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• Sat, 17 Feb 2024 11:11 pm IST


सिर नीचे हुआ


एक वक्त था, जिसे गुजरे बहुत वक्त नहीं हुआ, जब इंसान तो इंसान, उसका बच्चा तक सिर उठाकर चलता था। लखनऊ से लेकर लुधियाने तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक इंसानी प्रजाति सिर उठाकर चला करती थी। बल्कि बड़े-बूढ़े किसी को सिर झुकाए चलते देखते तो तुरंत टोकते कि क्या गर्दन टूट गई है या घरवाली भाग गई है? सिर उठाकर चलना बड़े ही शान की बात मानी जाती थी, और आन की भी। आजकल जो वक्त है, उसमें इंसान ने सिर उठाकर चलना लगभग बंद ही कर दिया है। जिसे देखो, मोबाइल में सिर गड़ाए चला जा रहा है। कौन सामने से आ रहा है, कौन दाएं-बाएं से आ रहा है, उसे कोई मतलब ही नहीं रह गया है। चलते-चलते वह सामने वाले से भिड़ जाएगा। भिड़कर सिर झुकाए-झुकाए ही खिसियानी हंसी हंसेगा, और सिर झुकाकर आगे बढ़ जाएगा। मोबाइल ने जिस तरह से समूची इंसानी प्रजाति का सिर नीचे कर दिया है, कभी-कभी मुझे इलहाम होता है कि सौ-पचास सालों बाद इसके बच्चे भी सिर झुकाकर ही पैदा होने लगेंगे। जो बच्चा सिर उठाकर पैदा होगा, उसे उसके मां-बाप ही नॉर्मल मानने से इनकार कर देंगे क्योंकि खुद उन्होंने ही कभी अपना सिर उठता नहीं देखा।

एक चीज और दिमाग में आती है। क्या हो अगर मोबाइल एक कुएं में तब्दील हो जाए? वैसे तो हो ही चुका है, बस कुएं जैसा दिखता नहीं है। जिसे देखिए, इसी कुएं में गिरा पड़ा है और इसी को सारी दुनिया मानने लगा है। कुएं के मेढक वाली कहावत सुनी थी, एकाध बार कुछेक मेढकों को कुएं में देखा भी था। बस बात नहीं कर पाया था। बात इसलिए भी नहीं कर पाया था कि मेढकों को हिंदी नहीं आती और मुझे मेढकी भाषा नहीं आती। मगर इस नए वाले कुएं में जो मेढक विचर रहे हैं, उनको हिंदी आती है। एक मेढक से मैंने बहुत पीछे पड़कर पूछा कि हिंदी आती है तो कुंए का ही पानी देखते-देखते बोला- ‘हूं’। अब इस हूं का अर्थ मैंने यही लगाया कि इसे हिंदी आती है। आगे पूछा, कुंए में क्या देख रहा है भाई? उसके जवाब में भी वह बोलता है-‘हूं’। मैंने पूछा, हिंदी का मतलब हूं होता है क्या, तो कहता है- ‘हूं’।

इस पूरी बातचीत के अध्ययन में मैंने पाया कि हिंदी अगर मोबाइल फोन टाइप के कुएं से बोली जा रही है तो वो ‘हूं’ हो जाती है। सोशल मीडिया कंपनियों ने इस ‘हूं’ को सबसे पहले पकड़ा था। तभी उन्होंने लाइक-वाइक का इंतजाम दिया। वो जानती थीं कि कुएं में सिर गिराए इन मेढकों से एक अदद ‘हूं’ निकलवाना भी मुश्किल होता है। गजब यह कि मेढक चाहे हिंदी के हों या अंग्रेजी के, पंजाबी के हों या बंगाली के या फिर अमेरिका जापान के, ‘हूं’ ही इनकी विश्वव्यापी अभिव्यक्ति बन चुकी है। मां किचन से चिल्लाकर बच्चे को आवाज लगा रही है कि क्या खाएगा? बच्चा कहता है- ‘हूं’। मेरी जान पहचान में आधा दर्जन बच्चे तो ऐसे हैं जो ‘हूं’ खाते हैं, ‘हूं’ ही पीते हैं और सिर झुकाए मोबाइल में झांकते रहते हैं।