नए साल के मौके पर जहां दुनिया जश्न मना रही थी, वहीं कजाकिस्तान में नई राजनीतिक उठापटक की तैयारी हो रही थी। 1 जनवरी 2022 को कजाकिस्तान की सरकार ने एलपीजी दामों को पूरी तरह से सब्सिडी फ्री कर दिया। इसके बाद वहां के लोग सड़कों पर उतरे और देखते-देखते यह विरोध हिंसक प्रदर्शन में बदल गया, जिसमें अभी तक 100 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं।
पिछले कुछ दिनों में ही कजाकिस्तान में राजनीतिक तौर पर बहुत कुछ हो गया। एक तरफ राष्ट्रपति कसीम-जोमार्त तोकायेव सरकार को बर्खास्त कर दिया गया, तो दूसरी तरफ दुनिया के नौवें सबसे बड़े देश में दो हफ्तों के लिए इमरजेंसी लगा दी गई है। इसी बीच सरकार ने प्रदर्शनकारियों की मांग मानने की भी घोषणा की। राष्ट्रपति तोकायेव ने कहा कि सरकार प्राइस कैप्स को 50 टेंज, यानी अभी जितने दाम हैं उसके आधे तक कम कर देगी। साथ ही सरकार गैसोलीन और डीजल जैसे जरूरी ईंधन के दामों को नियंत्रित करेगी। फिर भी वहां शांति नहीं बन पा रही है।
कजाकिस्तान में हो रहे प्रदर्शनों में एक नारा लग रहा है- ‘ओल्ड मैन गो अवे’ यानी बूढ़े आदमी वापस जाओ। यह नारा नूरसुल्तान नजरबायेव के खिलाफ लग रहा है जो कहने को तो सत्ता से बाहर हैं लेकिन अभी भी सरकार में अपना पूरा दखल रखते हैं। 1991 में सोवियत संघ से आजाद होने के बाद नजरबायेव कजाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति बने और मार्च 2019 तक बने रहे। तब से अब तक कजाकिस्तान में लोकतंत्र डिवेलप नहीं हो सका। वहां एक तरह से तानाशाही सिस्टम है।
तेल और गैस के उत्पादन के चलते 1991 में नजरबायेव के सत्ता में आने बाद कजाकिस्तान ने आर्थिक तौर पर खूब तरक्की की। लेकिन यह समृद्धि वहां की जनता को नहीं बल्कि नजरबायेव के करीबी लोगों को ही मिली। वहां के लोगों को अभिव्यक्ति की आजादी, मानवाधिकारों से भी वंचित रखा गया। नजरबायेव के शासन के दौरान मीडिया पर कड़ा नियंत्रण रखा गया। उसने खुद को सत्ता में बनाए रखने के लिए संविधान भी बदला। इस दौरान विपक्ष बेअसर था। चुनावों में जमकर धांधलियां हुईं।
मार्च 2019 में नजरबायेव ने यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि वह नई पीढ़ी के नेताओं को मौका देना चाहते हैं। इसके बाद कसीम-जोमार्त तोकायेव राष्ट्रपति बनाए गए। सरकार से इस्तीफा देने के बावजूद नजरबायेव ‘लीडर ऑफ नेशन’ बने रहे। इसके चलते उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हो सकती। लोगों का आरोप है कि तोकायेव नजरबायेव के इशारों पर काम करते हैं।
कजाकिस्तान की 70-80 फीसदी आबादी एलपीजी पर निर्भर है। ब्यूटेन और प्रोपेन जैसे ईंधन वहां सस्ते दामों पर उपलब्ध थे, मगर सस्ते और आसानी से मिलने के कारण वहां इनकी कमी होने लगी। साल 2015 में वहां की सरकार ने प्राइस कैप हटाना शुरू किया और 1 जनवरी 2022 से इसे पूरी तरह हटा दिया गया। तर्क था कि इससे घरेलू बाजार में आपूर्ति बढ़ेगी और पुरानी कमी को दूर करने में मदद मिलेगी। लेकिन नतीजा बिलकुल उलट हुआ। कीमतें रातों-रात दोगुनी होनी शुरू हो गईं। ये कीमतें बढ़कर 120 टेंज प्रति लीटर तक पहुंच गईं।
कीमतों के बढ़ने पर लोगों को डर लगने लगा कि खाने-पीने की चीजों के दाम बढ़ेंगे, साथ में गरीबी भी। रॉयटर्स के मुताबिक, आय में असमानता के चलते कजाकिस्तान में पिछले साल मुद्रास्फीति साल-दर-साल बेसिस पर 9 प्रतिशत रही, जो पांच वर्षों में सबसे अधिक है। फिर कोरोना ने भी अटैक किया। एक तरफ लोग इन कठिनाइयों से जूझ रहे थे, दूसरी तरफ लोकतंत्र का न होना भी उन्हें साल रहा था। आरोप है कि 2019 में हुए राष्ट्रपति चुनावों में जमकर धांधली भी हुई।
इन सबके मिले-जुले नतीजे के रूप में यह स्थिति आई है कि पहली बार लोग खुलकर सरकार का विरोध कर रहे हैं। इससे पहले साल 2011 में झानाओजेन शहर में 16 श्रमिक काम की खराब स्थिति को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे, जिन्हें पुलिस ने मौत के घाट उतार दिया था। उसे भी लोग भूले नहीं हैं। स्वाभाविक ही आज भी ज्यादातर गुस्सा नजरबायेव को लेकर ही है। इसलिए वहां के लोग खुल्लम-खुला ‘ओल्ड मैन गो अवे’ के नारे लगा रहे हैं।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स