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• Thu, 18 Jan 2024 2:22 pm IST


जीएसटी का इलाज


2047 तक भारत विकसित राष्ट्र बनना चाहता है, लेकिन यह टारगेट तभी पूरा होगा जब इसके नागरिकों के लिए स्वस्थ जीवन एक अधिकार की तरह होगा। अगर नागरिक स्वस्थ होंगे तो वे अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर योगदान दे सकेंगे। लेकिन हमारा देश डायबीटीज कैपिटल के तौर पर देखा जाने लगा है। इस तरह की कई और लाइफस्टाइल बीमारियां चिंता बनने लगी हैं। बीमारियों से ज्यादा बड़ी मुश्किल यह है कि इनका इलाज लगातार महंगा होता जा रहा है। आम लोग सरकारी अस्पतालों की सुविधाओं पर निर्भर नहीं रहना चाहते, लेकिन दूसरी तरफ महंगे अस्पतालों का खर्च हर कोई नहीं उठा पाता। इस बीच में एक ही चीज उम्मीद की किरण बनकर सामने आती है, वह है – हेल्थ इंश्योरेंस। अगर हेल्थ इंश्योरेंस हो तो अच्छा इलाज सिर्फ इसलिए नहीं रुकता कि खर्च उठाने की क्षमता नहीं है।

हमारे देश में बड़ी संख्या में लोग इंश्योरेंस सिर्फ इसलिए कराते हैं कि टैक्स बच सके, उसमें कुछ रिटर्न मिल सके। हेल्थ इंश्योरेंस में रिटर्न की कोई संभावना नहीं होती, इसलिए 0.4 पर्सेंट लोगों के पास ही हेल्थ इंश्योरेंस है। देश में कम आय वाली आबादी को सरकार ने आयुष्मान योजना के तहत कवर किया है। लेकिन मिडल क्लास के पास हेल्थ कवरेज नहीं। ये लोग इसके अभाव में कभी भी गरीबी के गर्त में गिर सकते हैं। चंद ऐसे लोग, जो कॉरपोरेट सेक्टर की बड़ी कंपनियों में काम करते हैं, उन्हें ऑफिस से हेल्थ इंश्योरेंस मिलता है। लेकिन एम्प्लॉयर से मिलने वाले हेल्थ इंश्योरेंस की सीमाएं हैं। बहुत छोटी आबादी अपने बूते हेल्थ इंश्योरेंस खरीदने की क्षमता रखती है। कोविड के बाद हेल्थ इंश्योरेंस के प्रीमियम तेजी से बढ़े हैं। उस घाव में भी खाज का काम करता है जीएसटी।


सरकार अलग-अलग चीजों पर 5 से लेकर 28 पर्सेंट तक जीएसटी वसूल करती है। हेल्थ इंश्योरेंस पर जीएसटी 18 पर्सेंट है। इससे ज्यादा जीएसटी ज्यादातर उन्हीं आइटम पर लिया जाता है जिन्हें लग्जरी में इस्तेमाल किया जाता है। हेल्थ इंश्योरेंस किसी भी लिहाज से लग्जरी नहीं है। जो लोग समझते हैं कि वे स्वस्थ हैं, या जिन्हें कोई गंभीर बीमारी नहीं है, वे मान लेते हैं कि उन्हें हेल्थ इंश्योरेंस लेने की जरूरत नहीं है। पहले कई बार संकेत मिले कि हेल्थ इंश्योरेंस पर 18 पर्सेंट जीएसटी को लेकर नए सिरे से गौर किया जाएगा। लेकिन अभी तक कुछ ठोस नहीं हो पाया।

हेल्थ इंश्योरेंस के लगातार महंगा होने के कारण इसे खरीदने वाले लोग भी रुकने पर मजबूर हो जाते हैं। ज्यादातर लोग ये समझते हैं कि आगे चलकर जब कभी ठीक हालात होंगे, तब इसे रिन्यू करा लेंगे। हालात कब ठीक होंगे, ये कोई नहीं जानता, लेकिन मेडिकल इमरजेंसी कभी भी आ सकती है। समय पर रीन्यू न होने के बाद हेल्थ इंश्योरेंस के कई अहम फायदे खत्म हो जाते हैं। नया बीमा लेने पर कई बीमारियों के इलाज के लिए वेटिंग पीरियड का सामना करना पड़ता है। यह भी जरूरी नहीं कि दोबारा हेल्थ इंश्योरेंस मिल ही जाए।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स