आज दुनिया में काफी उथल-पुथल मची है। कई देश कोविड महामारी से हुए सामाजिक-आर्थिक नुकसान से उबरने में लगे हैं। बीते तीन वर्षों से यूक्रेन में चल रहे संघर्ष से ऊर्जा, खाद्य और खाद्य सुरक्षा पर गंभीर असर पड़ा है। अक्टूबर 2023 में इस्राइल पर हुए आतंकी हमले से पश्चिम एशिया में शुरू हुई लड़ाई गंभीर और व्यापक रूप ले सकती है। लाल सागर में ड्रोन और मिसाइल हमले वैश्विक शिपिंग को अस्त-व्यस्त कर रहे हैं। यहां तक कि अदन की खाड़ी में समुद्री डकैती की नई लहर और खतरनाक हो गई है। एशिया में क्षेत्रीय दावे और कानूनों और समझौतों की अवहेलना ने नए तनाव पैदा कर दिए हैं। आतंकवाद की पुरानी चुनौतियां भले ही बढ़ती-घटती रही हों, लेकिन आज भी बरकरार हैं।
भारत के लिए ज्यादा अनिश्चितताएं चीन के साथ LAC (Line of Actual Control) पर दबाव, सीमा पार से आतंकवाद के खतरे और म्यांमार की सीमा पर अस्थिरता से बढ़ी हैं। हालांकि इनमें से प्रत्येक को उचित प्रतिक्रिया दी गई है। लेकिन कुल मिलाकर ये स्थितियां आने वाले दिनों में एक मजबूत, समझदार और सक्षम नेतृत्व की जरूरत को स्पष्ट करती हैं।
कोविड युग ने अति-केंद्रीकरण के खतरों को प्रदर्शित किया है, चाहे वो manufacturing sector हो या technology। महत्वपूर्ण और उभरती टेक्नॉलजी का दायरा इसे और गंभीर बना देता है। ऐसे में अच्छा यही होगा कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था भी जोखिम से मुक्त हो। ऐसा केवल विभिन्न क्षेत्रों में ‘मेक इंडिया’ को गति देने व लचीली और विश्वसनीय सप्लाई चेन से जुड़कर ही किया जा सकता है।
डिजिटल क्षेत्र में, भारत को एक विश्वसनीय और पारदर्शी देश के रूप में अपने रेकॉर्ड को और आगे ले जाना है। इसका मतलब हमें सेमीकंडक्टर क्षमताओं को बढ़ाना और सही डेटा पॉलिसी को अपनाना होगा। खुद को आर्टिफिशल इंटेलिजेंस, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, ड्रोन, अंतरिक्ष और ग्रीन टेक्नॉलजी के युग के लिए भी तैयार करना होगा। साथ ही, देश की स्वास्थ्य, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करना होगा। इसके लिए दूरदर्शी नेतृत्व की जरूरत है, जो टेक्नॉलजी की परिवर्तनकारी क्षमता को समझता हो और मजबूत विकास के लिए प्रतिबद्ध हो। जाहिर तौर पर सुधार से पहले के युग की विफल नीतियों की ओर वापसी को स्पष्ट रूप से किसी भी कीमत पर टाला जाना चाहिए।
आज भारत अपने उम्दा बुनियादी ढांचे, बेहतर कारोबारी माहौल और अपेक्षित प्रतिभा की बदौलत आकर्षक निवेश गंतव्य है। लेकिन इसकी वजह हमारी राजनीतिक स्थिरता और नीतिगत पूर्वानुमान है। पिछले दशक में जमीनी स्तर पर सुधार और डिलिवरी ही विदेशों में हमारी विश्वसनीयता के स्रोत रहे हैं। कई मायनों में वैश्वीकरण ने एक अंतरराष्ट्रीय वर्कप्लेस भी बनाया है, जिसका उपयोग भारत अपनी बेहतरी के लिए कर सकता है। इसके लिए हमारे कौशल बेस को बढ़ाना, मोबिलिटी समझौते करना और विदेश में रह रहे भारतीय नागरिकों की सुरक्षा अहम तत्व हैं। स्टार्ट-अप्स में हमारी गहरी रुचि रही है, जो बीते दशक में नीतिगत प्रोत्साहनों की वजह से तेजी से बढ़े हैं।
