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• Thu, 2 May 2024 11:20 am IST


चक्र-व्यू: जलेबी के 'शिशु'


जलेबी की मोहब्बत में मुब्तिला होकर एक दिन नोएडा की एक बहुत बड़ी दुकान पर पहुंचा, तो देखा कि वह तो ‘जलेबी के नवजात शिशुओं’ का निर्माण कर रहा है। जिस तरह से बच्चों के हाथ-पैर एकदम पतले- पतले होते हैं, उसी तरह से उस हलवाई की जलेबी भी जरूरत से ज्यादा पतली थी। जलेवी का शाश्वत नियम है कि वह न तो जरूरत से ज्यादा पतली हो, न ज्यादा मोटी बहुत मोटी हुई तो उठाते ही चाय में भीगी डबलरोटी की तरह टूटकर टपक जाएगी। बहुत पतली हुई तो जिन रस भरी गलियों की वजह से जलेबी ने इस धरा पर अपनी पहचान बनाई है, वह धुंधली हो जाती है। ऐसा नहीं कि जलेबी के इन बच्चों को मैंने बिना खाए बख्श दिया हो पर बच्चे तो बच्चे ही होते हैं, और बड़े हमेशा बड़े। यह प्रकृति का बनाया नियम है। प्रकृति के बनाए नियम के साथ खिलवाड़ करने वाले हलवाइयों को न तो मैं माफ कर सकता हूँ, और न ही जलेबी जिस जलेबी में चाशनी से ओवरफ्लो हो रही गलियां ना हो, वह चाहे जो हो, जलेबी नहीं हो सकती।

अब ऐसे ही समोसे को ले लीजिए। हमारे फैजाबाद में समोसा महज समोसा नहीं होता। यह एक आयोजन होता है। उधर, सूरज ने अपनी लाली और बाद में पीली के साथ आसमान में दस्तक दी, इधर कच्ची आलू के महीन-महीन टुकड़े कटने शुरू हुए। कटने के बाद इसे धनिया, मिर्च और ढेर सारे गरम मसाले के साथ और नहीं तो कम से कम घंटे दो घंटे तक भूना जाएगा। ऐसा आलू सूंघते ही मन से शेर निकलता है- ‘कूबकू गमक गई आलू हलवाई की, उसने समोसे की तरह मेरी पजीराई की।’ बहुतों को मैंने देखा है, जिनमें एक खुद मैं भी हूं, जो समोसे से पहले उसकी आलू की पजीराई करने पहुंच जाते हैं। स्वर्ग सिर्फ सत्कर्म करने वालों को ही नहीं मिलता है। यह संपूर्ण शास्त्रीय समोसा बनाने वालों को भी मिलता है जो शास्त्रीय समोसा नहीं बनाते, जो समोसे में आलू उबालकर नमक मिर्च डालकर भरते हैं, उनके लिए समोसा पुराण में एकदम साफ-साफ लिखा है कि वे उसी आलू के साथ नर्क में तले जाएंगे। उनका समोसा सिर्फ एक धोखा होता है, जो समोसा प्रेमियों की मजबूरी का फायदा उठाने के अलावा और कुछ नहीं करता। दिल्ली-NCR में ही नहीं, लगभग समूचे वेस्ट यूपी में मैंने ऐसे दर्जनों नकली समोसे बनाने वाले देखे हैं, और उनमें भरी आलू खाने से इनकार किया है। समोसे का आलू वह शास्त्र होता है, जिसे बिगाड़ने की सजा कानून नहीं, सीधे प्रकृति देती है। कभी-कभी मुझे लगता है कि प्रकृति हमसे इसीलिए नाराज है, क्योंकि जलेबी की गलियां संकरी होती जा रही हैं, और हलवाई समोसा शास्त्र भूलते जा रहे हैं।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स