महाराष्ट्र समेत कुछ राज्यों में कोरोना संक्रमण के नए मामले गंभीर चिंता के विषय हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कई दिनों पहले राज्य के लोगों को आगाह किया था कि वे लापरवाही न बरतें, और अगर उन्होंने कोरोना दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया, तो फिर मजबूरन सरकार को सख्त कदम उठाने पड़ेंगे। मुख्यमंत्री की चिंता की तस्दीक यह तथ्य कर देता है कि राज्य में 10 फरवरी से संक्रमण के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं और 22 फरवरी तक ही लगभग 60 हजार नए लोग इस घातक वायरस की चपेट में आ चुके हैं। जाहिर है, अमरावती में लॉकडाउन की वापसी हो चुकी है। कई अन्य जिलों में भी नियम सख्त कर दिए गए हैं। इधर दिल्ली, पंजाब में भी कुछ एहतियाती कदम उठाए गए हैं। महाराष्ट्र के अलावा मध्य प्रदेश, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, छत्तीसगढ़ और हरियाणा में संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। यह बढ़ोतरी 11 प्रतिशत से लेकर 81 फीसदी तक दर्ज की गई है। साफ है, देश में महामारी की नई लहर का खतरा मंडराने लगा है और किसी तरह की उदासीनता हालात को एक बार फिर गंभीर मोड़ पर ले जा सकती है। पिछले दिनों जब केरल में मामले तेजी से बढ़े थे, तब यह आशंका जताई गई थी कि कहीं इसके पीछे वायरस के नए वेरिएंट का योगदान तो नहीं है। इस बात की जांच अभी की जा रही है। मुंबई, केरल, पंजाब और बेंगलुरु के एकत्र सैंपल के जीनोम एनालिसिस के बाद ही विशेषज्ञ किसी नतीजे पर पहुंचेंगे। हालांकि, यह संतोष की बात है कि देश में टीकाकरण अभियान तेजी से आगे बढ़ रहा है और सोमवार तक एक करोड़, 14 लाख से अधिक लोगों को टीके लगाए जा चुके हैं। अगले चरण में 27 करोड़ लोगों को टीके लगाने का लक्ष्य है। इस कार्य में तेजी लाने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। सुखद यह है कि कुछ परोपकारी उद्यमियों ने सहयोग का भरोसा भी दिया है। दुनिया के तमाम देशों की तरह भारत भी एक बेहद मुश्किल दौर से निकलकर यहां तक पहुंचा है। लेकिन इसकी चुनौतियां कहीं बड़ी हैं, क्योंकि न सिर्फ इस पर अपनी विशाल जनसंख्या का भार है, बल्कि कोरोना से जंग में 70 से भी अधिक देश इसकी तरफ टकटकी लगाए बैठे हैं। भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को भी पटरी पर वापस लाना है। अर्थव्यवस्था में सुधार के लक्षण तो दिखाई दे रहे हैं, और इसकी मुनादी तमाम प्रतिष्ठित रेटिंग एजेंसियां भी कर रही हैं। मगर कोरोना को लेकर कोई भी नकारात्मक खबर इसकी आर्थिक प्रगति को बाधित कर सकती है। कोरोना के खिलाफ अब तक की जंग में तमाम उपलब्धियों के बावजूद कुछ चूक ऐसी हैं, जो लंबे समय तक इंतजामिया को चिढ़ाती रहेंगी। ये चूक नागरिकों के स्तर पर नहीं, बल्कि सरकारों के स्तर पर हुई हैं। खासकर बिहार और मध्य प्रदेश से कोरोना जांच में जैसी गड़बड़ियां उजागर हुई हैं, वे बताती हैं कि इतने गंभीर मामले में भी प्रशासनिक अमले का रवैया नहीं बदलता। यकीनन, आबादी और स्वास्थ्य सुविधाओं के मुकाबले भारत को महामारी से कम नुकसान हुआ, फिर भी देश इस तथ्य को नहीं बदल सकता कि उसके 1,56,400 से अधिक नागरिक अब तक इस महामारी की भेंट चढ़ चुके हैं। इसलिए प्रशासनिक तंत्र से लेकर नागरिक स्तर पर अभी पूरी सतर्कता बरती जानी चाहिए। किसी चूक के लिए कहीं कोई गुंजाइश न रहे।
सौजन्य - हिंदुस्तान