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DevBhoomi Insider Desk
• Thu, 21 Sep 2023 3:37 pm IST


संघ के लिए सनातन का मतलब धर्म नहीं


पुणे में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार के संगठनों की अखिल भारतीय समन्वय बैठक बेहद महत्वपूर्ण थी। वर्ष में एक बार आयोजित इस बैठक में संघ से जुड़े सारे संगठनों के शीर्ष प्रतिनिधि अपने कामकाज के ब्योरे के साथ भविष्य की योजनाएं भी सामने रखते हैं।

बढ़ गई थी दिलचस्पी

विरोधी वैसे भी आरोपों और विरोध से संघ को चर्चा में बनाए रखते हैं। लेकिन बैठक के पहले कुछ ऐसी घटनाएं भी हुईं, जिनकी वजह से लोगों की दिलचस्पी इसमें और बढ़ गई थी।

तमिलनाडु के सीएम एम के स्टालिन के बेटे और राज्य में मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने सनातन को बीमारी की संज्ञा देते हुए इसके उन्मूलन का आह्वान कर दिया, जिस पर देश में हंगामा मचा हुआ है। हालांकि संघ ने‌ इस पर कोई औपचारिक बयान नहीं दिया।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपील की थी कि देश का नाम भारत है और इसका ही प्रयोग किया जाए। उसके कुछ दिनों बाद G20 नेताओं के सम्मान में आयोजित भोज के निमंत्रणपत्र में प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखा गया। ऐसे में भारत और इंडिया के विवाद पर संघ क्या कहता है, इसका भी सबको इंतजार था।
I.N.D.I.A. गठबंधन लगातार संघ की विचारधारा के विरुद्ध राजनीति करने की बात कर रहा है। राहुल गांधी ने विदेश में संघ का नाम लेकर इसके हिंदुत्व को अल्पसंख्यकों, दलितों और पिछड़ों के खिलाफ बताया था।

संघ अक्सर आरोपों और विरोध पर प्रतिक्रिया नहीं देता। उसका चरित्र इन सबसे अप्रभावित रहते हुए शांतिपूर्वक काम करने का है। समन्वय बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य ने भी इन आरोपों पर कुछ नहीं कहा। सनातन संस्कृति को लेकर पूछे गए सवाल का जवाब उन्होंने अवश्य दिया। उन्होंने चार बातें कहीं।

पहली, सनातन का अर्थ रिलीजन नहीं है। यानी यह किसी मजहब का पर्याय नहीं है।
दूसरी, संघ की दृष्टि में सनातन सभ्यता एक आध्यात्मिक लोकतंत्र (स्पिरिचुअल डेमोक्रसी) है।
तीसरी, जो लोग सनातन को लेकर वक्तव्य देते हैं, उन्हें पहले इस शब्द का अर्थ समझ लेना चाहिए।
चौथी, देश का नाम भारत है, भारत ही रहना चाहिए। प्राचीन काल से यही प्रचलित नाम है।
ध्यान रहे, इसमें सनातन के उन्मूलन की बात करने वालों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं है। सरसंघचालक ने एक भाषण में कहा था कि हमें विरोधियों का भी विरोधी नहीं होना है। घटनाओं पर राजनीति के वर्चस्व के कारण‌ बैठकों को राजनीतिक दृष्टि से देखा जाता है। हालांकि समन्वय बैठक में बीजेपी की ओर से अध्यक्ष जेपी नड्डा और संगठन महासचिव बीएल संतोष मौजूद थे, इसलिए उसे राजनीतिक रंग देना आसान था। लेकिन किसी संगठन को उसके अनुसार विश्लेषित करके ही सचाई के निकट पहुंचा जा सकता है। और सच यही है कि ऐसी बैठकों में राजनीति पर बातचीत नहीं होती। समन्वय बैठक का उद्देश्य यह होता है कि सारे संगठन एक दूसरे के क्रिया-कलापों से अवगत रहें और जहां परस्पर सहयोग कर सकते हैं, करें। संघ मातृ संगठन के रूप में सभी की सोच को ध्यान में रखते हुए भविष्य की दृष्टि से योजनाएं रखता है। इस बैठक में भी यही हुआ।

संघ 97 वर्ष पूरा कर शताब्दी वर्ष की ओर बढ़ रहा है। आगे इसका फोकस हर क्षेत्र में महिलाओं की सहभागिता बढ़ाने पर होगा। महिलाओं में संपर्क बढ़ाने के साथ देशभर में 411 सम्मेलन आयोजित करने की योजना बताती है कि वह इसे लेकर किस तरह गंभीर है। अभी तक 12 प्रांतों में 73 सम्मेलन आयोजित किए जा चुके हैं। इनमें 1 लाख 23 हजार से अधिक महिलाएं शामिल हुईं।
संघ की 97 वर्ष की यात्रा के मुख्य चार पड़ाव रहे हैं। संगठन, विस्तार, संपर्क और गतिविधि।
साल 2006 में संघ के द्वितीय सरसंघचालक गुरुजी की जन्मशती के साथ हर स्वयंसेवक द्वारा राष्ट्र की उन्नति के लिए कुछ करने का प्रण लेने की बात आई और यह भी आगे बढ़ रहा है। देश में स्वयंसेवकों द्वारा ऐसे कार्य किए जा रहे हैं। कोई ऐसा क्षेत्र नहीं, जहां संघ के लोग काम नहीं कर रहे। कई बार आप उस काम की सराहना करते हैं, किंतु आपको पता भी नहीं होता कि वह स्वयंसेवकों द्वारा किया जा रहा है।
संघ की बैठकों में अच्छे लोगों (जिन्हें संघ सज्जन शक्ति कहता है) को सामाजिक कार्यों में सक्रिय करने के प्रयास पर हमेशा चर्चा होती है।
समन्वय बैठक का भी एक प्रमुख बिंदु यही था। यानी शाखा और संगठन विस्तार के अलावा स्वयंसेवक एक अभियान के तहत अच्छे लोगों के पास जाकर उन्हें देश की उन्नति के लिए काम करने के लिए प्रेरित करेंगे। ऐसे अभियानों से भी संघ के संगठनों की शक्ति बढ़ती है। इसके संगठन संबंधी कुछ आंकड़े देखिए।

शाखाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। कोरोना से पहले साल 2020 में देश में 38 हजार 913 शाखाएं थीं, 2023 में इनकी संख्या बढ़कर 42 हजार 613 हो गई।
संघ की दैनिक शाखाओं की संख्या 62 हजार 491 से बढ़कर 68 हजार 651 हो गई है।
संघ की वेबसाइट जॉइन आरएसएस पर प्रति वर्ष एक से सवा लाख नए लोग जुड़ने की इच्छा जता रहे हैं।
लगातार विस्तार

विरोधी तो महिलाओं पर फोकस करने या लोगों से देश की उन्नति के लिए एक काम करने के अभियान को भी संघ का छद्म व्यवहार कहेंगे, पर समाज वही धारणा बनाता है जो प्रत्यक्ष देखता है। शायह यही वजह है कि विरोधियों के विरोध के बावजूद संघ और उससे जुड़े संगठनों का लगातार विस्तार हो रहा है।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स