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DevBhoomi Insider Desk
• Fri, 1 Apr 2022 11:22 am IST

नेशनल

कोचिंग सिस्‍टम तो नहीं बढ़ाएगा CUET


अंडरग्रैजुएट कोर्सेज में दाखिले के लिए चौंकाने वाली 100% कटऑफ को अब कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET) ने इतिहास बना दिया है। CUET ने 12वीं क्लास में अंकों की मारामारी और ऊंची कटऑफ के संघर्ष से स्टूडेंट्स को आजादी दी है। स्टूडेंट्स को अब देश के सभी प्रतिष्ठित केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए सिर्फ एक एंट्रेंस देना होगा, बोर्ड क्लास के अंकों का रोल अब किनारे हो चुका है।

CUET के जरिए 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्टूडेंट्स के लिए दाखिले के दरवाजे खुलेंगे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के ऐलान के बाद केंद्र सरकार ने सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय में कॉमन एंट्रेंस टेस्ट लागू करने का फैसला लिया था। हालांकि, 2010 में CUCET (सेंट्रल यूनिवर्सिटी कॉमन एंट्रेंस टेस्ट) शुरू हुआ था और पिछले साल तक 14 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में यह लागू था। पर अब CUET ने इसकी जगह ले ली है। वहीं यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमिशन (यूजीसी) ने प्राइवेट, स्टेट और डीम्ड यूनिवर्सिटी को CUET पर खुद फैसला लेने की छूट दी है। यूजीसी का कहना है कि कॉलेज में दाखिले के लिए अब स्टूडेंट्स को उनके सहज रुझान और सामान्य ज्ञान से आंका जाएगा। 12वीं के अंकों का महत्व सिर्फ न्यूनतम पात्रता के लिए होगा। अब स्टूडेंट्स को हर विश्वविद्यालय का अलग फॉर्म भी नहीं भरना होगा।

पिछले कई सालों से 12वीं में 95% या इससे ऊपर अंक हासिल करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। 2021 में सीबीएसई में ही ऐसे स्टूडेंट्स की संख्या 70004 (5.37%) थी, जबकि 2020 में ऐसे स्टूडेंट्स 38686 (3.24%) और 2019 में 17693 थे। इसी की बदौलत 2021 में दिल्ली विश्वविद्यालय के 8 कॉलेजों ने 11 कोर्सेज के लिए 100% की कटऑफ निकाली, मगर इसके बावजूद अलग-अलग शिक्षा बोर्ड के कई स्टूडेंट्स ने इस कटऑफ को चुनौती देते हुए दाखिला लिया। इस पर देशभर के बोर्ड के मार्किंग पैटर्न पर सवाल उठे। दाखिले की समीक्षा में दिल्ली विश्वविद्यालय की एक कमिटी ने भी माना कि देशभर के स्कूल बोर्ड के मार्किंग पैटर्न में अंतर है।

CUET आने से अब कटऑफ का तनाव तो दूर हो गया, मगर क्या यह एंट्रेंस स्टूडेंट्स और अभिभावकों के लिए नया तनाव बन सकता है? भारत के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग और मेडिकल संस्थानों में दाखिले के लिए JEE, NEET जैसे कॉमन एंट्रेंस टेस्ट इसका उदाहरण हैं। इनके लिए स्टूडेंट्स क्लास 10 या 8 में ही कोचिंग संस्थानों का रुख करने लगते हैं। टाइमटेबल इतना व्यस्त होता है कि वे स्कूल की पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाते।

CUET भी इन एंट्रेंस की तरह ना हो जाए, यह डर शिक्षाविदों के बीच में भी है। उनका मानना है कि कोचिंग को बढ़ावा मिलेगा तो स्कूल में मिलने वाला ज्ञान, बच्चों की रचनात्मकता और मौलिकता भी खतरे में पड़ेगी। गरीब बच्चे कोचिंग की फीस नहीं दे पाते हैं। गांवों, दूरदराज इलाकों के बच्चों खासतौर पर लड़कियों को कोचिंग के लिए बाहर भेजना हर घर के लिए मुमकिन नहीं होता, यानी खाई और गहरी हो सकती है। JEE, NEET पर आरोप लगते रहे हैं कि इनका झुकाव उस समाज के पक्ष में है, जो कोचिंग की मोटी फीस दे सकते हैं। इन एंट्रेंस के लिए 12 से 14 लाख स्टूडेंट्स हर साल बैठते हैं मगर CUET के लिए यह संख्या करोड़ के आसपास हो सकती है।

कटऑफ एक चरम स्थिति थी और अगर एंट्रेंस एग्जाम के डिजाइन पर ध्यान नहीं दिया गया, तो CUET दूसरी चरम स्थिति बन सकती है। CUET के पेपर पैटर्न पर ध्यान देने और पेपर सेट करने वालों का गंभीर प्रशिक्षण सुनिश्चित करने की इस वक्त बड़ी जरूरत है। पेपर इस तरह से तैयार करने जरूरी हैं कि स्टूडेंट की क्षमता, सहज रुझान और रचनात्मकता को जांचा जा सके। सवाल भी स्कूल के कोर्स से ही लिए जाने चाहिए। अगर क्लास 12 के मॉडल सिलेबस पर एंट्रेंस केंद्रित होगा, तो स्कूल की पढ़ाई में ही CUET की तैयारी भी शामिल होगी।

बतौर यूजीसी CUET स्टूडेंट्स की तर्कसंगत सोच, सामान्य ज्ञान, मानसिक क्षमता, विश्लेषणात्मक तर्क को जांचेगा और इसे NCERT सहित बाकी बोर्ड के सिलेबस को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जा रहा है। भारतीय शिक्षा पद्धति में CUET एक बड़ा बदलाव लाने जा रहा है। पर यह बदलाव तभी सकारात्मक साबित होगा, जब हर बारीकी को नजर में रखते हुए संभलकर चला जाए।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स