भारत में कुछ बुद्धिजीवियों ने गाय को विवाद विषय बना दिया है, जबकि गाय तो प्रेम और वात्सल्य की मूर्ति है। यह तो दिलों का मेल कराती है।
गाँव में अपरिचित परिवार में सुबह-सुबह यह चाय गाय माता ने ही नसीब कराई है।
हुआ यह कि हम पांच लोग इंदौर से ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए निकले।
एक गाँव से गुजर रहे थे तो सड़क किनारे एक घर देखा, वहां चार-पांच गाय थी। सुबह का समय था तो गांव के शुद्ध वातावरण में गाय के शुद्ध दूध की चाय पीने का मन हुआ। हमने गाड़ी रोकी। हमारे साथ अभियंता श्री संजय चौधरी थे, उन्होंने गाड़ी से उतर कर सूर्य देवता को नमन किया। इसी क्रम में अपन राम ने गाड़ी में बैठे-बैठे गाय माता को प्रणाम किया।
संजय जी ने आंगन में पहुंच कर आवाज दी। घर से एक पुरुष बाहर निकल कर आया। संजय जी ने उसको निवेदन किया कि "भाई साहब, यदि गाय के दूध की चाय मिल जाये तो दिन बन जायेगा"। उन सज्जन ने कहा कि हम चाय बनाने का काम नहीं करते हैं। हालांकि, सड़क किनारे घर होने से कई बार लोग पूछते हैं। हम सबको मना कर देते हैं। लेकिन, आपको अवश्य पिलायेंगे"। यह कहते हुए उस सज्जन के चेहरे पर आत्मीयता और आतिथ्य का भाव स्पष्ट दिख रहा था।
हम उनकी यह बात सुनकर हैरान हुए कि ये किसी चाय नहीं बनाते, लेकिन हमारे लिए बना रहे हैं। ऐसा क्यों है?
हम सबकी चाय पीने की इच्छा पूरी हो रही थी। ऐसे में यह प्रश्न बेमानी था कि वे हमारे लिए चाय बनवाने के लिए तैयार क्यों हुए? परंतु मैं अपनी इस जिज्ञासा को अधिक देर तक दबा नहीं सका।
मैंने उत्सुकता दिखाते हुए पूछ ही लिया कि "आपकी इस कृपा का कारण क्या है"?
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा- "यह मेरी कृपा नहीं, बल्कि गाय माता की कृपा है। मैंने आपको गाय को प्रणाम करते हुए देख लिया था। मन में विचार आया कि ये भले लोग हैं जो गाय के प्रति श्रद्धा रखते हैं। अन्यथा, आजकल तो लोग गाय का मांस खाने की होड़ लगाते हैं। जब मैंने अपनी पत्नी को कहा कि दो गाड़ियां हमारे घर बाहर आकर खड़ी हुई हैं। उसमें बैठे लोगों ने हमारी गायों के सामने झुककर हाथ जोड़े हैं। उसे भी अच्छा लगा"।
हमारी बातचीत चल ही रही थी कि उस किसान की पत्नी और घर की मालकिन बाहर ट्रे में चाय के कप लेकर निकलीं। कप से उठ रही वाष्प के साथ अदरक और इलायची की सुगंध भी बता रही थी कि यह चाय बहुत विशेष है।
हम सबने उस गोसेवी किसान परिवार के आंगन में बैठकर चाय की चुस्कियां लीं। बाद में, जब हम जाने लगे तो संजय जी ने उन सज्जन को सौ रुपये देना चाहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया। संजय जी ने घर की मालकिन को अपनी बहन मानते हुए उसको पैसे देने का प्रयास किया तो उसने भी कह दिया- "भला कोई बहन चाय के बदले अपने भाइयों से पैसे लेगी"।
हम सबके लिए वह क्षण एक आत्मीय और मन को आनंदित करने वाला बन गया। यकीनन, भारत गांव में बसता है। गांव और गाय, हमारे जीवन के अभिन्न अंग हैं।
गो-माता की जय...