यह स्वाभाविक है कि दुनिया भारतीय लोकसभा चुनाव में गहरी दिलचस्पी ले। आखिरकार यह मानव इतिहास की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया है। यह चुनाव बाकी देशों के लिए एक बढ़ते प्रभाव वाले देश में आयोजित हो रहा है। इसके अलावा, हमारी चुनावी मशीनरी की क्वॉलिटी अन्य देशों के लिए उदाहरण है। महत्वपूर्ण है कि चुनाव में दिलचस्पी और हस्तक्षेप के बीच की रेखा को समझा जाए और उसका सम्मान किया जाए। ऐसे भी लोग होंगे जिनका वैचारिक वजहों से कुछ दलों में निहित स्वार्थ होगा। लेकिन जब अधिक जिम्मेदार लोग चुनिंदा मुद्दों पर टिप्पणी करते हैं, तो वे स्वयं के निहितार्थों को भी ध्यान में रखते हुए ऐसा कर सकते हैं। यह जीवन की सचाई है कि कई अन्य गतिविधियों की तरह ही राजनीति का भी वैश्वीकरण हो गया है। लेकिन, व्यवस्था की आलोचना करने वाले अपने घरेलू चुनाव के नतीजों को प्रभावित करने के लिए अगर बाहरी ताकतों को आमंत्रित करते हैं तो इससे हमें कोई लाभ नहीं होगा।
यह अमृत काल का पहला आम चुनाव है और युवाओं को इसके महत्व को पहचानना होगा। पिछले दशक ने हमें विकसित भारत के लिए गंभीरता से उम्मीद करने को एक आधार दिया है। हमारे विकास की नई गति को इसकी समावेशी प्रकृति और प्रौद्योगिकी की छलांग लगाने वाली क्षमता से बल मिला है। पहले के विपरीत, सुधार और आधुनिकीकरण को संकीर्ण रूप से परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन इसमें डोमेन की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। मानव संसाधनों का पोषण, entrepreneurship को बढ़ावा देना और जीवनयापन की आसानी को बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
औपचारिक और अनौपचारिक, अर्थव्यवस्था के दोनों ही क्षेत्रों में अवसर बढ़ रहे हैं। यहां तक कि नए फोकस क्षेत्र और वैल्यू एडिशन भी सामने आ रहे हैं। दुनिया ध्यान दे रही है कि हमारी डिजिटल रूप से सक्षम डिलिवरी ने बड़े पैमाने पर सोशल वेलफेयर सिस्टम (सामाजिक कल्याण प्रणाली) बनाया है, जिसकी पहले कल्पना नहीं की जा सकती थी। चाहे कोवैक्सीन हो या कोविन, 5G स्टैक या UPI, चंद्रयान या गगनयान मिशन, हम तेजी से वैश्विक मानकों से मेल बना रहे हैं।
जैसे-जैसे भारत अपने निकट और दीर्घकालिक, दोनों भविष्यों के बारे में निर्णय लेने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, यह जरूरी है कि हम सभी इसे पूरी तरह से समझें कि दांव पर क्या लगा है। भारत न केवल दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है बल्कि यह पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी है, जिसके जल्द ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की संभावना है। दुनिया चुनौतियां और अवसर दोनों प्रदान करती है और उन्हें व्यापक रूप से संबोधित करने के लिए प्रधानमंत्री के दृढ़ आत्मविश्वास और अनुभवी नेतृत्व की आवश्यकता है। जैसे ही हम अपनी राजनीतिक पसंद व्यक्त करते हैं, हम वैश्विक व्यवस्था की दिशा भी तय कर रहे होते हैं। दुनिया इंतजार कर रही है और उम्मीद कर रही है कि फैसला स्पष्ट और निर्णायक होगा।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स