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DevBhoomi Insider Desk
• Wed, 23 Aug 2023 1:52 pm IST


सातों तार सितार के


शुजात अली खान सितार बजा रहे हैं। राग रागेश्वरी के झाले पर हैं। झाला संगीत का वह बिंदु होता है, जब भरे शोर के बीच कलाकार बिंदुओं और नेपथ्य से आते सुरों में बात करता है। आते तो ये सुर सितार से ही हैं, मगर कलाकार की उंगलियां और जादूगर की टोपी। सितार के सारे के सारे तार झनझना रहे हैं। कुछ को चोट ऊपर से दी जा रही है, और कुछ को नीचे से। इसी में सबसे तेज सुर में एक बिंदु पर आकर जब एक टन की आवाज कानों से टकराती है, तो लगता है कि भरी भीड़ में रास्ता मिल गया हो। कुछ ही सेकंड में उसी सुर की लय में अगला सुर बात करता है, फिर अगला सुर।

संगीत जादू है। लय भरे शोर में हो, या निपट खामोशी में, यह किसी चुंबक की तरह होता है। पैर के तलवों में गोंद सी लग जाती है। बिंदु से बिंदुओं की बात होने लगती है। सितार के सातों तार कंपकपाने लगते हैं। तार लोहे के हों या पीतल के, सब जैसे उंगलियों की किसी सधी हुई छुअन का इंतजार कर रहे होते हैं। उंगलियां उन्हें छूती हैं और बाती है गिरती बूंदों से लरजती कांपती, मगर कानों को सन्न कर देने वाली एक आवाज। लोहे और पीतल के मिलन से बनी एक आवाज। लगता है कि जब सब कुछ बह जाने को तैयार है, तब तबले की थाप आकर उसे संभालती है। ता धिक तिन्ना, ता धिक तिन्ना।

राग रागेश्वरी का भाव एक ऐसी विरहिणी का होता है, जिससे उसके प्रेमी ने मिलने का वादा किया होता है। प्रेमिका बताई हुई जगह पर पहुंचती है, इंतजार करने लगती है। वक्त चांद बनकर मन के आसमान में चढ़ता रहता है। क्षण भर आस बंधती है कि उसका प्रेमी उससे मिलने आ जाएगा, फिर क्षण भर में आस टूट जाती है। कुल मिलाकर यह नशे की ऐसी मालगाड़ी है, जो कभी चार कदम आगे तो कभी दो कदम पीछे चलती है। आखिर में गार्ड का डिब्बा होता है, जिसमें आमतौर पर गार्ड नहीं होता। ना लाल झंडी दिखाने की जरूरत, ना हरी झंडी दिखाने के लिए कोई। कलाकार अगर चाहे तो अकेले इसी राग को उम्रभर बजा सकता है, चाहे तो दस पंद्रह मिनट में खत्म कर सकता है।

सुर भरे बिंदुओं से बात करने वाले और भी राग हैं, उरुज पर भी ले जाकर छोड़ते हैं, मसलन हारमोनिका पर बजाया किंशुक उपाध्याय का राग जोग, जो बताता है कि गति में ही संगीत है। मगर रागेश्वरी की लय में अलग बात यही है कि प्रियतम की आस अंतत: वहां ले जाती है, जहां सब एकमेव हो जाता है। जहां सब सत्य है, सब शिव है, और सब सुंदर है और सबसे बड़ी बात यह कि सब नित्य है। सोचना चाहकर भी हम सोच नहीं सकते। देखना चाहकर भी आंखें हैं कि मुंदी जाती हैं। कहते हैं कि ब्लैक होल हो या फिर इंटरस्टेलर, इन जगहों में भी ऐसे ही हालात होते हैं। क्या संगीत हमें इंटरस्टेलर में लेकर जाता है? या फिर किसी ब्लैक होल में?

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स