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• Fri, 16 Feb 2024 12:47 pm IST


चंडूखाने की गप


आपने शायद चंडूखाना नाम का शब्द कभी सुना होगा। यह दो शब्दों से बना है। चंडू संस्कृत से आया, खाना फारसी से। चंडू बना चंड से, जिससे प्रचंड और चंडी जैसे शब्द बने। यानी ऐसी चीज, जिसका प्रभाव बेहद विकराल, हाहाकारी और एकदम धरती धकेल हो! अफीम का किवाम या अफीम की ऐसी गोली जो अफीम को कई ताव देकर पकाने के बाद बनती है, उसे अपने यहां हिंदी, अवधी, मालवी, कन्नौजी और मगही में चंडू कहते हैं। इसके तंबाकू में मिलाकर या आसव के रूप में पीने के जिक्र पुरानी किताबों में मिलते हैं। वहीं खाना फारसी का शब्द है, यानी कमरा, कक्ष या अड्डा। चंडूखाने में यह अफीम पी जाती है। पीने के बाद शुरू होती है अफीमचियों की लंतरानी, जिसके लिए आज भी ‘चंडूखाने की गप’ जैसा मुहावरा सुनने को मिल जाता है।

चंडू हो या चंडू खाना, इसके लिए इंग्लिश में सीधा कोई एक शब्द नहीं मिलता। चंडू जैसा प्रॉडक्ट होता है, उसके लिए तो कोई शब्द है ही नहीं। चंडूखाने के लिए opium smoking den है। वैसे चंडूखाना या चंडू शब्द कोई मजाक नहीं है। यह शब्द यूपी, बिहार और झारखंड जैसे इलाकों का ऐतिहासिक दुख है। यहां अंग्रेज भारतीयों को बैल बनाकर अफीम की खेती कराते थे, निलहों से भी बुरा हाल किया था। कुछ का मानना है कि प्लासी और बक्सर के युद्ध के बाद यह इलाका पिछड़ा, लेकिन मशहूर लेखक अमिताव घोष ने अपनी किताबों से सिद्ध किया है कि युद्ध के बाद यहां कराई गई अफीम की खेती के चलते यह इलाका एक बार जो पिछड़ा, तो आज तक नहीं उबर पाया है। यहीं से अफीम चीन भी जाती थी, जहां इसे याबाओ कहते हैं। चीन तो खैर वक्त रहते चंडूखाने से बाहर आ गया था, पर उत्तर भारत में देर हो गई। तब तक यहां से उपजी तरक्की से अंग्रेजों ने बना दिए सिंगापुर और लंदन जैसे शहर, और यहां छोड़ गए चंडूखाने ताकि लोग सब भूलकर बस गपबाजी में ही लगे रहें।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स