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• Tue, 7 Nov 2023 12:22 pm IST


रांची की वह बारात हर मां-बाप के लिए एक सबक है


पिछले महीने रांची में बैंड-बाजे के साथ एक बारात निकली थी। यह बारात चर्चा का सबब इसलिए रही कि अमूमन बारात में बहू लाने के लिए निकलती है लेकिन इस बारात की वजह कुछ अलग थी। एक बाप अपनी बेटी की ससुराल से घर वापसी कराने के लिए यह बारात लेकर निकला था और वह भी हमेशा-हमेशा के लिए। सोशल मीडिया पर उस बाप ने लिखा-”बड़े अरमानों और धूमधाम के साथ लोग अपनी बेटियों की शादी करते हैं, लेकिन यदि जीवनसाथी और परिवार गलत निकलता है या गलत काम करता है तो आपको अपनी बेटी को आदर और सम्मान के साथ अपने घर वापस लाना चाहिए क्योंकि बेटियां बहुत अनमोल होती हैं।”

जब इस पोस्ट पर नजर गई तो जेहन में कुछ महीने पहले एक लड़की के उस माफीनामे की याद आ गई जो उसने अपने पिता के लिए लिखा था- ” पिता जी, मुझे पता है कि आपने जिंदगी भर की कमाई मेरी शादी पर इसलिए लुटा दी थी कि आपकी यह बेटी ससुराल में खुशी के साथ जी सके। मैं ससुराल में अब तक एक-एक पल घुट-घुट कर इसलिए जी रही थी कि मैं नहीं चाहती थी कि आपका सपना टूटे लेकिन अब यह जिंदगी और नहीं जी जा रही है, इसलिए इसे खत्म कर रही हूं। हो सके तो मुझे माफ कर देना-आपकी अभागिन बेटी।”
रांची के उस बाप की तारीफ इसलिए होनी चाहिए कि उसने जो कदम उठाया, वह सिर्फ उसकी लड़की की हक में नहीं गया बल्कि तमाम दूसरी लड़कियों और उनके मां-बाप को हिम्मत और नई सोच देने का काम करेगा। बेशक सामाजिक व्यवस्था में परिवार नाम की संस्था की खासी अहमियत है और उसको टूट से बचाने की हर मुमकिन कोशिश की जानी चाहिए लेकिन मां-बाप के लिए यह जरूरी होता है कि वह बेटियों को यह हौसला जरूर दें कि विवाह का मतलब यह भर नहीं कि हालात चाहे जैसे हों, उन्हें ससुराल में ही जिंदगी बितानी है, और ससुराल ही उनका घर है। अगर हम लड़कियों को इस सोच के साथ विदा करेंगे तो जब-तब हमें ‘माफीनामे’ ही पढ़ने को मिलेंगे। लड़कियों को इस हौसले के साथ घर से विदाई देनी चाहिए कि ससुराल आज से तुम्हारा घर जरूर हो रहा है लेकिन मायके के दरवाजे कभी तुम्हारे लिए बंद नहीं होंगे।
रांची के उस बाप के लिए न तो उस विवाह के कोई मायने रह गए थे, जिसमें उसकी लड़की को तिल-तिल मरने के लिए मजबूर कर दिया था और न ही उसको इस बात की कोई फिक्र थी, अगर बेटी ससुराल को छोड़कर मायके आ जाएगी तो वह समाज को, रिश्तेदारों को क्या जवाब देता फिरेगा कि बेटी की शादी क्यों नहीं टिकी? उसने बेटी को ससुराल में ही घुट घट कर जीने के लिए प्रेरित करने के बजाय अपनी बेटी को इस एहसास के साथ वापसी कराई कि बेटी कभी अपने मां-बाप के लिए बोझ नहीं हो सकती।
मध्यम वर्गीय परिवार की मानसिकता यह भी होती है कि शादी कितनी मुश्किल से होती है, रिश्ता ढूंढने से लेकर विदाई तक कितना कुछ जुटाना पड़ता है तो जाकर घर से बेटी विदा होती है और अगर शादी नहीं चली तो फिर जितना कुछ जोड़ बटोर कर शादी की थी, वह तो सब मिट्टी मिल जाएगा तो उनका सारा जोर शादी को चलाने में होता है, भले ही बेटी को ससुराल में कितनी ही विपरीत परिस्थितियों में जीवन गुजारना पड़ रहा हो लेकिन मां-बाप को यह सोचना होगा कि उसकी बेटी अनमोल है। उसके आगे शादी में जो खर्च हुआ है, उसके कोई मायने नहीं। शादी का टूटना तमाम रास्तों को बंद हो जाना नहीं है।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स