पिछले एक साल में देखा गया है कि महंगाई पूरी दुनिया में बढ़ती जा रही है, खासकर खाद्य पदार्थों की। इसके कई कारण हैं। मुख्य तो यही कि महामारी के चलते दुनिया भर में होने वाली सप्लाई में रुकावट आई है। लॉकडाउन लगे हैं, आने-जाने पर रोक लगाई गई। इसके साथ-साथ ईंधन के दाम भी बढ़े हैं। भारत में भी तेल के दाम के साथ बाकी महंगाई बढ़ रही है। रूस और यूक्रेन में जो युद्ध चल रहा है, उसके चलते आने वाले दिनों में मुद्रास्फीति के और बढ़ने की आशंका है। रूस दुनिया में तेल सप्लाई करने वाला दूसरा बड़ा देश है। उसका जो तेल यूरोप की तरफ जाता है, वह यूक्रेन से गुजरता है। जब तक इन दोनों देशों के बीच झगड़ा चलेगा, हम देखेंगे कि तेल के दाम भी बढ़ेंगे। और तेल के दामों के साथ खाद्य पदार्थों का भी दाम बढ़ता है।
खाने पर खर्च
इसके दो कारण हैं। पहला, उत्पादन के लिए डीजल-पेट्रोल एक महत्वपूर्ण इनपुट है। खाद या खेती में काम आने वाली दूसरी चीजों पर इसके दाम का असर पड़ता है। फसल को बाजार में पहुंचाने में भी तेल लगता है। खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ने का असर गरीब देशों में रहने वाले लोगों पर तो और ज्यादा पड़ता है। उनकी पूरी आय का ज्यादातर हिस्सा भोजन में ही चला जाता है।
उदाहरण के लिए, भारत में एक आम मध्यमवर्गीय परिवार जितना खर्च करता है, उसमें औसतन 30 प्रतिशत, यानी एक तिहाई खर्च खाद्य पदार्थों पर होता है। मगर गरीब आबादी में आमदनी का 50-60 प्रतिशत भोजन पर खर्च होता है। जैसे ही खाने का दाम बढ़ता है, उसका असर भोजन की गुणवत्ता पर पड़ता है। लोग अच्छी गुणवत्ता वाला खाना खरीदना कम कर देते हैं। बाकी चीजों की भी खरीद कम हो जाती है। उदाहरण के लिए, लोग स्वास्थ्य, शिक्षा या ट्रांसपोर्ट खर्च में कटौती करते हैं। एकदम बेसिक चीजों पर भी लोग खर्च घटा देते हैं। महामारी के चलते हमने देखा है कि दुनिया भर में भूख और खाद्य असुरक्षा बढ़ी है। संयुक्त राष्ट्र के फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक 2020 के बाद लगभग 12 करोड़ और लोग महामारी के चलते भूख की जद में आए हैं।
बात भारत की करें, तो पिछले साल से हमने खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ते देखे, खासकर दाल और खाद्य तेल के। दोनों चीजें हमारे खाने में बहुत ही जरूरी हैं। इनके बिना खाना पौष्टिक नहीं हो सकता। पिछले साल हमने देखा कि खाने के तेल के दाम लगभग दोगुना हो गए थे। अब जब पूरी दुनिया में दाम बढ़ रहे हैं तो भारत में भी इसमे और बढ़ोतरी की आशंका है। भारत में जितना खाने का तेल इस्तेमाल होता है, उसका 60 प्रतिशत बाहर से आता है। जो तेल हम लोग आयात करते हैं, उसमें सूरजमुखी का तेल प्रमुख है। इसका 80 प्रतिशत हिस्सा यूक्रेन से आता है। इससे हम समझ सकते हैं कि लगातार जो दाम बढ़ रहे हैं, वह तो है ही, लेकिन कुछ खाद्य पदार्थों के दाम और ज्यादा बढ़ेंगे।
भारत में महामारी के बाद हुए ढेरों सर्वे दिखा रहे हैं कि बेरोजगारी बढ़ी है, आय घटी है और इससे भूख और खाद्य असुरक्षा भी बढ़ी है। उदाहरण के लिए, पिछले दिनों राइट टु फूड, रोजी-रोटी अधिकार अभियान ने एक हंगर वॉच-2 के नाम से सर्वे किया। यह 14 राज्यों में लगभग 7 हजार लोगों के बीच किया गया। इनमें से 80 प्रतिशत ने कहा कि वे किसी ना किसी तरह की खाद्य असुरक्षा महसूस करते हैं। इनमें से भी 25 प्रतिशत लोग गंभीर खाद्य असुरक्षा महसूस करते हैं। इसी सर्वे में यह भी निकला कि 40 प्रतिशत से ज्यादा लोगों ने कहा कि महामारी से पहले फरवरी 2020 में जितना और जिस गुणवत्ता का खाना वे खा पाते थे, दो साल बाद अभी वे उससे भी कम खा पा रहे हैं।
खाद्य असुरक्षा और भूख की समस्या इस वजह से भी बढ़ी है कि सिर्फ खाद्य पदार्थों के दाम ही नहीं बढ़ रहे, एलपीजी गैस के भी दाम बढ़ रहे हैं, उस पर सब्सिडी घट गई है। सर्वे में शामिल दो-तिहाई लोगों ने कहा कि पिछले महीने वे गैस खरीद नहीं पाए क्योंकि उनके लिए उसका खर्च उठाना संभव नहीं था। भारत में हम देखते हैं कि जीडीपी ग्रोथ घट गई है और आर्थिक रिकवरी की बात हो रही है। सब लोग कह रहे हैं कि बाजार में मांग की समस्या है, लोगों की खरीदने की क्षमता गिर गई है। ऐसे में हम समझ सकते हैं कि एक तरफ भूख बढ़ी हुई है, दूसरी तरफ अगर दाम भी बढ़ेंगे तो लोगों की खरीदने की क्षमता और भी कम हो जाएगी।
कर सकते हैं कंट्रोल
इसमें सरकार दो काम कर सकती है। पहली यह कि एफसीआई के गोदामों में अभी भी 9 करोड़ टन से ज्यादा अनाज पड़ा हुआ है। सारे फील्ड सर्वे दिखाते हैं कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना में जो मुफ्त अनाज दिया जा रहा था, वह जिनके पास राशन कार्ड है, उन तक पहुंच रहा था और लोगों की काफी मदद भी कर रहा था। यह योजना इसी महीने मार्च में खत्म होने वाली है। इसे और बढ़ाया जाए। जब तक महामारी है, इसमें उन्हें भी जोड़ा जाए, जिनके पास राशन कार्ड नहीं है। दूसरे, सरकार यह कर सकती कि वह दाल और तेल की मंडियों से खरीद करे और इनको कम दाम में राशन की दुकानों के जरिए बांटे, ताकि इन चीजों के दाम स्थिर रहें। इससे अभी लोगों को न सिर्फ मदद मिलेगी, बल्कि यह लंबे समय के लिए भी अच्छा होगा। पिछली बार जब सरकार ने दाल खरीदकर कम दाम में उसे बेचा था, तब हमने देखा कि किसानों ने दाल का उत्पादन भी बढ़ा दिया और आयात पर हमारी निर्भरता भी कम हो गई।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स