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• Fri, 17 Nov 2023 12:32 pm IST


'सूरज सबका अस्त होता है क्योंकि समय के आगे किसी की नहीं चलती'


सूरज सबका अस्त होता है फिर चाहे वो अंग्रेज रहे हों या फिर सहारा श्री सुब्रत रॉय. यह बात आज मन में गूंज रही है क्योंकि सुब्रत रॉय सहारा का निधन हो गया है। बचपन में जब होश संभाला और चीजों को समझना शुरू किया तो जो एक नाम सबसे ज्यादा सुनाई दिया- वो था सहारा। टीवी खोलो तो सहारा के इंटरटेन्मेंट और न्यूज चैनल, अखबार उठाओ तो सहारा के अखबार, गली-गली में घूमते हुए सहारा के एजेंट और लखनऊ आने पर सहारा के शहर। भरोसे का दूसरा नाम बन गया था सहारा। रोजाना का 100-200 रूपये कमाने वाले वे लोग जो इन्वेस्टमेंट के बारे में सोच भी नहीं सकते थे उनको बचत करने की हिम्मत सहारा ने दी क्योंकि आपको अपनी कमाई से रोज का 10 या 20 रुपये निकालना होता था। लोग इस बात से खुश रहते थे कि सिर्फ 10 या 20 रुपये निकालकर ही वे अपने सुनहरे भविष्य की इबारत लिख रहे हैं। उस दौर में सहारा रोजगार का साधन भी बन गया था। पढ़ाई पूरी होने के बाद या फिर पढ़ाई के दौरान जिसको कोई काम बेहतर समझ में नहीं आता रहा हो, वे सहारा के एजेंट बन जाते थे। इसको करते हुए वे कोई दूसरा काम भी कर पाते थे क्योंकि कलेक्शन के लिए रोज के 2-3 घंटे भी पर्याप्त होते थे। इन एजेंट्स का अपने ऐज ग्रुप में बड़ा रूतबा भी होता था।

सहारा का जो शाब्दिक अर्थ होता है, सुब्रत रॉय का ‘सहारा’ वास्तविक जीवन में उसका पर्याय बन गया था। एक वक्त था जब हर तरफ सिर्फ सहारा की गूंज सुनाई देती थी। क्रिकेट मैच देखने बैठो तो टीम इंडिया की जर्सी पर सहारा दिख जाता था, न्यूज चैनल देखो तो सहारा दिख जाता था और आपके पड़ोस (खासकर यूपी में) में सहारा के घूमते एजेंट रोजमर्रा की जिंदगी में आपको सहारा से रूबरू कराते थे। फिर एक दौर ऐसा भी आया जब सहारा की गूंज कम होने लगी। इसके बाद जब कभी सहारा के बारे में सुनने को मिलता तो बस इतना ही कि सहारा को लगा कोर्ट से झटका, सुप्रीम कोर्ट ने सुब्रत रॉय सहारा को लगाई फटकार। जिसकी कभी तूती बोलती रही हो उसके बारे में ऐसे हेडलाइन्स पढ़कर या सुनकर सबसे ज्यादा उनको दुख होता जिन्होंने सहारा के भरोसे सपने देखने शुरू किए थे।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश और सरकार के प्रयास से सहारा के निवेशकों को उनके पैसे लौटाने का प्रयास चल रहा है। ये पैसे उनको कब तक मिल पाएंगे और कितने मिल पाएंगे इसका कुछ पता नहीं, लेकिन अगर मिल जाते हैं तो इन छोटे-छोटे निवेशकों के अपने सपने पूरे ना हो पाने का दुख थोड़ा कम जरूर हो जाएगा।

सुब्रत रॉय सहारा का जीवन अपने-अपने आप में एक उदाहरण है कि कैसे अपनी मेहनत के जरिए एक सामान्य स्कूटर से चलने वाला आदमी शहंशाह की तख्त पर काबिज हो सकता है और कैसे वही आदमी अपनी गलतियों की वजह से अर्श से सीधा फर्श पर आ सकता है। एक वक्त था जब बड़ी से बड़ी हस्तियां सुब्रत रॉय सहारा का दरबार किया करती थीं, उनके साथ अपना नाम जोड़ने की कोशिश किया करती थीं, लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया जब इन्हीं हस्तियों ने पूरी कोशिश की कि सहारा के साथ इनका नाम ना जुड़े। सुब्रत रॉय सहारा का हश्र हमें ये बताने के लिए काफी है कि कुछ भी स्ठायी नहीं होता, एक दिन सब आपके हाथ से चला जाना होता है और आप सिर्फ उसे देखने के अलावा कुछ नहीं कर सकते। समय की ताकत बताने के लिए सहारा श्री का जीवन एक केस स्टडी की तरह है जो हमें यह समझाता है- ‘सूरज सबका अस्त होता है क्योंकि समय के आगे किसी की नहीं चलती।’

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स