बिहार जैसी ही तेजी से हरियाणा में भी राजनीतिक परिवर्तन हो गया। हालांकि एक ही दिन में इस्तीफे और नई सरकार के शपथ ग्रहण को छोड़ दिया जाए तो दोनों में ज्यादा समानता नहीं है। बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहे, सिर्फ गठबंधन भागीदार बदले, जबकि हरियाणा में गठबंधन तो टूटा ही, मुख्यमंत्री भी बदल गए। मंगलवार सुबह तक शायद ही किसी ने कल्पना की होगी कि हरियाणा की राजनीति में इतना बड़ा उलटफेर हो जाएगा, लेकिन शाम होते-होते नेतृत्व परिवर्तन के जरिये ऐसी चुनावी बिसात बिछा दी गई कि विपक्ष को अपनी रणनीति पर नए सिरे से माथापच्ची करनी पड़ेगी।
मोदी से करीबी : यूं तो मनोहर लाल खट्टर, नरेंद्र मोदी के विश्वस्त लोगों में गिने जाते हैं। एक दिन पहले ही द्वारका एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन करने गुरुग्राम आए प्रधानमंत्री ने मनोहर लाल के साथ अपने पुराने रिश्तों के किस्से सुनाते हुए बताया था कि कैसे पार्टी के काम के सिलसिले में वह उनकी मोटरसाइकल पर ही हरियाणा भर में घूमते थे। ऐसे में यह नेतृत्व परिवर्तन अप्रत्याशित लग सकता है, पर है नहीं।
सुनियोजित रणनीति : इसके पीछे BJP की सुनियोजित चुनावी रणनीति है। जिस तरह नायब सैनी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते समय मनोहर लाल के पैर छूकर आशीर्वाद लिया, उससे दोनों की निकटता की पुष्टि भी हो जाती है। चौधरी बीरेंद्र सिंह और दुष्यंत चौटाला परिवार के बीच राजनीतिक रस्साकशी तो तात्कालिक आधार भर बन गई, जिसने BJP को चुनावी बिसात बिछाने का मौका दे दिया।
पुरानी दुश्मनी : वैसे बीरेंद्र सिंह और चौटाला परिवारों के बीच राजनीतिक जंग पुरानी है। 2009 में बीरेंद्र सिंह कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में जिस उचाना सीट पर ओमप्रकाश चौटाला से हार गए थे, उसी पर 2019 में दुष्यंत ने उनकी पत्नी प्रेमलता को हराया। बीरेंद्र सिंह 2014 में ही BJP में आ गए थे। वहीं, अपनी अलग पार्टी JJP बनाकर 2019 का लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने वाले दुष्यंत तब साथ आए, जब BJP बहुमत का आंकड़ा छूने से चूक गई। 10 विधायकों वाली JJP के नेता दुष्यंत जब उप-मुख्यमंत्री बन गए, तब से दोनों के बीच तनातनी और तेज हो गई। बीरेंद्र सिंह JJP से गठबंधन में चुनाव लड़ने के विरुद्ध थे, पर जानते थे कि BJP में ऐसे दबाव नहीं चलते। इसलिए कांग्रेस में घर वापसी कर ली।
सीटों पर विवाद : दुष्यंत को शायद लगा हो कि बीरेंद्र सिंह के जाने के बाद BJP उन्हें गठबंधन में दो लोकसभा सीटें दे देगी, पर ऐसा संभव नहीं था। 2019 में हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटें BJP ने अपने बूते जीती थीं। फिर JJP से गठबंधन को लेकर BJP में एक वर्ग हमेशा खिलाफ रहा। 2019 विधानसभा चुनाव में बहुमत से चूकने के बावजूद BJP के पास निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाने का विकल्प था, पर शायद आलाकमान ने स्थिरता की खातिर JJP से गठबंधन करना बेहतर समझा।
मौके का इंतजार : उसके बाद भी BJP के रणनीतिकारों को अहसास था कि उनका और JJP का जनाधार प्रतिकूल राजनीतिक ध्रुवों जैसा है। 2019 चुनाव में भी BJP को मुख्यत: गैर-जाट वोट मिले और JJP को जाट वोट। अगर ये दोनों मिल कर चुनाव लड़ते तो जाट वोट कांग्रेस के पक्ष में गोलबंद होने की आशंका रहती। जाहिर है, वैसा होना अंतत: दोनों ही दलों को भारी पड़ता। इसलिए शायद दोनों ही गठबंधन तोड़ने के लिए मौके का इंतजार कर रहे थे।
OBC कार्ड : इसलिए सीट बंटवारे को कारण बना दोनों ने अपनी चुनावी राहें अलग कर लीं। BJP ने इस मौके का लाभ उठाकर नायब सैनी के रूप में OBC कार्ड भी चल दिया। राहुल गांधी जिस तरह से जातीय जनगणना को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं, मध्य प्रदेश के बाद हरियाणा में भी OBC मुख्यमंत्री उसकी धार कुंद करेगा।
कटुता नहीं : दोनों ही दलों में से किसी भी प्रमुख नेता ने गठबंधन टूटने पर तल्ख टिप्पणी नहीं की है। यानी अलगाव के बावजूद परस्पर कटुता नहीं है। बुधवार को जब नायब सिंह सैनी सरकार ने विश्वास मत हासिल किया, तब JJP ने अपने विधायकों को विरोध में मतदान करने के बजाय अनुपस्थित रहने का व्हिप जारी किया। उसके दोनों अर्थ निकाले जा रहे हैं। एक, JJP कोटे के मंत्रियों के विभागों में उजागर हुए घोटालों की संभावित जांच को रुकवाना और दूसरा, JJP विधायकों में टूट की आशंका को टालना।
विस्तार का इंतजार : मंगलवार को मुख्यमंत्री पद छोड़ने वाले मनोहर लाल ने बुधवार को करनाल विधानसभा सीट से भी इस्तीफा दे दिया। माना जा रहा है कि मोदी अपने विश्वस्त को लोकसभा चुनाव लड़वाकर केंद्रीय राजनीति में ले जाएंगे। मुख्यमंत्री बनने के बाद नायब सैनी को प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़ना होगा। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आलाकमान राज्य में पार्टी की कमान किसे सौंपता है। विश्वास मत हासिल कर लेने के बाद सैनी मंत्रिमंडल का विस्तार भी होगा, जिसका इंतजार निर्दलीय विधायकों के साथ-साथ पाला बदलने को आतुर JJP विधायकों को भी रहेगा।
दिलचस्प परिदृश्य : इस नेतृत्व परिवर्तन के बाद विपक्ष, खासकर कांग्रेस को अपनी चुनावी रणनीति पर नए सिरे से माथापच्ची करनी पड़ेगी। साढ़े नौ साल तक वह जिन मनोहर लाल को निशाना बनाती रही, उनकी जगह अब नायब सैनी आ गए हैं, तो JJP के अलग चुनाव लड़ने पर BJP विरोधी उस वोट बैंक में सेंधमारी का खतरा बढ़ गया है, जिसे पिछले साढ़े चार साल से गोलबंद किया जा रहा था। जाहिर है, नेतृत्व परिवर्तन के दांव से BJP ने हरियाणा के चुनावी परिदृश्य को बेहद दिलचस्प बना दिया है।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स