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• Thu, 12 Oct 2023 6:17 pm IST


मैं 'मां' बनना चाहता हूं...


कोई आपसे पूछे कि दुनिया में सबसे ऊंचा ओहदा किसका है? …तो यकीनन जवाब होगा, माता-पिता का। अब इसी जवाब में भी सवाल खोज लिया जाए कि माता या पिता, दोनों में से ऊंचा स्थान किसका है तो जद्दोजहद किए बिना तपाक से ज्यादातर लोग कह देंगे कि मां से ऊंचा तो कोई भी नहीं। …लेकिन इस जवाब पर मुझे जरा-सी असहमति है।

इस बात में संदेह नहीं कि मां से ऊपर कोई है, लेकिन पिता होने के नाते एक छोटा-सा प्रश्न है। ऐसा क्या है कि संतान से प्रेम के चरम में पिता की उपस्थिति को मां से तिल भर कम आंका जाता है। सब कहेंगे कि मां 9 महीने तक अपने बच्चे को गर्भ में रखती है तो उसका हक थोड़ा ज्यादा है। …पर सोचा है कभी कि हर पिता शायद कह न पाए, लेकिन सोचता तो है ही कि उन 9 महीने में वह अपने बच्चे को सिर्फ मन में नहीं, बल्कि अपनी पूरी देह में रखता है। प्रकृति पति और पत्नी दोनों को गर्भ धारण का अधिकार देती तो बहुत से पुरुष अपने अंश को जन्म देकर सौभाग्यशाली महसूस करते ही, फिर क्यों पापा द ग्रेट होकर भी पुरुष इस मामले में कुछ पॉइंट पिछड़े महसूस करते हैं?

अचानक से यह सब बातें क्यों? दरअसल, हाल ही में 11 साल की बिटिया एक परिचित के पालतू बंदर से खेल रही थी। बेटी के कंधे पर बंदर के नाखूनों के निशान देखे तो एंटी रैबीज के लिए एक दोस्त को लेकर अस्पताल पहुंचा। इंजेक्शन के डर से रो-रोकर बेहाल हो रही बेटी को संभालते हुए मेरी भी आंखें भर आईं। खैर, जैसे-तैसे वैक्सीनेशन करवाया, लेकिन बच्ची थी कि चुप होने का नाम नहीं ले रही थी। अस्पताल से बाहर निकलने को था कि नर्सिंग स्टाफ से एक सलाह मिल गई- ‘थोड़ी देर बच्ची को मां की गोद में दे दीजिएगा, ठीक हो जाएगी।’

सलाह बुरी नहीं थी, लेकिन इन शब्दों ने मेरे मन में फिर वही सवाल उठा दिया। रहा नहीं गया तो नर्सिंग स्टाफ से पूछ लिया, ‘क्या बेटी पापा की गोद में ठीक नहीं हो सकती?’

कुटिल हंसी के साथ स्टाफ से जवाब मिला, ‘ऐसा नहीं है। पर मां तो मां होती है न!’

‘सही कहा, इसी तरह से पापा तो पापा होते हैं न!’ मैंने जवाब दिया।

यह सुनकर मेल नर्स की हंसी थोड़ी बढ़ गई। कुछ जवाब देता, इससे पहले बिटिया का रोना भी बढ़ गया।

इसी बीच कुढ़ता हुआ मैं अस्पताल से बाहर निकलने लगा। अस्पताल परिसर में गणपति बप्पा की प्रतिमा देखकर हाथ जोड़ लिए। सोच रहा था कि आज तो गणेशजी साक्षात प्रकट होकर मुझसे पूछ लें कि ‘क्या वरदान मांगते हो?’
कह दूंगा भगवान से कि मैं मां बनना चाहता हूं, क्योंकि हर किसी को समझाऊं कैसे कि प्यार का कोई पैमाना नहीं होता। मां जितना प्यार ही पापा भी बच्चों को करते हैं।

ये बात अलग है कि शरारत करते बच्चों को धमकी भरे लहजे में परिवार के लोग कह देते हैं कि आने दे तेरे पापा को… और शायद यहीं से शुरुआत हो जाती है बच्चों की नजर में पिता के ‘विलेन’ बनने की। …और ज़िंदगी की फिल्म में गाहे बगाहे एक हीरो पापा सुपरस्टार होते हुए भी मद्धम तारा बनकर रह जाता है।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स