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• Tue, 23 Mar 2021 4:33 pm IST


जल की प्राण-शक्ति को प्राण वायु प्रदान करने के 4 साल


समय के शिलापट पर काल की कलम से उकेरा गया मानव सभ्यता का इतिहास गवाही देता है कि अधिकांश सभ्यताओं ने जल तट के किनारे अपनी आंखे खोली, विविध संस्कृतियां जल-तट पर पुष्पित और पल्लवित हुईं। मतलब जल, जीवन का आधार है। उसकी तरंग है। जीवंतता है। जल है तभी खेत, आशा की सरगम हैं। ‘अर्पण से तर्पण’ तक, जड़ से जीवन तक जल, ‘प्राण तत्व’ है।

विडम्बना है कि इस ‘प्राण तत्व’ को ही निष्प्राण करने के प्रयास व्यवस्था की सरपरस्ती में बड़े ही नियोजित स्वरूप में दशकों से किए जा रहे थे। दुर्भाग्य से हमारा उत्तर प्रदेश भी उससे अछूता नहीं रहा। अकर्मण्यता का ‘संस्कार’ हो या मुनाफे की वासना या भ्रष्टाचार में डूबती-उतराती नीतियों के तटबंध, ये सभी, जल, जंगल, जमीन, नदियों, तालाबों, कुओं और बावड़ियों के लिए ‘स्लाटर हाउस’ का कार्य कर रहे थे। मां का दर्जा रखने वाली नदियां अपशिष्ट पदार्थों का गोदाम बनती जा रही थीं। गंगा से गोमती, सरयू से सई, घाघरा से कोसी आदि जैसी अनेक नदियां अपनी जैविक सम्पदा को लुटते देखने के लिये विवश थीं।

किंतु 2017 में उत्तर प्रदेश में एक तापस वेशधारी के नेतृत्व में बनी सरकार के ‘भागीरथी’ संकल्प ने जल को ‘जीवन’ प्रदान करने और आस्था को ‘आचमन’ लायक बनाने में काफी हद तक सफलता प्राप्त की है। किंतु यह सब इतना आसान नहीं था। आम जन को स्वच्छ पेय जल की उपलब्धता, खेत के सिंचन हेतु साफ पानी, भूमिगत जल स्रोतों के प्रदूषण मुक्ति हेतु व्यवस्था, जल संचय हेतु संसाधनों का विकास जैसी अनेक चुनौतियां रूपी दण्डकारण्य थे जिनसे गुजर कर ही योगी आदित्यनाथ रूपी नए ‘भगीरथ’ से हम सभी का साक्षात्कार हुआ।

लेखकः प्रणय विक्रम सिंह
समय के शिलापट पर काल की कलम से उकेरा गया मानव सभ्यता का इतिहास गवाही देता है कि अधिकांश सभ्यताओं ने जल तट के किनारे अपनी आंखे खोली, विविध संस्कृतियां जल-तट पर पुष्पित और पल्लवित हुईं। मतलब जल, जीवन का आधार है। उसकी तरंग है। जीवंतता है। जल है तभी खेत, आशा की सरगम हैं। ‘अर्पण से तर्पण’ तक, जड़ से जीवन तक जल, ‘प्राण तत्व’ है।

विडम्बना है कि इस ‘प्राण तत्व’ को ही निष्प्राण करने के प्रयास व्यवस्था की सरपरस्ती में बड़े ही नियोजित स्वरूप में दशकों से किए जा रहे थे। दुर्भाग्य से हमारा उत्तर प्रदेश भी उससे अछूता नहीं रहा। अकर्मण्यता का ‘संस्कार’ हो या मुनाफे की वासना या भ्रष्टाचार में डूबती-उतराती नीतियों के तटबंध, ये सभी, जल, जंगल, जमीन, नदियों, तालाबों, कुओं और बावड़ियों के लिए ‘स्लाटर हाउस’ का कार्य कर रहे थे। मां का दर्जा रखने वाली नदियां अपशिष्ट पदार्थों का गोदाम बनती जा रही थीं। गंगा से गोमती, सरयू से सई, घाघरा से कोसी आदि जैसी अनेक नदियां अपनी जैविक सम्पदा को लुटते देखने के लिये विवश थीं।

किंतु 2017 में उत्तर प्रदेश में एक तापस वेशधारी के नेतृत्व में बनी सरकार के ‘भागीरथी’ संकल्प ने जल को ‘जीवन’ प्रदान करने और आस्था को ‘आचमन’ लायक बनाने में काफी हद तक सफलता प्राप्त की है। किंतु यह सब इतना आसान नहीं था। आम जन को स्वच्छ पेय जल की उपलब्धता, खेत के सिंचन हेतु साफ पानी, भूमिगत जल स्रोतों के प्रदूषण मुक्ति हेतु व्यवस्था, जल संचय हेतु संसाधनों का विकास जैसी अनेक चुनौतियां रूपी दण्डकारण्य थे जिनसे गुजर कर ही योगी आदित्यनाथ रूपी नए ‘भगीरथ’ से हम सभी का साक्षात्कार हुआ।

सौजन्य - प्रणय विक्रम सिंह