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DevBhoomi Insider Desk
• Sat, 3 Jun 2023 4:10 pm IST


AI के लिए बनें नियम


आने वाले 10 वर्षों में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) क्या कर सकता है? ओपनएआई नाम के स्टार्टअप के चैटबॉट चैटजीपीटी के आने के बाद ऐसे कई सवाल पूछे जा रहे हैं। टेक्नॉलजी से जुड़े मामलों में आने वाले वक्त का अनुमान तो लगाया जा सकता है, लेकिन कई बार ये अनुमान टेक्नॉलजी के तेजी से बदलने के कारण बेमतलब हो जाते हैं। बहरहाल, ऐसा एक अनुमान ओपनएआई के संस्थापकों ने हालिया ब्लॉग पोस्ट में दिया। उन्होंने इसमें लिखा, ‘अगले 10 वर्षों में एआई सिस्टम्स ज्यादातर क्षेत्रों में किसी एक्सपर्ट से ज्यादा हुनरमंद हो जाएंगे। इसका असर यह होगा कि आज किसी विशाल कंपनी में जितनी प्रोडक्टिव एक्टिविटी होती है, एआई सिस्टम्स के जरिये उसे करना संभव हो जाएगा।’ लेकिन ऐसी मशीन कब तक बन पाएगी, जो किसी इंसान से घंटों चैट करे और उसे पता न चल पाए कि वह किसी मशीन से बात कर रहा था? एक अनुमान इस बारे में भी हाल में आया है। यह मेटाकुलस नाम के एक ऑनलाइन प्लैटफॉर्म के जरिये सामने आया। इसमें टेक्नॉलजी की दुनिया से जुड़े लोग भविष्य के बारे में अंदाजा लगाते हैं। पहले इस प्लैटफॉर्म पर यह अंदाजा लगाया गया था कि 2040 के दशक के शुरुआती वर्षों में ऐसा हो सकता है, लेकिन साल भर पहले चैटजीपीटी के आने के बाद से जेनरेटिव एआई की दुनिया जिस तेजी से बदली है, उसके बाद कहा जा रहा है कि यह कमाल 2030 के दशक के शुरुआती सालों में हो सकता है। वैसे, यह टाइमलाइन भी बदल सकती है क्योंकि चैटजीपीटी के आने के बाद आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में निवेश काफी बढ़ा है। इससे एआई रिसर्च में जबरदस्त तेजी आ रही है। इसका क्या असर होगा, अभी यह पता नहीं है।

खैर, यह तो रही आने वाले वक्त की बात। अभी एआई रिसर्च में लगी कंपनियों और इस क्षेत्र में लीडरशिप भूमिका में जो कॉरपोरेशंस हैं, उनकी चिंता एआई से जुड़ी अभी की चुनौतियां हैं। ये कंपनियां चाहती हैं कि जिन लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स के आधार पर जेनरेटिव चैटबॉट बनाए गए हैं, उनसे जुड़े हुए जोखिम कम करने के लिए सरकारें नियम-कायदे तय करें। ओपनएआई के सीईओ सैम ऑल्टमैन पिछले महीने अमेरिकी कांग्रेस के सामने एक सुनवाई के लिए पेश हुए थे, जिसमें उन्होंने यह बात कही। ओपनएआई जैसी ही एक और कंपनी एंथ्रोपिक ने भी ऐसी ही मांग की है। दरअसल, इन कंपनियों को अपने जेनरेटिव एआई के ट्रायल में कई रिस्क दिखे, जिन पर मीडिया में बहस भी चल रही है। जैसे- इसकी मदद से कोई बम बना सकता है। यह नस्लवाद को बढ़ावा देता है। भ्रामक जानकारियां भी इसके जरिये यूजर तक पहुंचती है। यह आतंकवादियों का मददगार साबित हो सकता है। जेनरेटिव एआई का दुनिया भर में बड़े पैमाने पर रोजगार पर भी असर होगा। इसलिए वे इन्हें रेग्युलेट करने की मांग कर रही हैं। लेकिन एक अंदेशा यह भी है कि माइक्रोसॉफ्ट के निवेश वाली कंपनी ओपनएआई और गूगल के निवेश वाली एंथ्रोपिक यह मांग इसलिए कर रही हैं कि बड़ी कंपनियों का इस क्षेत्र में दबदबा हो जाए और ओपनसोर्स एआई का इस्तेमाल कर कोई डिवेलपर इन्हें चुनौती देने वाले चैटबॉट न बना ले!

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स