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DevBhoomi Insider Desk
• Thu, 5 Oct 2023 12:49 pm IST


जल्द सजा मिले, तभी बाज आएगा मिलावट माफिया


पिछले हफ्ते आगरा की एक फैक्ट्री से दवाइयों के जब्त किए गए नमूनों की रिपोर्ट आई। दो फैक्ट्रियों से लिए 30 सैंपलों में से 24 फेल निकले। सरकारी एजेंसियों के मुताबिक, यहां से नकली दवाएं भारत सहित पाकिस्तान और बांग्लादेश तक भेजी जाती थीं। पिछले हफ्ते ही पुलिस ने गाजियाबाद में नकली दवाओं का एक बड़ा रैकेट पकड़ा। वैसे, यह कोई नया मामला नहीं है। कुछ समय पहले भी जांबिया और उज्बेकिस्तान में भारत में बने कफ सिरप पीने से बच्चों की मौत की घटना सुर्खियां बनी थीं। नकली दवाओं को लेकर धरपकड़ भी चलती रहती है, लेकिन इनका धंधा बढ़ता ही जा रहा है।

दवा का धंधा

दुनिया में नकली या घटिया दवाओं का कारोबार करीब 1 फीसदी है, पर भारत और पाकिस्तान जैसे देशों में यह लगभग 13 फीसदी या इससे ज्यादा है। यहां का हाल जानने पर साफ हो जाता है कि दुनिया से 13 गुना ज्यादा मिलावट यहीं क्यों है।

भारत में स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च में 50 से 80 फीसदी हिस्सा दवाओं का होता है।
142 करोड़ आबादी में हर साल करोड़ों लोग बीमार होते है। सिर्फ कैंसर के 14.6 लाख मामले 2022 में आए, जो इस साल 15.3 लाख तक पहुंच सकते हैं।
भारत में हर 40 सेकंड में एक स्ट्रोक होता है और हर 4 मिनट में एक जान जाती है। हर साल करीब 1.85 लाख स्ट्रोक के मामले सामने आते हैं।
हर साल लगभग 2 लाख के करीब लोग लिवर की बीमारी से तो 2 लाख लोग किडनी की बीमारी से मरते हैं।
हर साल करीब 24 लाख लोगों को फूड पॉइजनिंग होती है, जिसमें 4 लाख लोग जान गंवा देते हैं। प्रदूषण से इनडायरेक्टली हर साल बेतहाशा मौतें होती हैं।
बीमारी और मौत के आंकड़े बेहद डरावने हैं। मगर यही चीज नकली दवा बनाने वालों को बड़ा बाजार उपलब्ध कराती है। नकली दवा के खिलाफ बने कानून में दवा से मौत होने पर उम्रकैद तक की सजा है, लेकिन आज तक ये किसी को मिली नहीं है। इसी से नकली दवा माफिया बेखौफ अपना काला कारोबार चलाए जा रहे हैं।

मिलावट ही मिलावट

यह तो रहा दवा का मामला, मगर मिलावट तो लगभग हर खाने-पीने की चीज में हो रही है और उससे नुकसान भी। दूध को ही लें। गरीब हो या अमीर, दूध तो हर किसी की जरूरत की चीज है। 2019 के आंकड़े के अनुसार देश में केवल 17 करोड़ लीटर दूध पैदा हुआ, मगर खपत हुई 64 करोड़ लीटर की। बाकी का डिफरेंस कैसे पूरा हुआ? जाहिर है, बाकी का दूध मिलावटी था जो डिटर्जेंट पाउडर, यूरिया, कास्टिक सोडा और अन्य केमिकल मिलाकर बना। इसी से घी और मावा भी बना और इसी से लिवर, किडनी खराब हुई, हार्ट से लेकर ब्रेन स्ट्रोक बढ़ा। यही स्थिति नकली मसालों की भी है। नकली चावल और नकली दाल तो पहले से ही थे, अब तो अंडे भी नकली आने लगे। नकली कोल्ड ड्रिंक, नकली शरबत भी बाजार में छाए हैं। फलों-सब्जियों को तेजी से पकाने-बढ़ाने और चमकीला बनाने के काम आने वाले केमिकल और इंजेक्शन भी जहर का काम करते हैं। गाय-भैंस को दूध बढ़ाने के लिए इंजेक्शन दिए जाते हैं। वे भी बहुत हानिकारक हैं।

बेखौफ माफिया

भारत में नकली या मिलावटी सामानों के लिए 2006 में कम से कम 10 लाख जुर्माना और 6 महीने की सजा की व्यवस्था की गई। वहीं, PFA एक्ट की धारा 7/16 में 3 साल तक की सजा की व्यवस्था हुई। लेकिन सारी कवायद सुस्ती, लाचारी या भ्रष्टाचार के हाथों दम तोड़ती दिखती है क्योंकि नकली और एक्सपायर सामान मार्केट में भरे पड़े हैं, जिनकी तीज-त्योहारों को छोड़ जल्दी कभी जांच ही नहीं होती। सवाल है कि मौत का यह कारोबार कब बंद होगा? कौन सी सरकार या व्यवस्था इन पर लगाम कसेगी? या फिर ऐसी उम्मीद करें कि खुद नकली दवा के कारोबारी सुधर जाएंगे? जाहिर है, ऐसी उम्मीद बेमानी है। तरीका यह है कि अमेरिका की ही तरह ऐसे मामलों पर तेजी से सजा मिलने की व्यवस्था की जाए, नहीं तो मिलावट माफिया यूं ही बेखौफ रहेंगे।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स