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DevBhoomi Insider Desk
• Mon, 13 Jun 2022 1:19 pm IST


जब इंदिरा गांधी की जिद ने बनाई जीत की राह


जिस तरह से इस वक्त यूपी की आजमगढ़ लोकसभा सीट के लिए होने जा रहे उपचुनाव पर सबकी नजरें गड़ी हैं, कुछ ऐसी ही उत्सुकता 44 साल पहले भी आजमगढ़ को लेकर पूरे देश में देखने को मिली थी। उस वक्त भी आजमगढ़ लोकसभा सीट को लेकर ही उपचुनाव हो रहा था। वह साल 1978 था। इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस केंद्रीय सत्ता से बेदखल कर दी गई थी। यूपी में तो कांग्रेस के खिलाफ जनाक्रोश का आलम यह था कि राज्य की 85 सीटों (तब उत्तराखंड अलग राज्य नही बना था) में से एक भी सीट कांग्रेस नहीं जीत पाई थी। आजमगढ़ लोकसभा सीट पर जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में राम नरेश यादव ने कांग्रेस के चंद्रजीत यादव को हरा दिया था।

न जाने इंदिरा गांधी को क्या सूझी
लोकसभा चुनाव के बाद जब यूपी विधानसभा चुनाव हुए तो उसमें भी जनता पार्टी को बहुमत मिल गया। नतीजतन राम नरेश यादव राज्य के नए मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ा। उसी वजह से आजमगढ़ लोकसभा सीट के लिए के लिए उपचुनाव हुआ था। 1977 में मिली हार से बुरी तरह पस्त कांग्रेस ने पहले तो इस उपचुनाव से अपने को अलग करने फैसला कर लिया। पार्टी की तरफ से कहा गया कि उपचुनाव लड़ने के बजाय उसकी प्राथमिकता संगठन को मजबूत करने और जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं के जरिए जनविश्वास की बहाली करना है। लेकिन कुछ समय में ही उसका यह फैसला बदल गया। न जाने इंदिरा गांधी को क्या सूझी, उन्होंने उपचुनाव में पार्टी की तरफ से उम्मीदवार उतारने का एलान कर दिया। इसमें भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह थी कि उन्होंने उम्मीदवार घोषित किया मोहसिना किदवई को, जो यूपी के बाराबंकी जिले की रहने वाली हैं। उनकी गिनती उस वक्त इंदिरा गांधी के सबसे विश्वसनीय सहयोगी के रूप में होती थी।

फिर शुरू हुई प्रतिष्ठा की लड़ाई
जाहिर सी बात है कि जो सीट राज्य के मुख्यमंत्री की रही हो, वह सत्तारूढ़ दल के लिए तो प्रतिष्ठापूर्ण हो ही जाती है। लेकिन यह सीट इसलिए और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई थी क्योंकि यह जनता पार्टी सरकार में गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह के गृह प्रदेश का मामला था। रही-सही कसर इस बात से पूरी हो गई कि उन्होंने उस वक्त अपने चेले कहे जाने वाले राम बचन यादव को उम्मीदवार बना दिया। चूंकि केंद्र से लेकर राज्य तक में जनता पार्टी की सरकार थी, पहले यह माना जा रहा था कि कांग्रेस के न लड़ने से यह चुनाव के नाम पर महज एक औपचारिकता ही होगी, लेकिन इंदिरा गांधी ने न केवल मोहसिना किदवई को उम्मीदवार घोषित कर दिया, बल्कि चुनाव की कमान भी संभाल ली। चुनाव में मोहसिना किदवई और राम बचन यादव अपनी-अपनी पार्टियों के मोहरे भर बन गए थे, उपचुनाव की असल लड़ाई तो इंदिरा गांधी और चौधरी चरण सिंह के बीच की हो गई थी। चुनाव में इंदिरा गांधी के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं था, शायद यही वजह थी कि उन्होंने जनता पार्टी को घेरने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। कहते हैं, उस वक्त उन्होंने अपनी ‘किचन कैबिनेट’ के कुछ सहयोगियों से कहा था कि अगर वह उपचुनाव हार जाती हैं, तो भी जहां पार्टी पहुंच गई है, उससे और नीचे नहीं जा सकती। लेकिन अगर किसी भी सूरत में जीत की कहानी लिख गई तो फिर जनता पार्टी की सरकार पांच साल पूरे नहीं कर पाएगी।

सरकारी तंत्र के रवैये ने बदली हवा
नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद जब चुनावी अभियान शुरू हुआ तो शुरुआती कुछ दिन तो कांग्रेस के लिए कोई बहुत बड़ा स्पेस बनता नहीं दिखा। लेकिन चरण सिंह थे, जो इंदिरा गांधी को किसी भी सूरत में बर्दाश्त करने के मूड में नहीं थे। जानकार बताते हैं कि सरकारी मशीनरी के लिए चरण सिंह के जो ऑफ द रेकॉर्ड निर्देश थे, वह यही थे कि इंदिरा गांधी के लिए इतनी मुश्किल पैदा कर दो कि उनके लिए आजमगढ़ में प्रचार की गुंजाइश न बचे। जब केंद्रीय गृह मंत्री का ऐसा इशारा हो तो फिर कौन अफसर उन्हें खुश करने की रेस में पीछे रहना चाहेगा? फिर दौर शुरू हुआ सरकारी मशीनरी के हठ का। इंदिरा गांधी की सभा के लिए जहां भी अनुमति मांगी जाए, प्रशासन उसे खारिज कर दे। रहने के लिए गेस्ट हाउस की जब उन्होंने दरख्वास्त लगाई तो उसे भी खारिज कर दिया गया।

जीत ने लिख दी इंदिरा गांधी की वापसी की इबारत
यहीं से इंदिरा गांधी के लिए आजमगढ़ में सकारात्मक माहौल बना। इंदिरा गांधी तो ठहरी इंदिरा गांधी, उन्हें इसे भुना लेने में कामयाबी का रास्ता दिखने लगा। उन्हें जब गेस्ट हाउस में ठहरने की इजाजत नहीं मिली तो वह मंदिर में रहने पहुंच गईं। फिर क्या था, आजमगढ़ में इंदिरा गांधी की ही चर्चा शुरू हो गई। इसके साथ ही जनता पार्टी की जो हवा लोकसभा चुनाव के समय बनी थी, लोगों के मन में कांग्रेस के प्रति जो नाराजगी थी, वह कम होने लगी। इंदिरा ने अपनी आखिरी मीटिंग में बहुत ही भावनात्मक भाषण दिया। उन्होंने कहा था कि उनका मकसद चुनाव जीतना नहीं है। वह तो सिर्फ इतना चाहती हैं कि उनको लेकर आम लोगों में जो भी नाराजगी है, वह खत्म होनी चाहिए। नतीजा आया तो वह चौंकाने वाला था। मोहसिना किदवई ने राम बचन यादव को हरा दिया था। इसी जीत ने अगले चुनावों में इंदिरा गांधी की वापसी की इबारत लिख दी थी।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स