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DevBhoomi Insider Desk
• Mon, 22 Nov 2021 4:55 pm IST


अंडमान की उस जेल में


कुछ समय पहले सपरिवार पोर्टब्लेयर जाने का मौका मिला। यहां की सेल्यूलर जेल में बरसों कैद रहे अनेक स्वतंत्रता सेनानियों बारे में मेरे दोनों बच्चों ने भी पढ़ा था। कालापानी की ऐतिहासिक जेल में जैसे ही हम घुसे, वहां पर्यटकों की भीड़ दिखी। पर्यटक फोटो खिंचवा रहे थे। यह जगह अब एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल बन चुकी है। वहां हर जगह फटॉग्रफी कॉम्पिटिशन सा चल रहा था। मैं जेल में घूमने लगा। अंडमान के इस जेल परिसर में अंग्रेजों के प्रशासनिक और शातिर दिमाग की छाप स्पष्ट दिखती है। साढ़े तेरह बाई सात फुट की सैंकड़ों कोठरियां अब खामोश हैं। वीर सावरकर जिस कोठरी में रखे गए थे, उसे सभी पर्यटक बहुत गौर से देख रहे थे, और वहां भी फोटो सेशन चल रहा था। जेल के प्रांगण में एक ऐतिहासिक फोटो गैलरी भी है जिसमें विस्मृत ऐतिहासिक घटनाओं के बोलते चित्र हैं। ये तस्वीरें इतिहास को हमारे सामने लाकर खड़ा कर देती हैं। जेल प्रांगण में नारियल और सुपारी के लहलहाते वृक्ष और फूलों से खिलखिलाते पौधे थे। बाहर हर तरफ फैला समुद्र है जो पर्यटकों की जेलयात्रा को अझेल नहीं होने देता।

जेल प्रांगण में शाम को भारत सरकार के संगीत एंव नाट्य विभाग का म्यूजिक एंड लाइट शो था। शाम को हम भी वहां पहुंचे और टिकट लेकर बाकी पर्यटकों की तरह मेनगेट से अंदर गए। वहां अधिकतर लोग अपनी पसंद की बैठने की जगह खोज रहे थे तो उनके बच्चे इधर-उधर फुदक रहे थे। कुछ बच्चे लड़ भी रहे थे, लेकिन अपने-अपने मोबाइलों की कैद में जकड़े अभिभावक अपनी कैद के आनंद में रमे हुए थे। हमने भी जगह देखकर आसन ग्रहण किया। शो पहले हिंदी में, फिर अंग्रेजी में हुआ। मशहूर कलाकार मनोहर सिंह, ओमपुरी और टॉम आल्टर की आवाजों ने क्रांति के समय की क्रूर घटनाओं के विवरण को मर्मस्पर्शी बना दिया। ध्वनि और प्रकाश के माध्यम से वहां पर कुछ ऐसा माहौल बना कि हर किसी को अपने दिल से देश की धड़कन आती सुनाई देने लगी। सबको पहले ही बता दिया गया था कि इस शो की रेकॉर्डिंग अनुशासनात्मक कारणों से मना है, फिर भी पर्यटकों ने रेकॉर्डिंग करनी शुरू कर दी। कई बार जेल के कर्मचारियों ने आकर मना किया, फिर भी कई लोग रेकॉर्ड करते ही रहे। कितनों ने चुपके से अपने मोबाइल से ही ये रेकॉर्डिंग कर डाली।

यहां लगा कि जिस तरह से 15 अगस्त और 26 जनवरी हर कोई मनाता है, वैसे ही आजादी के आंदोलन पर बना यह कार्यक्रम भी सबको देखना चाहिए। हममें से बहुत लोग भूल चुके हैं कि किस तरह से यहां पर हमारे अपने अपना सर्वस्व न्योछावर कर आए। शो में दिखाया गया कि उन्होंने कितने अमानवीय जुल्म सहे। लेकिन कोई भी जगह या मौका हो, हम हिंदुस्तानी बिना बोले तो रह ही नहीं सकते। लोगों की खुसर-पुसर वाली बातचीत होती रही। एक कर्मचारी ने आकर मना किया, तब भी होती रही। लेकिन जैसे-जैसे आजादी का यह शो अपनी ऐतिहासिक यात्रा में आगे बढ़ा, धीमे-धीमे सभी चुप होते गए। कार्यक्रम खत्म हुआ। वहां पर मौजूद लगभग हर भारतीय की आंखें तरल थीं और मन में कुछ घुमड़ रहा था। बगल बैठी एक पर्यटक युवती भर्राई आवाज में बोली, ‘हर हिंदुस्तानी को एक बार यहां जरूर आना चाहिए’। हो सकता है कि उसका मंतव्य भ्रष्ट नेताओं और अफसरों से रहा हो, या फिर अपना इतिहास भूल चुके लोगों से। लेकिन सब कुछ जानने के बावजूद मुझे लगा कि अभी कितना कुछ बचा है जानने को।

सौजन्य से - नवभारत टाइम्स