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DevBhoomi Insider Desk
• Thu, 21 Jul 2022 3:45 pm IST


भारत पर क्यों मेहरबान हुआ अमेरिका


भारत और अमेरिका के रिश्तों में कांटा बने काटसा (काउंटरिंग अमेरिकन ऐडवर्सरीज थ्रू सैंक्शंस एक्ट को अब भारत के संदर्भ में बेअसर करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इससे देश के सामरिक हलकों में राहत महसूस की जा रही है। भारत के लिए इस कानून को बेअसर करने का प्रस्ताव अमेरिकी जन-प्रतिनिधि सभा के सदस्य रो खन्ना ने 15 जुलाई को पेश किया। अभी इसका अमेरिकी सीनेट से पारित होना बाकी है। सीनेट से पास होने के बाद इस पर अमेरिकी राष्ट्रपति की मुहर लगेगी और फिर भारत के लिए काटसा कानून का खतरा समाप्त हो जाएगा।

प्रतिबंधों का डर
काटसा कानून 2017 में बना था। तब कहा गया था कि इसका निशाना रूस है। 2014 में यूक्रेन का क्राइमिया इलाका हथिया लेने के कारण रूस को दंडित करने के मकसद से अमेरिका ने काटसा कानून पारित किया। इस कानून में प्रावधान है कि रूस से जो देश सैनिक साजोसामान खरीदेंगे, अमेरिका उन पर प्रतिबंध लगाएगा। संयोग से उन्हीं दिनों भारत और रूस के बीच एस-400 मिसाइलों का 5.4 अरब डॉलर का सौदा हुआ। 2018 में डॉनल्ड ट्रंप सरकार ने धमकी दी थी कि अगर भारत ने एस-400 मिसाइल सौदे पर अमल किया तो उसे प्रतिबंधों का सामना करना होगा। और बात सिर्फ एस-400 सौदे की ही नहीं थी। अमेरिका काटसा के बहाने एक तीर से दो निशाने साधना चाहता थाः

पहली, भारत रूस से रक्षा समझौते खत्म कर ले। मकसद था, रूस के रक्षा उद्योग को तबाह करना।
दूसरी, अमेरिका उम्मीद कर रहा था कि रूस से समझौता टूटने पर भारत उससे और अधिक हथियार खरीदेगा।

पिछले दो दशकों में भारत ने अमेरिका से 20 अरब डॉलर के सैनिक साजोसामान खरीदे भी हैं। लेकिन भारत के लिए रूस के साथ रक्षा संबंध को खत्म करना मुमकिन नहीं था। इससे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर आंच आती। असल में, भारत के पास आज भी दो तिहाई हथियार रूसी मूल के हैं। इसलिए अचानक रूस से हथियार और रक्षा उपकरणों की खरीद रोकने पर भारत की मुश्किल बढ़ जाती। भारत की तीनों सेनाएं रूसी हथियारों पर आश्रित हैं:

भारतीय वायुसेना का तीन चौथाई बेड़ा रूसी मूल का है।
भारतीय नौसेना भी रूसी मूल के युद्धपोतों पर काफी हद तक निर्भर है। नौसेना का विमानवाहक पोत रूसी है तो भारत की परमाणु पनडुब्बी विकास योजना में रूसी परमाणु विशेषज्ञों का योगदान है।
भारतीय थलसेना के मुख्य युद्धक टैंक रूसी मूल के हैं।
अमेरिका से भारत अपनी यह परेशानी बता चुका था। इसके बावजूद उसने काटसा के तहत प्रतिबंधों की धमकी दी तो इससे भारत को हैरानी हुई। अमेरिका की शर्तों पर भारत उससे दोस्ती करने को तैयार न हुआ। ना ही उसने रूस से नाता तोड़ने की बात मानी। भारत को इस मामले में कहना पड़ा कि काटसा अमेरिका का घरेलू कानून है, जिसे वह नहीं मानता।

भारत ने आखिरकार रूस से न केवल एस-400 मिसाइल सौदा संपन्न किया बल्कि कई अन्य रक्षा सौदे भी किए। इस बीच, अमेरिका की ओर से भारत को बदस्तूर धमकियां दी जाती रहीं। पिछले अप्रैल में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने फिर से काटसा का डर भारत को दिखाया। उन्होंने तब कहा कि भारत पर इस कानून को लागू करने का फैसला अभी नहीं लिया गया है। वह इशारों-इशारों में कह रहे थे कि अमेरिका के पास इस कानून के इस्तेमाल का विकल्प खुला है। इधर, भारत भी इन बातों की परवाह किए बगैर रूस से एस-400 मिसाइल सौदे की खेप हासिल करता रहा।

अमेरिका की मजबूरी
काटसा को लेकर अमेरिकी सरकार की दलील यही थी कि इस मामले में उसके हाथ बंधे हुए हैं। यह कानून अमेरिकी प्रशासन द्वारा नहीं बल्कि अमेरिकी कांग्रेस द्वारा बनाया गया है। डॉनल्ड ट्रंप के शासन काल में भी यही तर्क दिए जाते रहे और इसके बाद जो बाइडन के शासन काल में भी इस कानून का डर दिखाया जाता रहा। सच तो यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति चाहते तो भारत को इस कानून से छूट दिलाने वाले संशोधन का सुझाव स्वीकार कर अध्यादेश जारी कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। फिर भी अमेरिका से यह संदेश मिल रहा था कि वह इस कानून से भारत को छूट दे सकता है। इसकी तीन वजहें हैं:

पहली, काटसा के तहत भारत पर प्रतिबंध लगते तो अमेरिका के साथ उसके रिश्तों पर बुरा असर पड़ता। इससे आपसी रिश्ते कुछ दशक पीछे चले जाते
दूसरी, अमेरिका हिंद-प्रशांत में चीन को रोकने के लिए भारत को केंद्र में रखकर नीति बना रहा है। भारत के साथ रिश्ते खराब होने पर इस रणनीति पर बुरा असर पड़ता।
तीसरी, चीन खुलकर अमेरिका को चुनौती दे रहा है। उसे रोकने के लिए उसे आज भारत सहित अन्य सहयोगियों की जरूरत है।
कांग्रेसमैन रो खन्ना ने प्रतिनिधि सभा में कहा भी कि चीन की बढ़ती आक्रामकता को निरस्त करने के लिए अमेरिका को भारत के साथ खड़ा होना होगा। वैसे, भारत हथियारों को लेकर दूसरे मुल्कों के भरोसे नहीं रहना चाहता। इसलिए, भारतीय रक्षा मंत्रालय आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को साकार करने में जुटा है। भारतीय सेनाएं अपने देश में ही विकसित या उत्पादित शस्त्र प्रणालियों के बल पर दुश्मन से लड़ने की तैयारी कर रही हैं। हाल ही में तेजस एमके-1 के रूप में उसे अच्छी कामयाबी मिली है। इस लड़ाकू विमान को मलेशिया खरीदने जा रहा है। ब्रह्मोस मिसाइल के ऑर्डर भी भारत को मिले हैं, जिसे रूस के सहयोग से बनाया गया है। इसके बावजूद भारतीय सेनाओं को रूसी हथियारों से मुक्त करने में कम से कम दो दशक लगेंगे।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स