अमेरिका और यूरोप में मंदी के डर से वहां के शेयर बाजारों पर फिर से दबाव बना है। मार्केट के जानकारों को लग रहा है कि आने वाले कुछ समय तक इन देशों में स्टॉक मार्केट की हालत बहुत अच्छी नहीं रहेगी। इस बीच, भारतीय शेयर बाजार अपने शिखर से कुछ ही फीसदी नीचे है। यही नहीं, 1 अप्रैल 2020 के बाद से दुनिया के शीर्ष 20 मार्केट्स में रिटर्न के लिहाज से यह सबसे मजबूत रहा है। इसमें महामारी और हाल में मंदी के डर से बाजार में हुए उतार-चढ़ाव का दौर भी शामिल है। 1 अप्रैल 2020 के बाद से नैशनल स्टॉक एक्सचेंज के बेंचमार्क इंडेक्स निफ्टी ने 114 फीसदी का रिटर्न दिया है, जो टॉप 20 देशों में सबसे अधिक है। इस बीच, अमेरिकी बेंचमार्क इंडेक्स डाओ जोंस इंडस्ट्रियल एवरेज का रिटर्न 42 फीसदी और जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस के मार्केट्स का 20-28 फीसदी रहा है। एशिया में चीन, दक्षिण कोरिया और जापान के मार्केट्स ने इस दौरान 13-24 फीसदी का रिटर्न दिया है। भारतीय बाजार को कई चीजों का फायदा मिल रहा है।
दुनिया के बड़े देशों में इसकी इकॉनमिक ग्रोथ सबसे तेज है। सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर की बेहतरी के लिए भारी-भरकम निवेश कर रही है। साथ ही, घरेलू निवेशकों का दबदबा और दखल बढ़ रहा है। अब सवाल यह है कि क्या आगे भी इंडियन मार्केट की यह मजबूती बनी रहेगी? कुछ वजहें हैं, जिनसे इसकी उम्मीद बंधती है। कुछ दशक पहले भारतीय कंपनियों पर काफी कर्ज था और कर्ज डूबने की वजह से बैंकों पर भी काफी दबाव बन गया था। आज कंपनियों पर कर्ज कम है और बैंकों की बैलेंस शीट भी काफी मजबूत हो गई है। इसलिए वे अधिक लोन की मांग पूरी कर सकते हैं, जो ग्रोथ में मददगार होगी। दूसरी वजह चीन की सुस्त पड़ती आर्थिक ग्रोथ है। वहां कोविड की वजह से अभी भी लॉकडाउन लग रहे हैं, जिससे जीडीपी ग्रोथ में कमी आई है। प्रॉपर्टी मार्केट दबाव में है और सरकारी सख्ती के कारण टेक्नॉलजी कंपनियों की ग्रोथ सुस्त पड़ गई है। इसलिए विदेशी निवेशक चीन से पैसा निकालकर भारत जैसे बाजार में लगा रहे हैं।
तीसरी, भारतीय बाजार के हक में एक और बात घरेलू निवेशक हैं। पिछले कुछ वर्षों में छोटे निवेशक शेयर बाजार में अधिक निवेश कर रहे हैं। इसलिए विदेशी निवेशकों के भारी बिकवाली करने का भी इसकी सेहत पर बहुत बुरा असर नहीं पड़ता। यह भी लग रहा है कि कच्चे तेल की कीमत में मौजूदा स्तरों से बहुत अधिक बढ़ोतरी नहीं होगी। अगर ऐसा होता है तो रिजर्व बैंक आक्रामक ढंग से ब्याज दरों में बढ़ोतरी नहीं करेगा। इससे ग्रोथ को मजबूती मिलेगी और मार्केट का आकर्षण निवेशकों के बीच बना रहेगा। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अमेरिकी और दूसरे बड़े बाजारों में गिरावट होगी तो भारतीय बाजार उसके असर से अछूता रहेगा। ऐसी खामखयाली पहले गलत साबित हो चुकी है।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स