सर्दियों में रात को सोते समय होजरी वाले कपड़े की पजामी पहनकर सोने से थोड़ी गरमाहट रहती है. दो पजामियाँ दो सर्दियों तक चल जाती हैं. इस सर्दी में दोनों घुटनों पर से घिस गई हैं. संयोग से आज जब तोताराम आया तो हम वही पजामी पहने हुए थे.
तोतारामने कमेन्ट किया- तेरे घुटने फटे हुए हैं. अच्छा नहीं लगता इस उम्र में इस तरह संस्कारहीन दिखना.
हमने कहा- हिंदी का मास्टर रहा है, पहले तो भाषा की फ़िक्र कर. घुटने नहीं फटे हुए हैं, घुटनों पर से पायजामा घिसा हुआ है. तुझे हमारे घिसे पायजामे से कोई परेशानी है तो अपना कोई नया पायजमा दे दे. हमें क्या फर्क पड़ता है, उसे पहन लेंगे. वैसे जहां तक संस्कारों को खतरे की बात है तो वह जींस से होता है, पायजामे से नहीं. और तू कौन उत्तराखंड का मुख्यमंत्री रामतीरथ रावत है जो गम बूट से घुटनों तक आँखें घुमा रहा है.
बोला- हम संस्कारी पार्टी के लोग हैं. हम ही संस्कारों की फ़िक्र नहीं करेंगे तो कौन करेगा.
हमने कहा- घुटनों का संस्कारों से क्या संबंध. हमने तो सत्तर-अस्सी साल के बूढों तक को निक्कर में घुटने दिखाते हुए पथ सञ्चलन करते देखा है.
बोला- कभी तो आरएसएस ही क्या, कांग्रेस सेवा दल वाले भी निक्कर पहनते थे लेकिन जींस कोई नहीं पहनता था. अब सामान्य कपड़े की फुल पेंट पहनने लगे हैं कि नहीं ?
हमने कहा- लेकिन संस्कारों से हम पुरुषों का क्या संबंध ? यह जिम्मेदारी तो महिलाओं की बनती है.
बोला- तभी तो रामतीरथ जी ने घुटनों पर फटी जींस पहने महिला को टोका.
हमने कहा- बिलकुल ठीक किया. जींस, वह भी घुटनों पर से फटी हुई तिस पर एन. जी. ओ. चलाती है. ऐसी महिलाएँ बहुत खतरनाक होती है. देखा नहीं पिछले दिनों बंगलुरु की एक एन.जी.ओ. चलने वाली लड़की ने कैसे ट्वीट करके देश को खतरे में डाल दिया था. वह तो समय पर जेल में डाल दिया नहीं तो पता नहीं क्या हो जाता ?
बोला- मास्टर, अब तू ज्यादा ही खिंचाई कर रहा है.
हमने कहा- जब कंगना ने फटी जींस पहनी तो रामतीरथ जी की निगाह नहीं पड़ी. तब तो लक्ष्मण की तरह-
नाहं जानामि केयूरे, नाहं जानामि कुण्डले। नूपुरे त्वभिजानामि नित्यं पादाभिवन्दनात्।।
हे प्रभु! मैं ना तो देवी सीता के बाजूबंद को पहचानता हूँ और ना ही उनके कुंडल को पहचानता हूँ। मैं नित्य चरण वंदना के कारण उनके पैरों की पायल को अवश्य पहचानता हूँ।
और अब पहले गम बूट देखे और फिर घुटनों पर घूमते हुए और ऊपर भी पहुंचे.
इसी तरह प्रियंका चोपड़ा जब निक जोनस के साथ अपने अन्तरंग फोटो पोस्ट करती है तो संस्कारों को कोई खतरा नहीं होता !
बोला- वह तो उन बेचारियों की मजबूरी है. यह तो अभिनय की दुनिया में होने कारण उनका धर्म बनता है.
हमने कहा- २००९ में एक फैशन शो में मोदी जी से साक्षात्कार में आम को खाने का ‘ख़ास’ तरीका पूछने वाले अक्षय कुमार द्वारा ट्विंकल खन्ना से अपनी जींस के बटन खुलवाना कौन सा संस्कार है.
बोला- उनका मोदी जी के कार्यक्रमों को जन-जन तक पहुंचाने में योगदान तो देखो. और फिर वे पुरुष हैं. पुरुष तो फटी जींस भी देखेंगे, देखकर विचलित होंगे और ज़रूरी हुआ तो भरी कौरव सभा में कुल वधू का चीरहरण भी करेंगे. महिला की कोई नहीं सुनेगा, धर्मराज भी नहीं, महामहिम भी नहीं. और फिर अक्षय कुमार की जींस घुटनों पर से फटी हुई भी कहाँ थी ? इसलिए संस्कारहीनता का कोई मामला नहीं बनता.
पुरुष तो महिला के संस्कारों का मूल्यांकन करते हैं.
लेखक - रमेश जोशी