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DevBhoomi Insider Desk
• Sat, 15 Jul 2023 11:58 am IST


क्यों खास है पहला स्वदेशी परमाणु रिएक्टर


भारत ने 1956 में पहला परमाणु रिएक्टर लगाया था। इसके छह दशक बाद पिछले दिनों देश के पहले स्वदेशी परमाणु संयंत्र ने गुजरात के काकरापार में काम करना शुरू कर दिया। इसका निर्माण 2007 में शुरू हुआ था। फिलहाल भारत अपने 22 परमाणु संयंत्रों से 6780 मेगावॉट बिजली पैदा कर रहा है। स्वदेशी तकनीक विकसित करने के बाद अगले एक दशक में भारत ढेरों नए परमाणु संयंत्र भी लगाने जा रहा है।

बढ़ती पावर
परमाणु ऊर्जा पर भारत सरकार साफ कर चुकी है कि मौजूदा क्षमता को अगले एक दशक में तीन गुना करना है।

काकरापार में भारत की स्वदेशी डिजाइन पर आधारित सबसे बड़ी यूनिट लगी है। यह एक तरह की प्रेशराइज्ड हेवी वॉटर रिएक्टर यूनिट (PHWR) है।
बिजली बनाने के लिए इस यूनिट में प्राकृतिक यूरेनियम और मंदक के रूप में भारी जल का प्रयोग होता है और यही भारत के परमाणु संयंत्रों का मुख्य आधार भी है।
न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड ने देश भर में सोलह 700 मेगावॉट PHWR बनाने की योजना तैयार की है। इसके लिए वित्तीय और प्रशासनिक मंजूरी दे दी गई है।
राजस्थान के रावतभाटा और हरियाणा के गोरखपुर में 700 मेगावॉट के परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का निर्माण चल रहा है।
सरकार ने मध्य प्रदेश में चुटका, राजस्थान में माही बांसवाड़ा और कर्नाटक में कैगा में 10 स्वदेशी विकसित PHWR बनाने की मंजूरी दी है।
फिलहाल देश के सात न्यूक्लियर पावर स्टेशनों में 22 परमाणु संयंत्र हैं, हालांकि इनका कुल बिजली उत्पादन में योगदान लगभग 3 फीसदी ही है।
1,05,000 करोड़ की लागत से 2031 तक नए संयंत्र स्थापित होंगे, तब कहीं परमाणु ऊर्जा उत्पादन 22480 मेगावॉट तक पहुंचेगा।


सजग सुरक्षा
बढ़ती मांग और ग्रीन पावर की अहमियत के मद्देनजर परमाणु ऊर्जा बेहतर विकल्प है। पर इसके अपने खतरे भी हैं, और सुनामी आने के बाद जिन्हें सबसे ज्यादा जापान ने अपने यहां फुकुशिमा परमाणु संयंत्र में झेला है। हालांकि भारत ने इस हादसे के बाद काफी सजगता दिखाई।

2011 की सुनामी में तबाह हुए जापान के फुकुशिमा परमाणु संयंत्र के बाद भारत की न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) ने चार समितियां गठित कर मौजूदा संयंत्रों के सुरक्षा मानकों को और मजबूत करने पर रिपोर्ट मांगी थी।
यह रिपोर्ट सौंपी जा चुकी है और NPCIL ने इसके आधार पर रिएक्टरों को अपग्रेड करना भी शुरू कर दिया है।
NPCIL ने सुरक्षा के मानकों को बढ़ाते हुए सुनामी, भूकंप जैसी प्राकृतिक त्रासदियों के समय संयंत्रों के ऑटो शटडाउन जैसी नई तकनीकों पर भरोसा जताया है। संयंत्रों में पानी की सप्लाई भी बढ़ाई है।
चिंताएं भी हैं
लेकिन चिंता फिर भी बनी रहेगी। जापान के फुकुशिमा संयंत्र में करीब 13 लाख टन रेडियोएक्टिव पानी टैंकों में रखा गया है, जिसे समुद्र में निस्तारित करना है। पर्यावरण संस्था ग्रीन पीस के साथ नॉर्थ व साउथ कोरिया और चीन इसके विरोध में हैं। इसकी वजह यह है कि दुनिया में अभी तक ऐसी कोई तकनीक ही नहीं है, जिससे रेडियोएक्टिव पानी में से ट्रिटियम को अलग किया जा सके। खुद जापान में भी इसका विरोध है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) और अमेरिका ने इसे अपना समर्थन दिया है।

कचरे की समस्या
भारत, अमेरिका, चीन, फ्रांस और रूस समेत लगभग 50 देश परमाणु बिजली बना रहे हैं। अमेरिका के पास सर्वाधिक 93 न्यूक्लियर रिएक्टर हैं। फ्रांस 56 संयंत्रों के साथ दूसरे और चीन 55 संयंत्रों के साथ तीसरे स्थान पर है। विश्व भर में 440 परमाणु संयंत्र हैं, जो चार लाख मेगावॉट के करीब ऊर्जा पैदा करते हैं। यह कुल ऊर्जा उत्पादन का महज 10 फीसदी है। हादसों से इतर भी इन्हें लेकर कई जोखिम हैं, जिनमें सबसे बड़ा तो इनसे निकलने वाला कचरा है, जिसे निस्तारित करना बेहद मुश्किल है।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स