राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव को लेकर हुई चर्चा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के भाषण और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उत्तर से साफ है कि चुनाव के एक महीने बाद भी दोनों पक्ष चुनावी मानसिकता से नहीं उबर पाए हैं। अन्य वक्ता भी इस सोच से मुक्त नहीं दिखे। पिछली दो लोकसभाओं में सत्ता पक्ष का जबरदस्त बहुमत था। 2014 में 16वीं लोकसभा में BJP ने तीन दशक लंबे अंतराल के बाद अकेले दम बहुमत हासिल कर सबको चौंका दिया था। वहीं, 17वीं लोकसभा में उसकी सीटें बढ़कर 303 हो गईं। फिर भी उसने NDA सरकार बनाकर दूरदर्शिता का परिचय दिया। लेकिन, दोनों ही लोकसभाओं में नेता प्रतिपक्ष की अनुपस्थिति से सत्तापक्ष और विपक्ष के रिश्तों में खटास का अंदाजा लगाया जा सकता है।
लंबे अरसे से लोकसभा में डेप्युटी स्पीकर पद विपक्ष को देने की भी परंपरा रही। 16वीं लोकसभा में BJP ने यह पद अपने मित्र दल AIADMK को दिया तो 17वीं लोकसभा में यह संवैधानिक पद खाली ही रह गया। इस बार BJP ने ओम बिड़ला को ही स्पीकर बनाना पसंद किया है। डेप्युटी स्पीकर पद पर अभी तक खामोशी है। विपक्ष ने साफ कहा है कि अगर उसे परंपरा के अनुरूप डेप्युटी स्पीकर पद नहीं मिला तो वह अयोध्या से जीते अवधेश प्रसाद को उम्मीदवार बनाएगा।
चुनावी तैयारी
चुनाव परिणामों से हार-जीत का फैसला हो जाने के बाद भी सत्तापक्ष और विपक्ष परस्पर शक्ति परीक्षण का कोई मौका चूकते नहीं दिख रहे। नई लोकसभा का पहला सत्र इसका प्रमाण रहा। पहले तो NEET में हुए कथित घोटाले पर चर्चा को लेकर लोकसभा में हंगामा हुआ। बाद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा शुरू हुई तो देश-समाज के ज्वलंत मुद्दों पर गंभीर विमर्श के बजाय एक-दूसरे पर राजनीतिक निशाने साधे गए। ऐसा लगा कि दोनों पक्ष चुनाव प्रचार की मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाए हैं या फिर इसी साल अक्तूबर में होने वाले हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड तथा अगले साल फरवरी में होने वाले दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनावों की तैयारी में जुट गए हैं।
जनादेश की अवहेलना
लोकसभा में धन्यवाद प्रस्ताव पर लगभग 18 घंटे की चर्चा देश-समाज के सरोकारों से परे दोनों पक्षों के राजनीतिक निहितार्थों पर केंद्रित रही, जो संसदीय लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं। चार जून को आए लोकसभा चुनाव परिणाम किसी भी पक्ष की अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं रहे। ज्यादातर राजनीतिक प्रेक्षकों का आकलन रहा कि जनता ने सत्तापक्ष को नियंत्रण में लाते हुए और विपक्ष को ताकत देते हुए परस्पर समन्वय से संसद और सरकार चलाने का जनादेश दिया है। लेकिन, संसद में आचरण-व्यवहार से नहीं लगता कि दोनों में से कोई भी पक्ष ऐसा करने के मूड में है।
मुद्दों पर चर्चा
नई लोकसभा के पहले ही सत्र में सत्तापक्ष और विपक्ष ने एक-दूसरे के प्रति उपेक्षापूर्ण और असम्मानजनक व्यवहार दिखाया है। इससे आशंकाएं गहराने लगी हैं कि संसद कहीं और पांच साल दलों और नेताओं की कटुता और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की बंधक तो नहीं बनी रहेगी? राष्ट्रपति का अभिभाषण केंद्र सरकार तैयार करती है। स्वाभाविक ही उसमें सरकार की उपलब्धियों और आगामी योजनाओं का गुणगान होता है, पर दलों और उनके सांसदों से अपेक्षा की जा सकती है कि वे उस पर चर्चा करते हुए भी देश-समाज के समक्ष मौजूद ज्वलंत मुद्दों से मुंह न चुराएं।
तल्ख भाषा क्यों
दो लोकसभाओं के बाद इस बार राहुल गांधी के रूप में सदन को नेता प्रतिपक्ष मिला। धन्यवाद प्रस्ताव पर एक जुलाई को उनके डेढ़ घंटे से भी लंबे भाषण की चर्चा भी बहुत है। राहुल की राजनीतिक समझ, भाषण शैली और आत्मविश्वास में सुधार दिखता है। उन्होंने साल भर से भी ज्यादा समय से जातीय हिंसा की आग में जल रहे मणिपुर से लेकर 24 लाख छात्रों के भविष्य से जुड़े NEET समेत जनहित के कई मुद्दे भी उठाए। लेकिन, क्या उसके लिए पीएम मोदी और BJP पर तल्ख भाषा और चुनाव प्रचार की शैली में हमले करना जरूरी था? हिंदू होने, न होने का प्रमाणपत्र बांटने के लिए तो संसद नहीं है।
कटाक्ष किसलिए
पीएम मोदी और उनके पांच मंत्रियों ने जिस तरह राहुल के भाषण के बीच हस्तक्षेप किया, वह भी अवांछित था। अपनी बारी आने पर हर सवाल का विस्तार से जवाब दिया जा सकता था। सदन के नेता के रूप में पीएम मोदी ने दो जुलाई को चर्चा का लगभग ढाई घंटे लंबा उत्तर दिया। लेकिन, सवालों के जवाब देने के बजाय ‘बालक बुद्धि’ से जुड़े किस्से-कहानियों के जरिये, नाम लिए बिना ही नेता प्रतिपक्ष पर कटाक्ष करना उनके अजेंडे में सबसे ऊपर रहा।
गरिमा की चिंता नहीं
बेशक प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान विपक्ष की लगातार नारेबाजी संसदीय मर्यादा के प्रतिकूल है, लेकिन नई लोकसभा के पहले सत्र में मर्यादा-गरिमा की परवाह करता कौन दिखा? प्रधानमंत्री ने ही अपने भाषण के दौरान सदन को हाथरस की भगदड़ में अनेक लोगों की मौत की दुखद सूचना दी, पर लोकसभा ने उस पर संवेदना व्यक्त करने के बजाय विपक्ष के व्यवहार की निंदा का प्रस्ताव पारित करना ज्यादा जरूरी समझा। सात दिन चला लोकसभा का पहला सत्र संसदीय लोकतंत्र के लिए चिंताजनक संकेत है।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स