1997 में 13 जून की तपती दोपहर, दिल्ली के उपहार सिनेमाघर के बेसमेंट में ट्रांसफॉर्मर फटने से लगी आग में दम घुटने से फिल्म देख रहे 59 लोगों की मौत। 2011, कोलकाता के अस्पताल में लगी आग में दम घुटने से 93 लोग मारे गए। यहां भी बेसमेंट में शॉर्ट सर्किट हुआ और वहां रखे ज्वलनशील पदार्थ के कारण आग ने विकराल रूप ले लिया। 2019, दिल्ली के करोल बाग की एक होटल में लगी आग में 17 लोग मारे गए तो वहीं सूरत के कोचिंग सेंटर अग्निकांड में 15 से 22 साल की उम्र के 22 स्टूडेंट की मौत हो गई। यहां भी आग इमारत के ग्राउंड फ्लोर के एसी में शॉर्ट सर्किट के बाद भड़की। 2022, दिल्ली के मुंडका में चार मंज़िला इमारत में लगी आग में 27 लोग मारे गए।
इंसानी लापरवाही की वजह से हुए इतने हादसों के बाद भी क्या हमने कोई सबक सीखा? जवाब है- नहीं। इसी का नतीजा है कि राजकोट और दिल्ली में एक बार फिर हमने कई मासूमों को खो दिया। राजकोट के गेम ज़ोन में लगी भीषण आग में 9 बच्चों समेत 30 से अधिक लोग मारे गए। 28 लोगों के शव तो इस हालत में हैं कि डीएनए टेस्ट से ही उनकी पहचान हो पाएगी। फायर एनओसी लिए बिना चल रहे इतने बड़े एंटरटेनमेंट पार्क के कंपाउंड में करीब तीन हज़ार लीटर ईंधन अवैध रूप से स्टोर करके रखा था। अंदर आने-जाने का बस एक संकरा रास्ता, इमरजेंसी एग्ज़िट का कोई इंतज़ाम नहीं।
इतने मासूमों की दर्दनाक मौत को हत्या बताते हुए हाई कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि यह मैन मेड डिज़ास्टर है और उसे सरकारी तंत्र पर बिलकुल भरोसा नहीं। कोर्ट की यह तल्ख टिप्पणी दिल्ली के चाइल्ड केयर अस्पताल अग्निकांड पर भी सटीक बैठती है। दुनिया ठीक से देखने से पहले ही सात नवजातों की जिस तरह जान गई, उनके परिवारों का दर्द सोचकर भी पीड़ा होती है। आरोप है कि अस्पताल के मालिक के तीन और अस्पताल बिना लाइसेंस के चल रहे हैं। हादसे के बाद हुई पड़ताल में पता चला कि दिल्ली में रजिस्टर्ड 1068 अस्पतालों और नर्सिंग होम में से महज़ 196 के पास ही दमकल विभाग का अनापत्ति प्रमाणपत्र है।
यानी इस अपराध के दोषी अवैध रूप से अपने धंधे चलाने वाले ये लोग ही नहीं, इन्हें परमिशन देने वाले वे ज़िम्मेदार भी हैं, जो जेबें गर्म होने के बाद अपनी आंखें मूंद कर बैठ जाते हैं। क्या उन सभी ज़िम्मेदार अधिकारियों पर मुकदमा नहीं चलना चाहिए, जो जानते हुए भी लोगों की जान से खिलवाड़ होने दे रहे हैं। घनी बस्तियों की संकरी गलियों में अवैध रूप से इतने कारोबार कैसे फल-फूल रहे हैं, जहां बड़ा हादसा होने पर फायरब्रिगेड की गाड़ी तक न घुस पाए।
पिछले साल दिल्ली के मुखर्जी नगर के कोचिंग सेंटर में आग लगने के बाद किस तरह बच्चों ने खिड़की से कूद कर अपनी जान बचाई थी, वो दृश्य सोचकर ही मन सिहर जाता है। घटना के बाद पुलिस ने कोर्ट में बताया कि दिल्ली में चल रहे 500 से अधिक कोचिंग सेंटरों में से महज़ 60 के पास ही फायर एनओसी है। दिखावे की कार्रवाई के तहत सबको नोटिस जारी हो गए। किसी ने भी आदेश पर अमल किया कि नहीं, कोई नहीं जानता।
एक बार फिर सभी गेम ज़ोन, होटलों और अस्पतालों की एनओसी की पड़ताल की खानापूर्ति शुरू हो गई है। कुछ दिन तक यह दिखावा चलेगा उसके बाद फिर सब पहले जैसा हो जाएगा, एक नए हादसे के इंतज़ार में।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स