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DevBhoomi Insider Desk
• Tue, 14 Jun 2022 4:24 pm IST


पंजाब के आब को दूषित करते कड़वे बोल


भारत के सच्चे राष्ट्रीय नेता की पार्टी जबसे पंजाब में सरकार बनाई है, तब से ऐसे ऐसे गुल खिला रही है जिसकी कभी उम्मीद भी नहीं की गई होगी। इस देश मे कई लोगों ने फोर्ड फाउंडेशन की आर्थिक मदद से कई तरह के फ़्रॉड किए, उनमे से कुछ खप गए, कुछ चल दिए, कुछ ढल गए। जो रह गए वे नए लिवास में संकट मोचक के रूप में अवतरित हैं। इन लोगों ने कई फ्रंट खोले किसी को गरीब का मददगार, किसी को महिलाओं का पैरोकार, किसी को मजदूरों का झंडाबरदार बनाकर धंधे में लगा दिया। इनका एक वर्ग प्रगति की दुर्गति करनेवाले तथाकथित साहित्यकारों, पत्रकारिता के नाम पर कला धंधा करनेवालों और उन्हें कवर करनेवाले धंधेबाज कालाकोटधारी वर्ग और उनका समर्थक राजनेता। इनमे से कुछ की पोल खुल गई, कुछ के ढोल बज चुके हैं। यह है भारत को गर्त में ले जानेवाला एक वर्ग जो अब तक सत्ता के गलियारे में खींसे निपोड़ते देखे जाता रहा है।। यह वर्ग उन लोगों का है जो एक नंबर के लंपट हैं। जिन्हें येन केन प्रकारेण सत्ता चाहिए।

पंजाब में 1984 में अमृतसर में स्वर्णमंदिर में सैन्य कार्यवाही के फलस्वरूप खालिस्तान राज्य निर्माण के समर्थन में 5 जून को पंजाब सरकार ने उसे सत्ता दिलाने में पंजाब के विगठनकारी तत्वों को भारत विरोधी रैली करने की अनुमति दी। अमृतसर में पुलिस के संरक्षण में भारत के विभाजन और खालिस्तान की स्थापना के नारे लगाए गए। समाज को आघात पहुंचाने वाले वक्तव्य दिए गए। जब से पंजाब में नई सरकार बनी है तब से पंजाब में अलगाववादियों के वारे न्यारे हो गए हैं। वे पंजाब को एक अलग देश बनाने की मांग कर रहे थे। उनके नारे वैसे ही थे जैसे आज़ादी के नारे जे एन यू में 2016 में लगे थे।

पिछले दिनों मुझे पौंटा साहिब गुरुद्वारा जाने का मौका मिला। गुरु गोविंद साहिब जी एक बार किसी यात्रा पर निकले हुए थे, कहते हैं कि यमुना नदी के तट पर जहां पर भव्य और दिव्य गुरुद्वारा बना है, उनके घोड़े ने वहां पर पाँव टिका दिया था तो गुरु गोविंद सिंह जी वही उतर गए। और इस स्थान पर उन्होंने तपस्या की। तब का पांव टिका ही आज का पांवटा है। गुरुद्वारा के बाहर मुझे एक किताब पढ़ने को मिली जिसका नाम है roots of Hindu Sikh Unity।
इसके लेखक का नाम नारायण सिंह है उसका प्रकाशन अमृतसर से हुआ है। इसमें आपसी सद्भाव की वे बाटेंन हैं जिन्हें राजनीति के चश्मे से पढ़ पाना संभव नहीं है। किताब हाथ मे उठाते ही मुझे याद आया अपने छात्र जीवन का एक अनुभव जब शिमला के गेइटी थियेटर में “धर्मरक्षा में गुरु साहिबान का योगदान” विषय पर आयोजित एक भाषण प्रतियोगिता में भाग लिया था। मुझे याद है मैने अपने भाषण की शुरुआत गुरु गोविंद सिंह जी के दशम ग्रंथ में लिखे इस शबद के साथ कि थी-

देह सिवा बरु मोहि इहै सुभ करमन ते कबहूं न टरों।
न डरों अरि सो जब जाइ लरों निश्चय करि अपुनी जीत करों ॥

धर्म रक्षा के लिए उन्होंने अपने पिता गुरु तेग बहादुर साहिब को औरंगजेब से कश्मीरी हिंदुओं की रक्षा के लिए भेजा। धर्मरक्षा को जीवन का लक्ष्य बनाने के लिए पूज्य गुरु गोविन्द सिंह जी की रचना उग्रदंती में लिखित यह पंक्तियाँ ख़ालसा पंथ की स्थापना का उद्देश्य स्पष्ट करती हैं।

सकल जगत में खालसा पंथ गाजे
जगे धर्म हिन्दू तुरक धुंध भाजे।।

गुरु गोविंद सिंह जी के दो पुत्र /साहिबजादे अजीत सिंह (17 वर्ष) और जुझार सिंह जी (13 वर्ष) चमकौर के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। दो छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह जी और फतेह सिंह जी ने धर्मांतरण का विरोध किया तो उन्हें आततायियों ने जीवित ही दीवार में चुन दिया। जब गुरु साहिब को इसकी सूचना मिली तो उनके मुंह से निकला

इन पुत्रान के कारने, वार दिए सुत चार
चार मुए तो क्या हुआ, जीवें कई हज़ार।।

आज जब कोई आदमी कहीं से भी कूदकर अपनी दुकानदारी छद्म रूप में चलाने आ जाता है तो समाज का सावधान होना जरूरी है। गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा रचित दशम ग्रंथ जो गुरुद्वारा में पूजनीय होता था अब न जाने से कौन पढ़ता होगा? चंडीपाठ करने के बारे में जानकारी नहीं। क्या बिना गुरु गोविंद सिंह जी महाराज को हम भूल रहे हैं।

धर्म को विरूपित कर इसे सत्ता का मार्ग बनाना कहाँ तक उचित है, इसे पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और उनके अराजक (उन्ही का कथन) मार्गदर्शक को सोचना चाहिए। राष्ट्रीय होने के लिए राष्ट्रीय निष्ठा और भावनाओं का प्रकटीकरण भी आवश्यक है। अनावश्यक रायता फैलाना वैसा ही है जैसा इंदिरा गांधी ने अकालियों को हराने के लिए भिंडरावाले का साथ लिया था।
बहुत कठिन होता है ऊंचाइयों पर टिके रहना।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स