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• Mon, 28 Dec 2020 5:30 pm IST


समीर लाल के ब्लॉग उड़न तश्तरी से


अगर ससम्मान जीवन जीना है तो वक़्त के साथ कदमताल करो 

किसी ने कहा है कि अगर ससम्मान जीवन जीना है तो वक्त के साथ कदमताल कर के चलो अर्थात जो प्रचलन में हैउसे अपनाओ वरना पिछड़ जाओगे. अब पार्ट टाईम कवि हैंतो उसी क्षेत्र में छिद्रान्वेषण प्रारंभ किया. ज्ञात हुआ कि वर्तमान प्रचलन के अनुसारबड़ा साहित्यकार बनना है तो दूर दराज के विदेशी कवियों की रचनाऐं ठेलो.

पोलिश कवियत्रीरुमानिया का कविउजबेकिस्तान का शायरफ्रेन्च रचनाकारऔर साथ में इटेलियन चित्रकार की चित्रकारी ससाभार उसी चित्रकार केजैसे कि उसे व्यक्तिगत जानते हों. वैसेबात जितनी सरल लग रही हैउतनी है नहीं. मन में कई संशय उठते हैं. अतः मैने अपने मित्र को किसी के द्वारा प्रेषित एक बड़े साहित्यकार द्वारा छापी एक विदेशी कवि की रचना मय चित्र भेज कर उसके विचार जानने चाहे. त्वरित टिप्पणी में उसे हमसे भी ज्यादा महारथ हासिल है. तुरंत जबाब आ गया. कहते हैं कि कविता तो खैर जैसी भी होविदेशी होते हुए भी हिन्दी पर पकड़ सराहनीय है.

मैं माथा पकड़ कर बैठ गया. लेकिन फिर सोचता हूँ कि इसमें उसकी क्या गल्ती है. अव्वल तो ऐसी कविताओं के साथ लिखा ही नहीं होता कि यह अनुवाद है या भावानुवाद या किसने किया है और अगर गल्ती से लिख भी दें तो कहीं कोने कचरे में हल्के से और कवि का नाम और उनका देश बोल्ड में.

मगर फैशन है तो है. सब लगे हैं तो हम क्यूँ पीछे रहें. शायद इसी रास्ते कुछ मुकाम हासिल हो.

मूल चिन्ता यह नहीं की कैसे करेंमूल चिन्ता है कि किसकी कविता का अनुवाद करेंवो बेहतरीन रचना मिले कहाँ सेजो हिन्दी में भी बेहतरीनीयत कायम रख सकेघोर चिन्तन और संकट की इस बेला में हमें याद आया हमारा पुराना संकट मोचन मित्र. उसकी दखल हर क्षेत्र में विशेषज्ञ वाली है और इसी के चलते कालेज के जमाने में उसे संकट मोचन की उपाधि से अलंकृत किया गया था हम मित्रों के द्वारा. संकट कैसा भी होउन्हें पता लगने की देर है और वो उसे मोचने चले आयेंगे. अतः हमने खबर भेजी कि संकट की घड़ी हैचले आओ और वो हाजिर.

विषय वस्तु समझनेसुनने और अनेकों उदाहरण जो मैने प्रस्तुत कियेदेखने के बाद पूरी अथॉरटी से बोले: ’यारतुम भी तो कविता लिखते होएकाध गद्यात्मक कविता निकालो अपनी डायरी से.’ हमने धीरे से अपनी एक कविता बढ़ा दी. एक नजर देखकर बोलेहाँयह चल जायेगी क्यूँकि कुछ खास समझ नहीं आ रही कि तुम कहना क्या चाह रहे हो!!’

फिर उन्होंने इन्टरनेट का रुख किया और गुगल सर्च मारी: ’स्विडन के फेमस लोग’. सर्च के जबाब में ओलिन सरनेम चार पाँच बार दिखानोट कर लिया. दूसरा सरनेम दो बार दिखा तो वहाँ से फर्स्ट नेम ’पीटर’ निकाल लाये और शीर्षक तैयार ’स्विडन के प्रख्यात जनकवि पीटर ओलिन की कविता’. मेरा तो नहीं मगर इस संकट मोचक का दावा है कि बहुतेरे लोग इसी तरह चिपका रहे हैं अपनी रचनाऐं विदेशी नाम से और चल निकले हैं.

आगे के लिए भी सलाह दी है कि अगर कविता तैयार न हो तो किसी भी जगह से ८-१० लाईन का अच्छा गद्य उठा कर कौमा फुलस्टाप की जगह बदलो. शब्दों की प्लेसिंग बदलोथोड़ा कविता टाईप शेप देकर ठेल दोतुम तो कवि होइतना तो समझते ही हो. एक विदेशी नाम मय देश के चेपों और बसचल निकलोगे गुरु.

 

संकट मोचन तो हमारा संकट मोच चले गयेकहीं और किसी और का संकट मोचने और हम खोज रहे हैँ एक नया विदेशी नाम अपनी अगली कविता के लिए.

अपना काम का श्रेय किसी और को देने वाला हम जैसा दानवीर साहित्यकार कहीं न देखा होगा। इतिहास में नाम दर्ज होकर रहेगा.

-समीर लाल ‘समीर’