पिछले पाँच छह दिन से मौसम बहुत खराब है। कभी हवा, कभी बादल, कभी बारिश और आज तो भयंकर धुंध , इतनी कि जैसे बूँदाबाँदी हो रही है। यदि ऐसे में ‘अच्छे दिन’ भी आकर दरवाजे पर दस्तक देकर चले गए हों तो भी कोई आश्चर्य नहीं। हमने दूध लाना और अपनी ‘पेट’ कूरो को घुमाना भी बंद कर दिया है। बरामदे में बैठने का तो प्रश्न ही नहीं।
कमरे में रजाई में घुसे बैठे थे। हो सकता है आज तोताराम देर से आए इसलिए उसका इंतजार किए बिना ही चाय का एक दौर हो चुका है। लेकिन यह क्या तोताराम बारिश और कीचड़ से बचता-बचाता कमरे में दाखिल हुआ।
बोला- तैयार हो जा। भाभी से कहकर थर्मस में पाँच-सात चाय डलवा ले, पाँच-सात तिल के लड्डू भी ले ले।
हमने कहा- अब कहाँ चलना है? दिल्ली में ‘कर्तव्य पथ’ पर ‘बीटिंग रिट्री’ट भी हो चुका, ‘मुगल गार्डन’ का नाम ‘अमृत उद्यान’ भी हो चुका, राहुल गांधी कि ‘भारत जोड़ो’ यात्रा भी पूरी हो चुकी। अब कहाँ चलना है? थोड़ा सांस ले।
बोला- ये सब बड़े आदमियों के लटके झटके हैं। हमें इनसे क्या लेना-देना। मैं तो बैंक चलने की बात कह रहा था।
हमने कहा- बैंक अभी चलकर क्या करेंगे? पेंशन तो तीन-चार तारीख तक आएगी। जो एफ डी हैं उन्हें तुड़वाना नहीं है। वे तो सितंबर में मेच्योर होंगी। उसके बाद देखेंगे रिन्यू करवाना है या नहीं।
बोला- पेंशन नहीं, अब तो एफ डी की फिक्र कर।
हमने कहा- मतलब क्या स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को भी महाराष्ट्र के ‘पंजाब महाराष्ट्र बैंक’ की तरह किसी ‘वधावन’ ने बढ़ाने के नाम पर घटाकर ‘शून्य’ तो नहीं कर दिया?
बोल- यह तो पता नहीं लेकिन पिछले पाँच-सात दिनों में अदानी का तीन लाख करोड़ रुपया शेयरों के घपले में डूब चुका है।
हमने कहा- तो हमें क्या? भुगते धंधा करने वाला?
बोला- आजकल धंधा करने का वह पुराना तरीका नहीं रहा। आजकल तो लोग सरकार की आड़ में जनता के पैसे से धंधा करते हैं। इसमें अदानी ने अपने व्यक्तिगत संबंधों के कारण रिजर्व बैंक के रिजर्व फंड के १.७६ लाख करोड़ का लोन कबाड़ा, ७० हजार करोड़ एल आई सी से निवेश करवाया और बैंकों से ८० हजार करोड़ निवेश करवाया। हो सकता है हम बैंक पहुँचें तब तक बढ़कर ५ लाख करोड़ भी हो सकता है। जितना जो कुछ निकल सकता है, निकलवा लें।
हमने कहा- लेकिन अभी तो बैंक खुलने में चार घंटे हैं। बाबू लोग सवा दस बजे आएंगे , फिर अपने कंप्यूटर को धूप-बत्ती दिखाएंगे, पूजा-पाठ करेंगे, फिर चाय पियेंगे तब तक ११ बज जाएंगे। खाना खाकर चलेंगे।
बोला- आपातकाल है। आपत काले मर्यादा नास्ति। वैसे समय बहुत खराब चल रहा है। ऐसे में समय नहीं देखा जाता।
मौके की नजाकत को समझते हुए हम तोताराम के साथ चल दिए। जैसे ही जयपुर रोड़ को पार किया तो देखा लाइन बैंक से चलकर हनुमान जी के मंदिर तक पहुंची हुई है।
हमने कहा- तोताराम, अब आगे चलने की जरूरत नहीं है। यहीं बैठकर लड्डू खा लेते हैं। क्या पता बैंक चलकर असलियत जानने के बाद लड्डू खाने लायक बचें कि नहीं।
बही लिख-लिख के क्या होगा
यहीं सब कुछ लुटाना है
सजन रे…
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स