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• Fri, 26 Mar 2021 8:24 pm IST


लुप्त होते जानवरों को बचाने की कवायद


पशु-प्रेमियों के लिए पिछले दिनों एक अच्छी खबर आई कि भारत दुनिया के सबसे छोटे सूअर- पिग्मी हॉग को दोबारा संरक्षित करने में सफल हो चुका है। असम में इसे संरक्षित करने की कवायद काफी अरसे से चल रही थी। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने भी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को बचाने की पहलकदमी की है। इस चिड़िया को पहले मोर की जगह राष्ट्रीय पक्षी घोषित करने की मांग थी।

पिग्मी हॉग बिल्ली जितना ही बड़ा होता है। पहले यह असम, हिमालयी क्षेत्र सहित उत्तर प्रदेश में भी पाया जाता था। सन 1960 में मान लिया गया था कि अब यह जीव खत्म हो चुका है। इसका कारण इंसानों के अवैध अतिक्रमण को माना गया। पर 1971 में एक बार और इसके दर्शन हुए, जिसके बाद से असम के मानस रिजर्व में इनके संरक्षण की कोशिशें शुरू हुईं। परिणामस्वरूप इनकी संख्या बढ़ने लगी। अब तक हमारे पास तकरीबन 300 पिग्मी हॉग हो चुके हैं।

वहीं पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड यानी गोडावण (सोन चिरैया) के लुप्त होते जाने पर गंभीर चिंता व्यक्त की। सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस बोपन्ना और जस्टिस रामसुब्रमण्यम की बेंच ने कहा कि सोन चिरैया के संरक्षण के लिए राजस्थान और गुजरात में कम वोल्टेज वाली ट्रांसमिशन लाइनों को भूमिगत करने और लाइनों में बर्ड डायवर्टर लगाने पर विचार किया जाना चाहिए। अपनी सोन चिरैया अब 150 से भी कम रह गई है। शायद इसीलिए चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि हम जो कदम उठा सकते हैं, अगर नहीं उठाएंगे तो सोन चिरैया को बचाने की लड़ाई हार जाएंगे।

बता दें कि नेशनल बोर्ड ऑफ एनवायरमेंट और पर्यावरण मंत्रालय ने जिन लुप्त होती प्रजातियों के संरक्षण के लिए कमेटी बनाई है, उनमें ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को सबसे ऊपर रखा है। अब इस कमेटी ने सोन चिरैया समेत चार विलुप्त होती प्रजातियों को संरक्षित करने के लिए 100 करोड़ रुपये के बजट से पांच वर्षीय प्रोग्राम बनाया है। कमेटी की लिस्ट में गंगा वाली डॉल्फिन, गोडावण, मणिपुर हिरण और समुद्री कौवा शामिल हैं।

देश में लुप्त होती प्रजातियों के लिए हर साल मई के तीसरे शुक्रवार से ‘नेशनल एंडेंजर्ड स्पीशीज डे’ मनाने की शुरुआत हुई है। इसी के तहत पिछले साल देश में लुप्त होने के कगार पर खड़ी सात प्रजातियों की एक लिस्ट जारी की गई थी। इस लिस्ट में एशियाटिक शेर है जो सिर्फ भारत में ही हैं और महज 650 रह गए हैं। इसके बाद दो हजार के आसपास बंगाल टाइगर हैं। लुप्त होते भारतीय वन्य जीवों में हिम तेंदुआ, बारहसिंगे सा दिखने वाला कश्मीरी रेड स्टैग, काला हिरण और एक सींग वाला गैंडा है।

अच्छी बात यह है कि सरकार ने इन चेतावनियों को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है। सेंट्रल जू अथॉरिटी की ओर से इस समय देश के अलग-अलग इलाकों में लुप्त होते पशु-पक्षियों की 73 प्रजातियों को संरक्षित करने का काम चल रहा है। कर्नाटक जू में इंडियन गोर, वाइल्ड डॉग, वुल्फ को संरक्षित किया जा रहा है, तो गुजरात जू में चिंकारा का संरक्षण हो रहा है। इसी प्रकार स्नो लेपर्ड का वंश दार्जिलिंग जू में बढ़ रहा है तो अगरतला जू में गोल्डेन लंगूर का। राजस्थान के कोटा और जैसलमेर में लुप्त होती सोन चिरैया (गोडावण) के प्रजनन को बढ़ावा देने के लिए बाकायदा सेंटर चलाए जा रहे हैं।

ऐसे ही देश से लगभग 70 साल से गायब चल रहे चीते को वापस लाना भी एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। देश के आखिरी चीते का शिकार वर्ष 1947 में सरगुजा के महाराजा ने किया था। वर्ष 1952 में इसे सरकारी तौर पर विलुप्त घोषित कर दिया गया था। काफी वर्षों की मशक्कत के बाद यह चीता कर्नाटक जू में वापस आ चुका है और अब बिग कैट फैमिली की पूरी 16 प्रजातियां सिर्फ और सिर्फ भारत में मौजूद हैं।

दुनिया भर में मौजूद कुल लिखित प्रजातियों का आठ फीसदी हिस्सा अपने यहां ही है। ऐसे में जरूरी है कि हमारी सरकारें और खुद हम अपने इस अनमोल खजाने का महत्व समझें और इनको बचाने के लिए हर संभव कोशिश करें।

लेखिकाः अनु जैन रोहतगी