो डिजिटल माध्यमों से भी उन्हें शिकार बनाया जा रहा है।

कैसी-कैसी हिंसा
कोविड-19 के दौरान कई अध्ययनों से देश में लिंग आधारित हिंसा के बारे में जरूरी सबूत और जानकारी मिली है। ध्यान रहे कि शारीरिक हिंसा हमेशा लिंग आधारित हिंसा (GBV) का प्रमुख रूप नहीं होती।

हिंसा की प्रकृति के संदर्भ में डेटा बताते हैं कि 72% GBV पीड़ितों ने भावनात्मक हिंसा का सामना किया। जैसे, अपमान, अभद्र भाषा और परिवार से दूरी।
15% ने आर्थिक हिंसा का सामना किया क्योंकि उन्हें मोबाइल फोन या आर्थिक संसाधन उपलब्ध नहीं कराए गए।
11% ने मारपीट और लात मारने जैसी शारीरिक हिंसा का सामना किया, जबकि 1% ने वैवाहिक बलात्कार सहित यौन हिंसा का सामना किया।

क्या कुछ झेला
GBV के चलते स्त्रियों को घाव, अनपेक्षित गर्भधारण, यौन संक्रमण और अवसाद के बाद के तनाव का सामना करना पड़ता है। कभी-कभी बात खुद को नुकसान पहुंचाने या आत्महत्या तक भी चली जाती है।

हमारे पास उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि GBV का सामना करने वाली महिलाओं में 62% हल्के, 27% मध्यम और 11% गंभीर मानसिक स्वास्थ्य से पीड़ित रहीं।
NCRB के आंकड़ों के मुताबिक पिछले तीन वर्षों में भारत में गृहणियों के बीच आत्महत्या के मामले बढ़े हैं। 2019 में 21,359, 2020 में 22,374 तो 2021 में 23,179 महिलाओं ने खुद की जान ले ली।
वहीं, महिला आत्महत्याओं में गृहणियों के मामले 2021 में बढ़कर 23,179 हो गए। पिछले वर्ष इनकी संख्या 22,374 थी।
क्या हैं रास्ते
इसकी रोकथाम के लिए मानसिक स्वास्थ्य के अलग-अलग अनुभवों और इनके बीच संबंधों पर अधिक शोध करने होंगे। सरकारी सहायता और सुरक्षा तंत्र को भी प्रभावी बनाना होगा।

देखा गया है कि कानूनी प्रकोष्ठ, पुलिस और अस्पताल जैसी सहायक सेवाओं से तुरंत सुविधा न मिलना, महिलाओं के पास वित्तीय संसाधन उपलब्ध ना होना और उनका घर से दूर होना आदि इस मामले में प्रमुख बाधाएं साबित हुई हैं।
एकीकृत तरीके से सक्रिय होने पर पीड़ित को समय से मदद मिल सकती है। कम लागत वाले आसान हस्तक्षेप भी जिंदगी बचाने में मददगार हो सकते हैं। मसलन, केवल साधारण टेली-परामर्श सेवाओं तक पहुंच भी बड़ा अंतर ला सकती है।
एक सहयोगपूर्ण और सुलभ रेफरल मार्ग (सखी केंद्र) भी लिंग आधारित हिंसा के मुद्दे से निपटने में महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।

समन्वय की कमी
भारत सरकार की ‘मिशन शक्ति’, अपनी दो उप-योजनाओं- ‘संबल’ और ‘सामर्थ्य’ के साथ महिलाओं की सुरक्षा और उनके सशक्तीकरण के लिए काम कर रही हैं। इनकी सफलता काफी हद तक अंतर-विभागीय समन्वय और सहयोग पर निर्भर करेगी। उदाहरण के लिए, महिला हेल्पलाइन (WHL-181) और सखी केंद्र एकीकृत तरीके से चलने के लिए बने हैं, पर कई राज्य अपनी ‘डायल-104’ जैसी हेल्पलाइन चला रहे हैं, जहां सखी केंद्र इनके साथ एकीकृत नहीं हैं। इसी तरह किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2000 और यौन अपराधों से बच्चों का बचाव अधिनियम 2012 जैसे विभिन्न कानूनी प्रावधानों के बीच आवश्यक संबंधों पर भी काम किया जाना बाकी है। इसके कारण कानूनी अधिकारों की सही जानकारी नहीं मिल पाती है और पीड़ित सरकारी तंत्र पर भरोसा नहीं करते।

बढ़े जागरूकता
लिंग-आधारित हिंसा (GBV) को संबोधित करने के लिए एक व्यापक, रेस्पॉन्सिव सिस्टम की जरूरत है, जो सभी पीड़ितों के लिए सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित करने की प्राथमिकता पर आधारित हो। इसके अलावा डेटा और अनुसंधान के आधार पर रोकथाम कार्यक्रमों पर ध्यान देना होगा। यही नहीं, इन पहलुओं पर सामुदायिक जागरूकता भी बढ़ानी होगी। पिछले दो वर्षों में कोविड-19 के मामलों में लगातार कमी आ रही है, लेकिन GBV की महामारी इतनी गहरी हो चुकी है कि कम होने का नाम नहीं ले रही।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स