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DevBhoomi Insider Desk
• Mon, 16 May 2022 6:21 pm IST


व्यंग्यः दो-दो अमृत महोत्सव एक साथ


आज तोताराम ने आते ही हमसे प्रश्न किया, बोला- क्या प्रोग्रेस है तेरे अमृत महोत्सव की?

उससे हमें कोई आर्थिक लाभ तो नहीं हुआ लेकिन एक बार को लगा जैसे हम ही आज़ादी के अमृत महोत्सव की आयोजन समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.

हमने कहा- कौन सा अमृत महोत्सव? अभी कहाँ? आज़ादी के आठ साल पूरे होने में ही सवा महिना पड़ा है. ३० मई २०१४ से गिन ले, जब मोदी जी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण की थी.

बोला- मैं कंगना वाली, भाजपा के महान बलिदान से प्राप्त हुई आज़ादी की बात नहीं कर रहा हूँ. देशभक्ति के ठेकेदारों की यही स्पीड रही तो शीघ्र ही इतिहास में संशोधन हो जाए. फिलहाल तो ‘भीख में मिली’ आज़ादी का अमृत महोत्सव चल रहा है जिसकी आयोजन समिति के अध्यक्ष हैं अपने मोदी जी.

हमने कहा- हमें क्या पता? आजकल एक और अमृत महोत्सव भी तो चल रहा है? बीजेपी (अ) का

बोला- बीजेपी (अ)? यह नाम तो पहली बार सुन रहा हूँ. पहले देश की स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकारियों के अतिरिक्त लगभग सभी लोग कांग्रेस में ही थे जिन्होंने बाद में कांग्रेस से छिटक-छिटक कर अपनी-अपनी कांग्रेस बना ली थी और उनके नामों के आगे ब्रेकेट में ए, बी, सी, डी. आदि लगा करते थे. लेकिन भाजपा में तो अभी तक ऐसा नहीं हुआ है. यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा आदि भाजपा से निकले तो सही लेकिन किसी ने कोई भाजपा (एस/सिन्हा) नहीं बनाई. यह भी ठीक है कि अटल जी भाजपा के पहले अध्यक्ष थे लेकिन उन्होंने कभी अपने नाम का ‘ए फॉर अटल’ नहीं जोड़ा. वैसे ही अमित जी भी अडवानी के बाद सबसे शक्तिशाली अध्यक्ष रहे लेकिन उन्होंने भी अपना ‘अ फॉर अमित’ नहीं लगाया. फिर यह बीजेपी (अ) कहाँ से आगया? और इसका फुल फॉर्म क्या है?

हमने कहा- बन्धु, यह तो पता नहीं, लेकिन इधर जैसे ही जहांगीरपुरी में सरकार ने आज़ादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में जेसीबी से अपने राष्ट्रीय शौर्य और सद्भाव का प्रदर्शन किया वैसे ही उधर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जोनसन ने गुजरात में बड़ोदरा के पास हलोल में जेसीबी के एक कारखाने का उदघाटन किया. और उछलकर जेसीबी (बुलडोज़र) पर चढ़ गए. इस कंपनी ने भारत में अपना पहला कारखाना १९४५ में खोला लेकिन इसमें उत्पादन १९४७ में शुरू हुआ. इसलिए एक प्रकार से भारत में यह वर्ष इस बुलडोज़र कंपनी का भी ‘अमृत महोत्सव’ है.

जोसेफ सिरिल बेम्फोर्ड नामक एक अंग्रेज ने खुदाई करने वाली इस मशीन का निर्माण ब्रिटेन में किया. इसके मालिक के नाम के पहले अक्षरों के अनुसार इसे ‘जेसीबी’ के नाम से जाना जाता है. इस मशीन की उपयोगिता और महानता इसी बात से समझी जा सकती है कि इसका नाम जातिवाचक संज्ञा बना गया कैसे गाँधी से गाँधी टोपी, नेहरू से नेहरू जैकेट, मोदी से मोदी कुरता.

बोला- सो तो ठीक है लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी की टक्कर में तू यह और किस बीजेपी (अ) की बात कर रहा है?

हमने कहा- पक्का तो नहीं कह सकते लेकिन हमारा अनुमान निराधार भी नहीं है. सीधा-सीधा तो ‘बोरिस जोनसन पार्टी’ के आद्यक्षरों से ‘बीजेपी’ हो गया और ब्रिटेन का अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव रहा है. उसके उपनिवेश पूरी दुनिया में रहे हैं इसलिए कोष्ठक में ‘अ’ है. इस ‘अ’ का अटल जी और अमित जी से कोई संबंध नहीं है.

दूसरे आजकल जनकल्याण और सुशासन के लिए ‘बुलडोज़र’ का महत्त्व बहुत बढ़ गया है लेकिन वह वास्तव में है जेसीबी ही. इसलिए भी इस ‘बीजेपी’ का फुल फॉर्म ‘ब्रिटिश जेसीबी पार्टी’ भी हो सकता है. बोरिस जोंसन ने जिस उत्साह से जेसीबी पर चढ़कर ‘बुलडोज़र’ के लोकतांत्रिक महत्त्व के साथ जिस वैचारिक एकता का परिचय दिया है उसके कारण इसका नाम ‘बोरिस जेसीबी पार्टी’ (अंतर्राष्ट्रीय) ‘बीजेपी (अ) भी समझा जा सकता है.

बोला- हमारी तो भीख वाली ही सही, आज़ादी के ७५ साल हो रहे हैं लेकिन देखा जाए तो भारत की ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्ति एक प्रकार से दुनिया में उपनिवेशवाद की समाप्ति का अमृत महोत्सव भी है. गाँधी जी के असहयोग एवं सत्याग्रह द्वारा आज़ादी प्राप्ति से प्रेरित होकर ही सभी अफ्रीकी और एशियाई देश योरप की गुलामी से आज़ाद हुए थे. एक प्रकार से यह ब्रिटिश साम्राज्यवाद की समाप्ति का अमृत महोत्सव भी हो सकता है.

लेकिन इन दोनों ‘अमृत महोत्सवों’ में यह जेसीबी या बुलडोज़र की उपस्थिति की समानता का क्या निहितार्थ है?

हमने कहा- हो सकता है तोताराम, उपनिवेशवादी शक्तियों ने जहां-जहां अपने उपनिवेश बनाए वहाँ-वहाँ धर्म और शिक्षा की आड़ में उन देशों की सभ्यता, संस्कृति और अर्थव्यवस्था को बुलडोज़र से खोद-खोद कर वैसे ही गाड़ दिया जैसे ‘मामा’ ने माफियाओं को बिना जेसीबी के ही दस फुट नीचे गाड़ दिया. एकाधिकार और सम्पूर्ण प्रभुत्त्व के लिए निर्माण की आड़ में पहले विनाश ज़रूरी है. गिराया जाता है, गाड़ा जाता है, दफनाया जाता है और जब, जैसे ज़रूरत हो; गड़े मुर्दों को उखाड़ा भी जाता है.

बोला- लेकिन क्या ऐसे तोड़ना, गाड़ना ही तो उपनिवेशों की समाप्ति का कारण नहीं बना.

हमने कहा- और क्या? जैसे बीज डाले जायेंगे, फल उससे भिन्न कैसे आ सकते हैं?

बोला- तभी कहा है- जैसी नीयत, वैसी बरक़त. तभी कवि वृन्द कहते हैं-

होय बुराई तें बुरो, यह कीन्हो निरधार
खाई खोदे और को ताको कूप तयार

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स