आज घर के सिंहद्वार पर दस्तक हुई लेकिन उस दस्तक के साथ चुनौती देने वाली आवाज़ बड़ी मरियल सी थी जैसे चीन की चर्चा करते हुए हमारी राष्ट्रप्रेमी सरकार के सिपहसालारों के स्वर. कभी-कभी तो बेचारे नाम तक लेना भूल जाते है. पूछने पर कहते हैं- नाम में क्या रखा है ?हमारा इशारा समझो.
शब्द तोताराम के थे- अरे कायर हिन्दू
!
हमें अपनी वीरता के बारे में निश्चित
तौर पर कुछ भी पता नहीं है लेकिन यह तय है कि हम लाल किले पर भगवा झंडा फहराना तो
दूर, अपने घर के नीम से सीढ़ी लगाकर डंडे से
दातुन तक नहीं तोड़ते गिर जाने से डरते हैं, किसी को पाकिस्तान भेजना तो दूर, हम तो अपने कमरे के उस चूहे तक को नहीं भगा पाए जो हमारे घर की ही
रोटियाँ खाता है और हमारी ही किताबें कुतर देता है. हम भी विश्व के बहुत से लोगों
की तरह राम को बहुत सी बातों में अनुकरणीय मानते हैं लेकिन हममें ज़बरदस्ती चंदा
देने के लिए बाध्य करने और न देने पर इसी आधार पर हमारे राम प्रेम पर शंका करने
वाले भक्तों से तर्क करने का साहस जुटाने की बजाय अपनी पेंशन भोगिता की आड़ में
पीछा छुड़ाते हैं. राम ने भले ही रावण को दो-दो अवसर दिए लेकिन ये हमारी बात तक
नहीं सुनना चाहते,
वैसे जब सब डिजिटल हो गया है तो यदि हमें कुछ भेजना होगा तो राम
चन्द्र सूर्यवंशी आत्मज दशरथ सिंह सूर्यवंशी, मूल निवासी फैजाबाद (परिवर्तित नाम अयोध्या) के नाम से चेक काटकर
भेज देंगे. भले ही धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के राष्ट्रपति राम मंदिर के नाम चन्दा
देने का समाचार छपवाते हैं लेकिन हम तो पाना नाम गुप्त रखने के लिए चेक पर भी अपना
नाम लिखने की बजाय “एक अकिंचन राम भक्त’ लिखना ही पसंद करते हैं. हम इस चंदे
के बदले अपने प्रभु से कुछ नहीं चाहते. ‘प्यार में सौदा नहीं..हे हे हे.
हमने तोताराम के शब्दों का इशारा
समझा. विकास,अच्छे दिनों और महंगाई के बावजूद
हममें जितना भी खून बचा था, वह उबलने लगा. हम बाहर निकले. तोताराम
ही तो है कोई शी जिन पिंग तो है नहीं जो हमारे सीने को देखकर भी नहीं डरेगा.
पूछा- किसे कह रहा है कायर हिन्दू ?
बोला- तुझे और किसे.
बड़ा एहसान फरामोश इंसान है. रास्ते
में शौच करे और आँखें दिखाए ऊपर से. हमारे ही घर आकर हमें ही कायर कहे. हमारी ही
चाय पिए और हमें ही हड़काए.
हमने कहा- खैर, हम इतने टुच्चे नहीं हैं कि तुझ जैसे
नाचीज़ के शब्दों से अपनी आस्था को आहत करें लेकिन यदि किसी देशभक्त सच्चे हिन्दू
की आस्था आहत हो गई तो सुधा भारद्वाज की तरह दो साल चार्जशीट ही फाइल नहीं
होगी.स्वामी स्टेंस की तरह चाय पीने के लिए स्ट्रा भी नहीं मिलेगी. वरवरा राव की
तरह सशर्त जमानत मिलेगी भी तो तब जब मरणासन्न हो जाएगा.इसलिए हम तुझे व्यक्तिगत
स्तर पर पूछते हैं कि क्या तुझे हमारे हिन्दू होने में शक है ?
बोला- नहीं.
हमने कहा- फिर हम कायर कैसे हो सकते
हैं ?
बोला- क्यों इतने वर्षों तक विदेशी
शासन को बर्दाश्त करना कायरता नहीं है तो और क्या है ?
हमने कहा- वह हमारी कायरता नहीं, उदारता थी. हम सर्व धर्म सम भाव में
विश्वास करते हैं. और फिर भागवत जी तो कहते ही हैं भारत में रहने वाले सभी हिन्दू
हैं.
बोला- तो फिर एन आर सी और सी ए ए क्या
है ?
हमने कहा- वह तो देश को द्रोहियों से
मुक्त करना है. यदि अब किसी की हमारी ओर आँख उठाने की हिम्मत होती हो तो बता. अब
हम आँखों में आँखें डालकर बात करते हैं. घर में घुसकर मारते हैं. हमारा सीना देखकर
ही सामने वाले की हवा खिसक जाती है.
बोला- तो यह बता वीरवर,जब मैंने तुझे पिछली बार कोरोना टीका
लगवाने के लिए कहा था तो क्यों हलाल-हराम के बहाने से खिसका गया था. अब देख कल
मोदी जी ने साठ साल वालों के लिए टीका शुरू होते ही सबसे पहले अपने आप, बिना इसी तामझाम के सीधे एम्स में
जाकर टीका लगवाया कि नहीं ? और टीका का विदेशी वाला नहीं, स्वदेशी वाला. जय आत्म निर्भर भारत.
असमिया अंगवस्त्र में. पुदुचेरी की निवेदा और केरल की रोसम्मा अनिल से टीका
लगवाया.
हमने कहा- एक तीर से चार शिकार, केरल में हिंदुत्व का प्रवेश, पुदुचेरी में जोड़तोड़, असम के लिए सन्देश और विपक्ष के टीका
न लगवाने के आरोप का उत्तर.
जहां तक हमारी बात है तो तोताराम, बहुत से देशों में लोगों को कोरोना के
टीके उपलब्ध नहीं हो रहे हैं. हम अपने हिस्से का टीका उनके लिए सहयोग स्वरूप देना
चाहते हैं.
बोला- मास्टर, तेरा भी ज़वाब नहीं. रपट पड़े की हर गंगे. अपनी कायरता को उदारता का बाना मत पहना.
सौजन्य - नवभारत टाइम्स