शायद ही कोई हो जिसे ‘आपका बंटी’ जैसे बड़े उपन्यास की लेखिका मन्नू भंडारी ने प्रभावित न किया हो। मैंने इस उपन्यास को पढ़ाया भी है। मुझे याद आ रहा है कि कितने तीखे तरल सवालों की नोक पर हुआ करते थे हम, और एक बेचैनी सी महसूस होती थी। यह एक चिटके हुए दांपत्य की कथा थी। चिटके हुए दांपत्य की तफसील उनके नाटक ‘बिना दीवारों का घर’ में भी थी।
मैं जब उनसे मिली तो मेरा स्वागत उनकी एक आत्मीय और सरल सी मुस्कान से हुआ, जिसने मुझे न जाने क्या क्या बता देना था। एक निकटता उनसे मेरी यह भी रही कि मैंने उनके लिखे नाटक ‘बिना दीवारों का घर’ में पत्नी की भूमिका निभाई। मध्यवर्गीय परिवारों की जीवन गाथा के सम-विषम राग रचने वाली इस लेखिका के अनुभवों और रचना विवेक का आयाम बहुत विस्तृत और गहरा था और गहराई उसकी खूबी थी। लेखक पति राजेंद्र यादव की यथार्थवादी रचना दृष्टि से भिन्न ढंग था मन्नू भंडारी का। मन्नू इस दांपत्य की गहरी भीतरी रेखा रहीं। वह कभी लाउड नहीं थीं। उनके साहित्य में अत्याधुनिकता के ढोल-बाजे नहीं हुए, मगर भारतीय समाज के गहरे अंतर्विरोधों पर उन्होंने ‘त्रिशंकु’ जैसी बेजोड़ कहानी लिखी। फिर ‘महाभोज’ जैसा उपन्यास लिख कर तो उन्होंने अपने यथार्थ बोध और इतिहास विवेक का लोहा मनवा लिया।
उनकी आत्मकथात्मक किताब ‘एक कहानी यह भी’ खूब पढ़ी गई। इस किताब ने उनके दांपत्य के कठिनतम को जैसे सामने कर दिया था। जाहिर है, कई तरह की प्रतिक्रियाएं भी आईं। उसमें मन्नू जी ने लिखा था कि वे ‘नसों को चटका देने वाले आघात थे।’ विष्णु कांत शास्त्री और प्रो. निर्मला जैन बहुत स्नेह और आदर से मन्नू जी के विषय में बताया करते थे। निर्मला जी का उल्लेख तो मन्नू जी ने भी किया है।
उनके पिता एक जागरूक स्वाधीनता प्रेमी व्यक्तित्व थे। स्वाधीनता आंदोलन का गहरा प्रभाव था उनके परिवार पर और मन्नू की भी उसमें भागीदारी थी। भावनात्मकता के साथ तर्क को भी खुराक मिल सके, ऐसा परिदृश्य था वह। अपनी आत्मकथा में मन्नू अपनी बड़ी-चढ़ी राजनीतिक सक्रियता के प्रति पिता की नाखुशी भी बताती हैं। उन्होंने लिखा है कि यह वे दिन थे, जब रगों में लहू की जगह जैसे लावा बहता था। यह वह समय और परिदृश्य था जब आजादी के लिए लड़ने वालों का फैलाव जन-जन तक था। यह असर बेइंतहा संक्रामक था। उस दौर के कितने ही लोगों ने इसे ऐसे ही महसूस किया है। उन्होंने एक कर्मयोगी जैसी भूमिका में समाज और संसार को रचने में अपना हाथ लगाया। नसों को चटका देने वाली यातनाओं के साथ रहते हुए भी जो अमृत था, उन्होंने उसे ही जाहिर किया। अति बौद्धिकता के दावे से अलग होकर दुनिया के जटिलतम में प्रवेश भी किया। एक कोमल संवेदनशील रचनात्मक मन ने सत्ता की नृशंसता के खेल को भीतर से उधेड़ कर सबको चकित कर दिया था।
वह ऐसी बहुआयामी प्रतिभा थीं, कि उन्हें विधाओं की भाषा का अंतर खूब पता था। रंगमंच और सिनेमा की भाषा जानती थीं वह। उन्होंने बहुत लोकप्रिय हुए ‘रजनी’ सीरियल की स्क्रिप्ट लिखी। ‘यही सच है’ नामक उनकी कहानी की बहुत सादी सी स्क्रिप्ट में गहरायी हुई आयरनी को भला कौन भूल सकता है? स्त्री की आजादी के सवाल मन्नू भंडारी के लिए अनुपस्थित नहीं थे। उनकी कहानियों के स्त्री किरदार याद रह जाते हैं। वह उनके भीतर कुछ अतिरिक्त भरने से बचती रही हैं। वह उसे जटिल सामाजिक संरचनाओं के भीतर देखती हैं। एक सहज मूल्यसंलग्नता उनका स्वभाव रहा और उन्होंने अपने साहित्य में ही नहीं, जीवन में भी इसका निर्वाह किया। वह इतने गहरे परिचय और प्रतीति में अपने किरदारों को रचती रही हैं, जैसे वे जीते-जागते हमें मिलें और हम पर बहुत गहरा असर छोड़ कर जाएं।
वह सतत रचती रही थीं। वह लिखने की तैयारी में जोर-शोर से लगने वाली नहीं थीं। जीवन अपनी भीतरी शक्ति से उनकी भाषा में उतरता गया और खूब लिखा भी उन्होंने। वह सब लिखा हुआ उनका यश शरीर है, उनकी अमरता है। हम भाग्यशाली हैं कि हमने उन्हें देखा है, पढ़ा है।
सौजन्य से - नवभारत टाइम्स