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DevBhoomi Insider Desk
• Fri, 23 Sep 2022 4:53 pm IST


पुतिन ने क्यों दिखाया एटम बम का डर


यूक्रेन के खिलाफ रूसी सैन्य कार्रवाई अब आठवें महीने में प्रवेश कर चुकी है। अब तक रूसी सेना अपना सामरिक लक्ष्य हासिल करने में विफल रही है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सोचा था कि यूक्रेन में रूसी सैनिकों के घुसने के दो-तीन दिनों के भीतर ही यूक्रेन की सेना के जवान मैदान छोड़ भाग खड़े होंगे और वहां का राजनीतिक नेतृत्व आत्मसमर्पण कर देगा। यूक्रेन को रूस के खिलाफ उकसाने वाले अमेरिका और इसके यूरोपीय नैटो सहयोगियों को भी नहीं लग रहा था कि यूक्रेन के सैनिक इतने लंबे वक्त तक रूसी सेना का मुकाबला कर पाएंगे। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए सब कुछ लुटा देने के संकल्प ने उनकी सेना का मनोबल बढ़ाया।

हथियारों की सप्लाई
यूक्रेन के आसमान पर रूसी सेना का कब्जा है और हवाई हमलों के जरिए उसके कई शहरों को तहस-नहस कर दिया गया है, इसके बावजूद यूक्रेन के जमीनी सैनिक टैंकों और बख्तरबंद लड़ाकू वाहनों पर सवार रूसी सैनिकों से जमकर लोहा लेने लगे तो अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों ने यूक्रेन को हथियारों की सप्लाई शुरू कर दी। अब हालात रूस के खिलाफ हो गए हैं।

रूसी सैनिक खारकीव जैसे कब्जे में आ चुके शहरों से भी पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिए गए हैं, जिससे रूसी राष्ट्रपति पुतिन हताश हैं।
इस सैन्य कार्रवाई में रूस ने आधिकारिक तौर पर साढ़े पांच हजार सैनिकों के मारे जाने की बात स्वीकार की है। हालांकि यूक्रेन का दावा है कि इससे कई गुना अधिक रूसी सैनिकों ने अपनी जान गंवाई है।
इसलिए रूस में पुतिन के खिलाफ आक्रोश बढ़ता जा रहा है।
हालांकि रूस ने पूर्वी दोनबास इलाकों पर अपना कब्जा जमा लिया है और इसके दोनेत्स्क और लुहांस्क इलाकों में जनमत संग्रह के जरिए यूक्रेन के एक बड़े हिस्से पर सैन्य कब्जे को जनतांत्रिक जामा पहनाने की कोशिश कर रहा है। फिर भी पुतिन की स्थिति कमजोर है और लगता है कि उन्हें इसका अहसास भी हो गया है।
राष्ट्रपति पुतिन के लिए जीवन-मरण का सवाल खड़ा हो गया है। यदि वह यूक्रेन के खिलाफ सैन्य कार्रवाई को वापस ले कर शांति की ओर बढ़ने की कोशिश करते हैं तो न केवल रूस के भीतर यूक्रेन पर हमला करने के उनके फैसले पर गंभीर सवाल उठने लगेंगे बल्कि अमेरिका और यूरोपीय देश भी पुतिन को दंडित किए बिना नहीं छोड़ेंगे। अपनी प्रतिष्ठा बचाए रखने के लिए जरूरी है कि पुतिन किसी भी तरह से यूक्रेन के दोनबास इलाके पर स्थायी रूप से कब्जा कर लें।
ऐसा मुमकिन होता नहीं दिख रहा और इसीलिए पुतिन ने अपने देश के तीन लाख से अधिक रिजर्व सैनिकों को लामबंद करने का ऐलान किया है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चेतावनी दी है कि रूसी संप्रभुता की रक्षा के लिए वह अपने हथियार भंडार में मौजूद किसी भी शस्त्र की प्रयोग करने से नहीं चूकेंगे।

वैसे उन्होंने परमाणु बम का नाम नहीं लिया है, लेकिन उनकी धमकी का तात्पर्य यही है कि अपनी प्राण रक्षा के लिए वह परमाणु बम का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। गत फरवरी माह में जब पुतिन ने यूक्रेन के खिलाफ सैन्य कार्रवाई शुरू की थी, तब भी उनकी ऐसी ही धमकी से अमेरिका और नैटो के देश सहम गए थे। इसीलिए इन देशों ने जवाबी सैन्य कार्रवाई से परहेज किया था। हालांकि उन्होंने यूक्रेन को कई तरह की शस्त्र प्रणालियों की सप्लाई कर उसकी सैन्य ताकत में जान फूंक दी। इसी का नतीजा है कि यह युद्ध लंबा खिंचता जा रहा है।

चीन भी फिक्रमंद
अब स्थिति यह है कि रूस अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अलग-थलग पड़ता जा रहा है। यूक्रेन में लड़ाई जारी रहने से जहां रूस के साथी चीन ने चिंता जाहिर की है, वहीं उसके पुराने दोस्त भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सलाह दी है कि यह दौर युद्ध का नहीं है। सवाल है कि ऐसे में भी क्या पुतिन मानेंगे? उन्हें मनाने के लिए क्या करना होगा?

इतना तय है कि अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए पुतिन कुछ भी कर सकते हैं, लेकिन यूक्रेन के सामने झुकते हुए नहीं दिख सकते।
पुतिन अपने राजनीतिक जीवन को भी दांव पर लगा चुके हैं। ऐसे में बीच-बचाव से भी कुछ हासिल होने के आसार नहीं हैं।
यदि लड़ाई रोकने के लिए उनसे कोई समझौता करना है तो यूक्रेन को ही कुछ झुकना होगा।
कम से कम दोनबास इलाके पर उसे अपना दावा छोड़ना होगा, जहां रूसी बोलने वाली बड़ी आबादी रहती है।
पुतिन खाली हाथ युद्ध के मैदान से नहीं लौट सकते। वह परमाणु बम हाथ में लेकर दुनिया को ब्लैकमेल कर रहे हैं। ऐसे आपा खो चुके पुतिन को मनाने में यदि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को कामयाबी नहीं मिली तो क्या वह अपना अंतिम ब्रह्मास्त्र चला देंगे? यह कहना मुश्किल है।

भारत से उम्मीद
इन्हीं दिनों न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा का अधिवेशन चल रहा है। इसमें विदेश मंत्री एस जयशंकर भारत की अगुवाई कर रहे हैं और विभिन्न पक्षों के विदेश मंत्रियों से बैठकों में व्यस्त हैं। पश्चिमी देश उम्मीद कर रहे हैं कि रूस से निकटता होने की वजह से भारत उसे मनाने की कोई पहल करेगा, लेकिन जिस तरह नरेंद्र मोदी से मुलाकात के दो दिनों बाद ही पुतिन ने तीन लाख सैनिकों की लामबंदी और हर तरह के हथियारों के इस्तेमाल की धमकी दी है, उससे लगता नहीं है कि वह किसी का बीच-बचाव आसानी से मानेंगे। निश्चय ही शांति की उम्मीद करने वालों को इससे निराशा होगी।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स